अगर नोटबंदी को लेकर आपके दिमाग में उथल-पुथल चल रही है. कई तरह के सवालों के जवाब नहीं मिल रहे. तय नहीं कर पा रहे हों कि इस अफरा-तफरी के बीच आपका क्या फायदा है और क्या नुकसान?
ऐसे में ये 20 प्वांइटस आपको इस स्कीम के नफे-नुकसान समझाने में जरूर मदद करेंगे. पढ़िए ये 20 प्वांइट्स...
1. पब्लिक सपोर्ट का मतलब
पीएम नरेंद्र मोदी का कहना है कि उन्होंने कालेधन के खिलाफ लड़ाई छेड़ी है. परसेप्शन बनाने की कोशिश हो रही है कि इससे गरीबों को फायदा होगा. देश के लिए यह फैसला लाॅन्ग टर्म के लिए फायदेमंद साबित होगा. टैक्स की ज्यादा वसूली होगी और ज्यादा लोग टैक्स देने लगेंगे. इसलिए दलील है कि लोग शार्ट टर्म के लिए तकलीफ सहने के लिए तैयार हो जाएं.
लेकिन पेंच ये है कि यह शाॅर्ट टर्म कितना शाॅर्ट होगा ये अभी तक साफ नहीं हुआ है. 3 महीने, 6 महीने या फिर 1 साल तक, लोग कितने दिन की तकलीफ सहने के लिए खुद को तैयार करें. लेकिन अगर करप्शन कम नहीं हुआ और ना ही काला धन और तकलीफें अलग से तो पब्लिक का क्या मूड होगा पता नहीं?
2. कोर्ट क्यों शांत है?
सुप्रीम कोर्ट ने ब्लैक मनी पकड़ने के लिए बढ़-चढ़ कर एसआइटी (SIT) बनाई थी. मुश्किल ये है कि अब इस कदम के खिलाफ कैसे नजर आएं?
नोटबंदी को लेकर PIL (जनहित याचिका) डाली गई. लोगों को उम्मीद थी कि 25 नवंबर को सुनवाई होगी और कुछ सही रास्ता निकलेगा. लेकिन इस सुनवाई को टाल दिया गया.
इतनी अफरा-तफरी मच रही है. लोगों के अधिकारों जैसे राइट टू लिबर्टी, राइट टू प्रॉपर्टी के उल्लंघन की बात एक्सपर्ट कर रहे हैं. लेकिन कोर्ट फिर भी स्लो मोशन में..
3. मोदी जी को क्या चाहिए?
मोदी जी को चाहिए कुछ विलेन और बहुत बड़ा आंकड़ा जिसे वो चीख-चीख कर बता सकें कि उन्होंने इतना कालाधन पकड़ लिया है. और इसका फायदा वो गरीबों और किसानों को देने वाले हैं.
एक पहलू ये भी है कि चूंकि कैंसल किए गए कैश का 60% वापस बैंकों में आ चुका है तो शायद पीएम मोदी जी थोड़ा घबरा गए होंगे और इसलिए नया इनकम डिक्लेरेशन स्कीम लाया गया है ताकि डरा-धमका कर कुछ बड़ी रकम को सरकारी खजाने में लाया जाए.
लेकिन पिछले कुछ दिनों की घटनाओं से यह तो साफ है कि देश में भारी मात्रा में काला धन है, लेकिन कैश में यह फिर भी कम है. और यही बात तो एक्सपर्ट पहले दिन से बोल रहे हैं.
4. जन-धन योजना हीरो भी विलेन भी
सरकार ने जन-धन अकाउंट पर कोई बंदिश नहीं लगाई थी लेकिन अंत में इसपर भी नया नियम ले आया गया. अब एक महीने में KYC वाले 10 हजार की रकम निकाल सकते हैं और बिना KYC के सिर्फ 5 हजार रुपए ही निकाले जा सकते हैं.
जन-धन हीरो इसलिए बना क्योंकि इसके जरिए मोदी जी गरीबों तक अपनी पहुंच बना रहे हैं. लेकिन अब अकाउंट होल्डर पर सख्ती, उन्हीं को शक की नजर से देखा जा रहा है. आरोप लग रहे हैं कि उन अकाउंट के जरिए काला धन सफेद हो रहा है. तो पहले तय कर लीजिए जन -धन अकाउंट वाले हीरो हैं या विलेन?
5. ममता क्यों कूदी?
