गुजरात में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के तौर पर सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति लगाने पर 2,989 करोड़ रुपये खर्च किए गए. इतनी बड़ी रकम से देश में आईआईटी के दो कैंपस, पांच आईआईएम कैंपस और मंगल अभियान के लिए इसरो के छह मिशन शुरू हो सकते थे.
यह राशि गुजरात सरकार की ओर से प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत अपनी योजनाओं को शामिल कराने के लिए भेजे प्रस्ताव की राशि से दोगुनी है. पटेल की मूर्ति बनाने में जितना खर्च हुआ उससे 40,192 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हो सकती थी. साथ ही 162 लघु सिंचाई योजनाओं की रिपेयरिंग, रिनोवेशन और रिस्टोरेशन हो सकता है. साथ ही 425 छोटे चैक डैम का निर्माण किया जा सकता है.
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गुजरात के किसान-आदिवासियों में मूर्ति को लेकर नाराजगी
गुजरत में किसानों और आदिवासियों के बीच सरदार पटेल की इस मूर्ति को लेकर नाराजगी है. इस प्रोजेक्ट पर की गई शाहखर्ची को लेकर उनके मन में गुस्सा है. ये मूर्ति जहां स्थापित की गई है उस इलाके के जल ग्रहण क्षेत्र में किसानों को पानी की समस्या की चिंता सता रही है. साथ ही वे मूर्ति की वजह से विस्थापित हुए लोगों के ठीक से पुनर्वास न होने से भी नाराज हैं.
मूर्ति निर्माण की वजह से गुजरात के नर्मदा जिले के 72 गांवों के 75 हजार आदिवासी प्रभावित हुए हैं. इन 72 गांवों में 32 काफी अधिक प्रभावित हैं. 19 गांवों में लोगों को मुआवजा तो मिल गया लेकिन उनका पुनर्वनास नहीं हुआ है. तेरह गांवों में वादे के मुताबिक लोगों को नौकरी और जमीन नहीं दी गई. छोटा उदेपुर, पंचमहल, बड़ोदरा और नर्मदा जिलों के 1500 किसानों के बीच इसे लेकर नाराजगी है.
मिंट की एक खबर में पॉलिटिकल एक्सपर्ट घनश्याम शाह के हवाले से कहा गया है कि जब राज्य में नर्मदा डैम में पानी कम होने से जल संकट है तो ऐसे वक्त में मूर्ति स्थापित करने का काम एक साल के लिए टाला जा सकता था.
इनपुट : इंडिया स्पेंड
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