भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई (Ranjan Gogoi) द्वारा हाल ही में एक इंटरव्यू में की गई टिप्पणी को लेकर तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद मौसम नूर ने उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव दायर किया है. इंटरव्यू में जस्टिस गोगोई की टिप्पणी- "जब मेरा मन करता है, मैं राज्यसभा जाता हूं” को लेकर प्रस्ताव में आरोप लगाया गया है कि बयान से विशेषाधिकार का का उल्लंघन हुआ है और सदन की गरिमा को ठेस पहुंची है.
अगर राज्यसभा के सभापति विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव को योग्य मानते हैं, तो इसे हाउस प्रिविलेज कमेटी को आगे भेजा जा सकता है. कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर, यदि राज्यसभा में एक विशेषाधिकार प्रस्ताव पारित किया जाता है, तो सदस्य अपनी राज्यसभा सदस्यता खो देते हैं.
पूर्व CJI रंजन गोगोई ने इंटरव्यू में क्या कहा था ?
9 दिसंबर को प्रसारित NDTV के साथ इंटरव्यू के दौरान जस्टिस गोगोई से संसद में उनकी उपस्थिति के बारे में पूछा गया था. पूर्व CJI ने जवाब देते हुए कहा कि “आपने इस बात को नजरअंदाज किया कि एक या दो सत्रों के लिए मैंने सदन को एक पत्र सौंपा था जिसमें कहा गया था कि कोविड-19 के कारण (चिकित्सकीय सलाह के आधार पर) मैं सत्र में शामिल नहीं होऊंगा.”
“सोशल डिस्टेंसिंग के नियम लागू किए गए हैं, उनका पालन नहीं किया जा रहा है. बैठने की व्यवस्था मुझे बहुत सहज नहीं लगती. जब मेरा मन करता है, जब मुझे लगता है कि महत्वपूर्ण मामले हैं जिन पर मुझे बोलना चाहिए, मैं राज्यसभा जाता हूं, मैं एक मनोनीत सदस्य हूं, किसी पार्टी के व्हिप द्वारा शासित नहीं हूं. इसलिए जब भी पार्टी के सदस्यों के आने की घंटी बजती है तो वह मुझे बांधती नहीं है. मैं वहां अपनी मर्जी से जाता हूं और अपनी मर्जी से बाहर आ जाता हूं”जस्टिस गोगोई
इंटरव्यू में उन्होंने एक और विवादित टिप्पणी की थी. CJI के रूप में रिटायर होने के ठीक चार महीने बाद उनके राज्यसभा में शामिल होने के बारे में पूछे जाने पर, जस्टिस गोगोई ने कहा कि,
"राज्य सभा के बारे में क्या जादू है? अगर मैं एक ट्रिब्यूनल का अध्यक्ष होता तो वेतन और परिलब्धियों के मामले में बेहतर होता. मैं राज्यसभा से एक पैसा नहीं ले रहा हूं."
गौरतलब है कि संसद के रिकॉर्ड के अनुसार जस्टिस गोगोई ने मार्च 2020 के बाद से संसद की सभी बैठकों में से 10 प्रतिशत से भी कम में मौजूद रहे हैं.
विवादों से रहा है पुराना नाता
अप्रैल 2019 में, सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने भारत के तत्कालीन CJI रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. यह पहली बार था जब भारत में न्यायपालिका का शीर्ष पद संभालने वाला कोई जज इस तरह के गंभीर आरोप का सामना कर रहा था.
एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली ही बेंच ने सुनवाई के लिए केस को अपने पास लिया. प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध होने के आरोपों से इनकार करते हुए, जस्टिस गोगोई ने दावा किया था कि यह CJI के कार्यालय के खिलाफ एक साजिश थी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)