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मॉब लिंचिंग: सरकार को SC की फटकार, बताए भीड़तंत्र से कैसे निपटेगी?

सुप्रीम कोर्ट ने 3 जुलाई को सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया था

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भारत
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सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में चल रही मॉब लिंचिंग पर केंद्र और राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र की जगह भीड़तंत्र नहीं ले सकता और इससे निपटने के लिए सरकारें अलग कानून बनाएं.

गोरक्षा के नाम पर होने वाली मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर कड़ा नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी अपने हाथ में कानून नहीं ले सकता, चाहे वो भीड़ क्यों ना हो. कोर्ट ने राज्यों को सख्त आदेश दिया है कि चार हफ्ते में निर्देश लागू करें सरकारें. साथ ही संसद इसके लिए कानून बनाए.

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सुप्रीम कोर्ट ने 3 जुलाई को सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया था

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ की बेंच ने कहा कि विधि सम्मत शासन बना रहे यह सुनिश्चित करते हुए समाज में कानून-व्यवस्था कायम रखना राज्यों का काम है. उसने कहा, ‘‘कोई भी इंसान कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते हैं, वे अपने-आप में कानून नहीं बन सकते.”

सुप्रीम कोर्ट ने 3 जुलाई को सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया था

दोषियों को मिले सख्त सजा

सुप्रीम कोर्ट ने संसद से कहा कि वह भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा से निपटने और ऐसी घटनाओ के दोषियों को सजा देने के लिहाज से नये प्रावधान बनाने पर विचार करे. कोर्ट ने देश में ऐसी घटनाओं पर कंट्रोल करने के लिहाज से गाइडलाइंस तय करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए ये बातें कहीं. कोर्ट ने तुषार गांधी और तहसीन पूनावाला की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की अगली तारीख 28 अगस्त तय की है.

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सुप्रीम कोर्ट ने 3 जुलाई को सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया था
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‘राज्य रोकें मॉब लिंचिंग की घटनाएं’

पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि राज्य मॉब लिंचिंग जैसी घटना न होने दें. ये उनकी जिम्मेदारी है. कोर्ट ने कहा, “ये सिर्फ कानून व्यवस्था का सवाल हीं बल्कि इस तरह की घटना अपराध है. इस मुद्दे कानून हो या नहीं लेकिन कोई भी समूह अपने हाथ में कानून नहीं ले सकता.”

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सुप्रीम कोर्ट ने 3 जुलाई को सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया था
मॉब लिंचिंग के मामले में एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि मॉब लिंचिंग के पीड़ितों को मुआवजे देने के लिए धर्म, जाति और लिंग को ध्यान मे रखा जाए. लेकिन कोर्ट ने कहा, ये ठीक नहीं हैं. पीड़ित सिर्फ पीड़ित होता है और उसे अलग कैटेगरी में नहीं बांटा जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने 3 जुलाई को सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया था

सुनवाई में केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि वो प्राइवेट लोगों के किसी भी विजिलेंटिज्म को समर्थन नहीं करती. लेकिन कानून व्यवस्था राज्य का काम है.

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राज्यों को जारी हुआ था नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने गोरक्षा करने वालों पर बैन की याचिका पर 6 राज्यों को नोटिस जारी किया था और कहा था कि ऐसी घटनाओं के मामले में रिपोर्ट पेश करें. ये नोटिस यूपी, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड और कर्नाटक को जारी किया गया था.

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