मौजूदा सरकार की विरोधी ममता बनर्जी ये अच्छे से जानती हैं कि अगर सरकार की ये स्कीम फेल होती है तो इसका सबसे ज्यादा राजनीतिक फायदा विरोध करने वाली पार्टी को मिलेगा. इसलिए उन्होंने इसके लिए खुद को पोजिशन करना शुरु कर दिया है.
6.कांग्रेस क्यों ठंडी?
इतना तो साफ है कि देश कालाधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ है. सभी कालाधन से छुटकारा चाहते हैं. ऐसे में कांग्रेस सहित कई पार्टियां देशवासियों का मूड नहीं भांप पा रही. इसलिए वो अचानक से इसके खिलाफ चिल्लाती हैं और फिर शांत हो जा रही हैं. उनके भीतर असमंजस की स्थिति है.
7. अरविंद सुब्रमण्यम क्यों चुप?
देश में आर्थिक आपातकाल जैसी स्थिति है. बैंक के बाहर लाइन देख कर तो यही लग रहा है. कैश की तंगी से कारोबार बंद हो रहे हैं. सिस्टम में कब पर्याप्त कैश होगा पता नहीं. लेकिन इतने बड़े आर्थिक फैसले पर देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम की चुप्पी खल रही है.
क्या वो इतने असहाय महसूस कर रहे हैं या फिर उन्हें अपनी सहमति-असहमति जाहिर करने की छूट नहीं मिल रही?
8. क्या 500 का नोट बंद करना बड़ी गलती?
2000 के नए नोट आए जो लोगों के लिए समस्या बन गया. छुट्टे की कमी होने लगी. ऐसे में 500 के नोट को बंद करना गलती है. फाइनेंस मिनिस्ट्री के आंकड़े की बात करें तो 2011 से 2016 तक की ट्रांजैक्शन करेंसी 500 का नोट ही थी.
9. काले का सफेद कितने में?
डिमाॅनेटाइजेशन के बाद अचानक कालेधन को सफेद करने वाला लाॅन्ड्री मार्केट खड़ा हो गया. चार नए स्लैब मार्केट में बन गए.
- 2.5 लाख तक की रकम सफेद करने का काम 10% की रेट पर.
- व्यापारी, कारोबारी के साथ लेन-देन करने वालों का काम 20% की रेट पर.
- करोड़ वालों में ये रेट 30% चल रहा है.
- बहुत बड़ी रकम रखने वालों के लिए रेट 33% है जो मौजूदा टैक्स रेट है.
एक चीज और कि जो 9 लाख रुपए वापस धुल कर सिस्टम में आए अगर उसकी धुलाई करने वाले 10% जुगाड़बाजों की भी बात करें तो उन्होंने लगभग 35 हजार करोड़ रुपए कि कमाई कर ली है.
10. कितने नए जुगाड़ धंधे खड़े हो गए?
- जनधन अकाउंट होल्डर
- नए बैंक अकाउंट खुले
- बैंक कर्मचारियों ने रिश्वत लेकर पैसे कन्वर्ट किए
- बिल्डरों से पुराने नोट देकर सौदे किए गए
- चूंकि किसानों पर कोई टैक्स नहीं लगता इसलिए ये सबसे आसान रास्ता बना उनके जरिए कालेधन को सफेद करने के लिए.
- कारोबारियों में नफे-नुकसान की खरीद-बिक्री का बिजनेस (एंट्री कारोबार) और लोन की लेन-देन बढ़ी.
- लेन-देन में सोना और डाॅलर का इस्तेमाल भरपूर हुआ.
- सीए, बैंक एंप्लाॅइज और इनकम टैक्स आॅफिसर. इस त्रिमूर्ति ने कई तरीके ढूंढे कमाई के.
11. गलतियों का ठीकरा किसके सर?
नोटबैन के बाद इतने दिनों में नए नियम का आना, बदलना, खत्म होना, फिर वापस आना चलता रहा. सरकार लोगों का गोल पोस्ट शिफ्ट करती रही. ये बताता है कि सरकार ने इसके लिए पुख्ता तैयारी नहीं की थी.
भले ही अभी इस स्कीम को सफल करने के लिए इसपर चर्चा नहीं हो रही हो लेकिन अगर ये फ्लाॅप हुई तो गलती का ठीकरा पीएमओ, आरबीआई, फाइनेंस मिनिस्ट्री और प्रिंटिंग वाले मास्टरप्लान करने वालों में से किसी एक पर फूटेगा.
अब देखना ये है कि इनमें से गलती किसकी है और कौन सूली पर चढ़ेगा?
