एंकर: करन त्रिपाठी
वीडियो प्रोड्यूसर/एडिटर: कनिष्क दांगी
वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ (Vinod Dua) को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है और उनके खिलाफ दर्ज राजद्रोह के मामले को रद्द कर दिया गया है. बीजेपी नेता की शिकायत के बाद हिमाचल प्रदेश में दुआ के खिलाफ राजद्रोह की धाराओं में मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद तमाम पत्रकारों और बुद्धिजीवियों ने विनोद दुआ के खिलाफ की गई इस कार्रवाई की जमकर आलोचना की थी. अब उन पर चल रहे राजद्रोह मामले के रद्द होने के बाद भी कई लोगों ने ट्विटर पर इसे बड़ी जीत बताया है.
राजद्रोह कानून खत्म करने की उठी आवाज
पत्रकार, कवि और राजनेता रहे प्रितीश नंदी ने विनोद दुआ को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने की खुशी जाहिर की, साथ ही उन्होंने राजद्रोह कानून की भी जमकर आलोचना की. उन्होंने ट्विटर पर लिखा,
“काफी शानदार खबर... राजद्रोह कानून को ही रद्द कर देना चाहिए. ये औपनिवेशिक काल का एक हिस्सा है. जो स्वतंत्र भारत के लिए सही नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने विनोद दुआ के खिलाफ राजद्रोह का मामला रद्द किया, कहा- हर पत्रकार को 1962 का आदेश ऐसे तमाम आरोपों से बचाता है.”
वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया. साथ ही उन्होंने भी राजद्रोह कानून की आलोचना की. गुप्ता ने लिखा,
“विनोद दुआ के खिलाफ राजद्रोह का मामला रद्द करने और पत्रकारों को सुरक्षा देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करता हूं. ये इस बुरे कानून के ताबूत में एक और कील है. अब इसे अंतिम रूप देने का वक्त आ चुका है.”
टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी विनोद दुआ को मिली इस राहत को लेकर ट्वीट किया. उन्होंने लिखा कि, लहर का रुख बदल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने विनोद दुआ के खिलाफ लगाए गए राजद्रोह के मामले को रद्द कर दिया है.
इनके अलावा भी कई पत्रकारों और अन्य लोगों ने भी विनोद दुआ के मामले को लेकर खुशी जताई और पुलिस की इस कार्रवाई की आलोचना की.
सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने की सजा?
बता दें कि वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ लगातार केंद्र सरकार की नीतियों और कामकाज को लेकर सवाल उठाते रहे हैं. उन्होंने नागरिकता कानून और ऐसे ही कई मुद्दों को लेकर अपने यू-ट्यूब चैनल के जरिए वीडियो जारी किए थे. ऐसे ही एक वीडियो पर बीजेपी नेता अजय श्याम की शिकायत पर दुआ के खिलाफ केस दर्ज हुआ था.
विनोद दुआ के खिलाफ IPC सेक्शन 124A (सेडिशन), सेक्शन 268 (सार्वजनिक उपद्रव), सेक्शन 501 (अपमानजनक चीजें छापना) और सेक्शन 505 (सार्वजनिक शरारत करने का इरादा रखने) के आरोपों में केस दर्ज हुआ. दिल्ली में भी उनके खिलाफ एफआईआर हुई थी.
बीजेपी नेता की शिकायत पर वरिष्ठ पत्रकार के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज होने के बाद इसे सत्ता का दुरुपयोग बताया गया था. बीजेपी शासित हिमाचल प्रदेश में केस दर्ज होना और दुआ के खिलाफ कार्रवाई को राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया गया. एडिटर्स गिल्ड ने भी इसकी जमकर आलोचना की थी. गिल्ड ने कहा था कि,
"इस तरह FIR दर्ज करना उत्पीड़न का एक जरिया है, जो ऐसी प्रक्रिया शुरू करता है जो अपने आप में ही सजा है. पुलिस को संविधान की तरफ से दी गई आजादी का सम्मान करना चाहिए." गिल्ड ने पुलिस से इस तरह व्यवहार न करने की अपील की थी, जिससे उनकी स्वतंत्रता पर सवाल उठे.
राजद्रोह कानून पर उठ रहे सवाल, सुप्रीम कोर्ट ने भी की टिप्पणी
अब अगर बात राजद्रोह या देशद्रोह कानून की करें तो इस पर पिछले कुछ सालों से लगातार बहस जारी है. क्योंकि पिछले कुछ सालों में इस कानून का लगातार इस्तेमाल हुआ है. ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जहां निर्दोष लोगों के खिलाफ राजद्रोह के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. ज्यादातर मामलों में कोर्ट ने ऐसे लोगों को राहत दे दी.
इस कानून के लगातार हो रहे गलत इस्तेमाल पर अब सुप्रीम कोर्ट की भी नजर है. कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के दो न्यूज चैनलों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाते हुए 'राजद्रोह' पर कड़ी टिप्पणी की. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब वक्त है कि राजद्रोह की सीमा को परिभाषित किया जाए. कोर्ट ने कहा कि, हमारा मानना है कि आईपीसी की धारा 124A और 153 के प्रावधानों की व्याख्या की जरूरत है, खासकर प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे पर.
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