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"जाओ हिरासत का आनंद लो": SC ने सार्वजनिक पिटाई के लिए गुजरात पुलिस को लगाई फटकार

आरोपी पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर पांच मुसलमानों को डंडे से पीटा और उन्हें एक खंभे से बांध दिया था.

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार (23 जनवरी) को गुजरात पुलिस को उसके अधिकारियों द्वारा 2022 में खेड़ा जिले के एक गांव में मुस्लिम समुदाय के पांच लोगों को सार्वजनिक रूप से कोड़े मारने पर फटकार लगाई. अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए पूछा कि उन्हें लोगों को खंभे से बांधने और पीटने का अधिकार कहां से मिला?

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न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ गुजरात हाईकोर्ट के 19 अक्टूबर, 2023 के आदेश के खिलाफ चार पुलिस कर्मियों- निरीक्षक एवी परमार, उप निरीक्षक डीबी कुमावत, हेड कांस्टेबल केएल डाभी और कांस्टेबल आरआर दाभी- की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्हें संदिग्धों को हिरासत में लेने और पूछताछ करने के बारे में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का उल्लंघन करते हुए अदालत की अवमानना ​​करने के लिए 14 दिन के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी.

'हिरासत का आनंद लो'

एनडीटीवी के अनुसार, सुनवाई के दौरान नाराज न्यायमूर्ति गवई ने कहा, "(क्या) आपके पास कानून के तहत लोगों को खंभे से बांधने और उन्हें पीटने का अधिकार है? जाओ और हिरासत का आनंद लो."

सुनवाई के दौरान कोर्ट में क्या हुआ?

जस्टिस मेहता ने अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा, "ये किस तरह के अत्याचार हैं? लोगों को खंभे से बांधना, सार्वजनिक जगहों पर सबके सामने उनकी पिटाई करना और वीडियो बनाना. फिर आप चाहते हैं कि यह अदालत हस्तक्षेप करे."

अधिकारियों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे ने कहा कि वे पहले से ही आपराधिक मुकदमा, विभागीय कार्यवाही और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की जांच का सामना कर रहे हैं.

वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे ने कहा, "यहां सवाल उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही में आगे बढ़ने के लिए हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र का है."

डीके बसु मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1996 के फैसले के संदर्भ में उनके खिलाफ जानबूझकर अवज्ञा का कोई अपराध नहीं बनाया गया था, जहां उसने गिरफ्तारी करने और संदिग्धों की हिरासत और पूछताछ के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे. अभी सवाल इन अधिकारियों की दोषीता के बारे में नहीं है बल्कि हाईकोर्ट के अवमानना क्षेत्राधिकार के बारे में है.
सिद्धार्थ दवे, वरिष्ठ अधिवक्ता

उन्होंने आगे कहा, "क्या इस अदालत के फैसले की जानबूझकर अवज्ञा की गई? ये वो सवाल है जिसका जवाब ढूंढना होगा. क्या पुलिसकर्मियों को फैसले की जानकारी थी?”

न्यायमूर्ति गवई ने पलटवार करते हुए कहा कि कानून की अज्ञानता वैध बचाव नहीं है.

प्रत्येक पुलिस अधिकारी को यह जानना चाहिए कि डीके बसु मामले में क्या कानून निर्धारित किया गया है. कानून के छात्रों के रूप में, हम डीके बसु फैसले के बारे में सुनते और पढ़ते रहे हैं.
न्यायमूर्ति बीआर गवई, सुप्रीम कोर्ट

हालांकि, डेव ने कहा कि आरोपी पुलिसकर्मियों पर हाईकोर्ट के अवमानना क्षेत्राधिकार के तहत अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.

इसके बाद न्यायमूर्ति गवई ने आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ दर्ज एक निजी शिकायत की स्थिति के बारे में जानना चाहा. शिकायतकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील आईएच सैयद ने कहा कि यह लंबित है.

अवमानना के आरोप स्वतंत्र थे और विभागीय कार्यवाही और आपराधिक अभियोजन के बावजूद. वे बस इतना कह रहे हैं कि यह जानबूझकर की गई अवज्ञा नहीं है. इसके अलावा, उनके पास कोई मामला नहीं है.
आईएच सैयद , वरिष्ठ अधिवक्ता

न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि चूंकि यह एक अपील है, इसलिए अदालत को मामले की सुनवाई करनी होगी. दवे ने उन्हें 14 दिन की कैद की सजा सुनाने के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा कि अन्यथा अपील निरर्थक हो जाएगी.

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"अपने ही अधिकारियों के मेहमान बनोगे"

न्यायमूर्ति गवई ने अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा, "जाओ और हिरासत का आनंद लो. तुम अपने ही अधिकारियों के मेहमान बनोगे. वे तुम्हें स्पेशल ट्रीटमेंट देंगे."

डेव ने रोक लगाने की अपनी प्रार्थना जारी रखी और कहा कि हाईकोर्ट ने भी अपने आदेश के क्रियान्वयन पर तीन महीने के लिए रोक लगा दी है.

जस्टिस गवई ने उनकी बात मान ली और सजा पर रोक लगाने का आदेश दिया.

क्या है पूरा मामला?

19 अक्टूबर 2023 को हाई कोर्ट ने चारों पुलिसकर्मियों को अदालत की अवमानना का दोषी करार देते हुए सजा के तौर पर 14 दिन जेल में बिताने का आदेश दिया.

इसने इन पुलिसकर्मियों को आदेश प्राप्त होने के 10 दिनों के भीतर अदालत के न्यायिक रजिस्ट्रार के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया था ताकि उन्हें उचित जेल भेजा जा सके. हालांकि, इसने सजा पर तीन महीने के लिए रोक लगा दी थी ताकि वे फैसले के खिलाफ अपील कर सकें.

इससे पहले, संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने कथित घटना की जांच के बाद इन पुलिसकर्मियों की पहचान की थी, जिसके वीडियो वायरल हो गए थे. सीजेएम ने हाईकोर्ट को रिपोर्ट भी सौंपी थी.

हाईकोर्ट ने डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले में जारी सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के कथित उल्लंघन के लिए उन्हें अवमानना का दोषी ठहराया था. व्यापक दिशानिर्देशों में किसी संदिग्ध को गिरफ्तार करने, हिरासत में लेने और पूछताछ करने के दौरान पुलिस को किस तरह का आचरण करना चाहिए और हिरासत में उनके साथ किस तरह का व्यवहार किया जाना चाहिए, इसके बारे में बताया गया है.

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आरोपी पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर पांच मुसलमानों को डंडे से पीटा और उन्हें एक खंभे से बांध दिया. ये पांचों उन 13 लोगों में से थे जिन्हें अक्टूबर, 2022 में नवरात्रि उत्सव के दौरान खेड़ा जिले के उंधेला गांव में एक गरबा कार्यक्रम में पथराव करने में कथित संलिप्तता के लिए उठाया गया था. कुछ ग्रामीण और पुलिस कर्मी कथित तौर पर घायल हो गए थे.

बाद में, मुख्य शिकायतकर्ता जहिरमिया मालेक सहित पांच आरोपियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और दावा किया था कि पुलिस अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करके अदालत की अवमानना की है.

मामले में शुरुआत में कुल 13 पुलिसकर्मियों को आरोपी बनाया गया था. हालांकि, जांच के बाद सीजेएम की रिपोर्ट में उनमें से केवल चार की भूमिका में बारे में प्रकाश डाला गया है.

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