12. हिट या फ्लाॅप?
कैंसल किए गए 14 लाख करोड़ रुपए वापस सिस्टम में आ गए तो ये स्कीम सुपर फ्लाॅप है. और अगर मामूली रकम ही वापस आ पाया तो भी ये फ्लाॅप साबित होगी. क्योंकि इतनी मुश्किल और जनता के दर्द के बाद इतना मामूली फायदा सरकार पर सवाल खड़ा करेगी कि उन्होंने इसे लागू करने से पहले काॅस्ट बेनीफिट एनालिसीस किया था क्या?
13. मोदी का अगला कदम
1 जनवरी की स्पीच की तैयारी चल रही होगी. किसानों और गरीबों के लिए बड़े स्कीम लाए जाने पर युद्धस्तर पर काम चल रहा होगा. ये बात हो रही होगी कि पैसों को जन-धन अकाउंट में सीधे ट्रांसफर किया जाए या कर्जमाफी जैसा दूसरा तरीका अपनाया जाए.
14. इकॉनमी का क्या होगा?
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि इस फैसले से देश के विकास दर में 2% तक की गिरावट आएगी.
कई दूसरी एजेंसियों का अनुमान है कि विकास दर 1 से 3% तक लुढ़क जाएगी. आपको बता दें कि विकास दर में 1% की कमी का मतलब इकॅानमी को 1 लाख 50 हजार करोड़ रुपए का नुकसान है. तो विकास की रफ्तार में कमी की तैयारी कर लीजिए. संकेत तो मिलने शुरू होने लगे हैं.
15. नौकरी मिलेगी?
भारत में जितने भी असंगठित क्षेत्र यानी कि अनआॅर्ग्नाइज्ड सेक्टर हैं वो कैश पर ही चलते हैं. वहां कामगारों की छंटनी शुरु हो चुकी है. इकाॅनमी अगर स्लो डाउन होती है तो इनपर गाज गिरना तय है.
जिनकी नौकरी जाएगी उन्हें डिमाॅनेटाइजेशन का फायदा पीएम मोदी आखिर कैसे समझा पाएंगे?
16. लेस कैश या मोर?
फिलहाल सिस्टम ऐसा हो गया है कि लोग ज्यादा से ज्यादा कैश अपने पास रखना चाह रहे हैं.
ये कैशलेस इकाॅनमी को सपोर्ट करते इस स्कीम से ठीक उलट है. लोगों के दिमाग में किसी भी अप्रत्याशित फैसले को लेकर डर है इसलिए वो अपने पास ज्यादा कैश जमा करना चाह रहे हैं. तो फिर लेस कैश या मोर?
17. बैंक क्या कर रहे हैं?
देश का पूरा का पूरा बैंकिंग सिस्टम नोटबैन के बाद की स्थिति को संभालने में भिड़ा पड़ा है. सारे नाॅर्मल काम ठप्प पड़ गए हैं. बैंकों का मुख्य काम कर्ज देना है जिससे बैंकों की कमाई होती है लेकिन वो भी ठप्प है. अगले कुछ महीनों तक तो स्थिति के ऐसे ही बने रहने के आसार हैं. बैंकों में रेगुलर कामकाज का फार्मेट लौटने में वक्त लगेगा.
18. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट क्या करेंगे?
हमारे इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की कैपेसिटी है कि वो हर साल लगभग 6 से 7 लाख केसों का निपटारा करती हैं. लेकिन जिस तरह से मामलों को सामने लाने के लिए धमकाया जा रहा है अगर 1 करोड़ मामले आ जाए तो इनको इंवेस्टिगेट करने में लगभग 12 साल का समय सरकार को लग जाएगा.
19. नेपाल-भूटान और नोटबैन!
नेपाल-भूटान आने-जाने में वीजा नहीं लगता. वहां ये नोट चल रहे हैं. ऐसे में लोग आसानी से आवागमन कर अपने काले पैसों को सफेद करने में जुट गए हैं.
एक और लास्ट प्वाइंट जिसे इग्नोर नहीं किया जा सकता.....
20. घर में क्या चल रहा है?
कामवाली बाई शक की निगाह से देख रही है कि पता नहीं मालिक ने कितना कालाधन छिपा रखा है? बच्चे डिमांड पूरी नहीं होने पर चिड़चिड़े हो रहे हैं. पत्नी गुस्से में है कि घर में न तो कानाधन है और न ही सफेद धन.
करें तो करें क्या?
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