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कोर्ट में हों फैसले, टीवी चैनल पर नहीं, ये अदालत के काम में दखल- सुप्रीम कोर्ट

सार्वजनिक मंच इस तरह की बहस के लिए सही जगह नहीं है- सुप्रीम कोर्ट

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भारत
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को कहा कि आपराधिक मुकदमों से संबंधित मामलों पर टीवी चैनलों पर बहस होना "आपराधिक न्याय में हस्तक्षेप" है. जस्टिस यूयू ललित और पीएस नरसिम्हा की बेंच ने कहा अपराध से संबंधित सभी मामले और कोई भी विशेष बात जो सबूत हो सकती है, ये कानून की अदालत द्वारा निपटाया जाना चाहिए, न कि टीवी चैनल के माध्यम से."

बेंच निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा को उम्र कैद में बदलने के कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली एक अपील पर सुनवाई करते हुए कहा,"सार्वजनिक मंच इस तरह की बहस के लिए सही जगह नहीं है, ऐसी कोई भी बहस या चर्चा जो न्यायालयों के क्षेत्र में हैं, उन्हें आपराधिक न्याय के प्रशासन में सीधेतौर पर हस्तक्षेप माना जाएगा."

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बेंच ने कहा कि एक डीवीडी, जिसमें दोषियों ने जांच अधिकारी के सामने अपराध स्वीकार किया था, इसे ट्रायल कोर्ट में चलाया गया था और इसी के आधार पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इस डीवीडी को एक पुलिस अधिकारी को सौंप दिया गया था जो कि इंडियन एविडेंस एक्ट का उल्लंघन है.

इस एक्ट की धारा 26 के अनुसार, एक आरोपी व्यक्ति द्वारा पुलिस के सामने की गई स्वीकारोक्ति को तब तक एविडेंस नहीं माना जा सकता जब तक कि इसे मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में न सौंपा गया हो.

बेंच ने यह कहा कि आरोपियों के पूरे बयान को दर्ज न कर केवल बयान के कुछ हिस्सों को रिकॉर्ड करके गुनाह साबित किया जाए तो यह भी इंडियन एविडेंस एक्ट का उल्लंघन है.

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कोर्ट ने कहा कि उस डीवीडी को टीवी पर भी चलाया गया. अदालत ने कहा, "जिस बात ने स्थिति को और बढ़ा दिया है वह यह है कि जांच एजेंसी द्वारा रिकॉर्ड की गई डीवीडी पर बयानों को उदय टीवी द्वारा 'पुट्टा मुट्टा' नामक एक कार्यक्रम में चलाया और प्रकाशित किया गया."

पीठ ने इसी पर कहा कि डीवीडी को एक निजी टीवी चैनल के हाथों में जाने की अनुमति देना, ताकि इसे चलाया जा सके और एक कार्यक्रम में प्रकाशित किया जा सके, यह आपके कर्तव्य की अवहेलना है और न्याय प्रशासन में सीधे हस्तक्षेप के अलावा और कुछ नहीं है.

कोर्ट ने कहा, अभियोजन पक्ष ने साक्ष्यों पर भरोसा किया और आरोपियों को बरी कर दिया.

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