आज से 44साल पहले साल 1975 में 26 जून की सुबह रेडियो पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक ऐसी घोषणा की, जिससे पूरा देश स्तब्ध रह गया. रेडियो पर इंदिरा गांधी की आवाज में संदेश गूंजा, जिसे पूरे देश में सुना गया. संदेश में इंदिरा ने कहा, 'भाइयों, बहनों... राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है. लेकिन इससे सामान्य लोगों को डरने की जरूरत नहीं है.'
लेकिन इस ऐलान के बाद देश में हाहाकार मच गया. सरकार की आलोचना करनेवालों को जेलों में ठूंस दिया गया. लिखने, बोलने यहां तक कि सरकार के खिलाफ होने वाले विचारों तक पर पाबंदी लगा दी गई.
44 साल पहले जिन लोगों ने आपातकाल का दौर देखा, वही उस दौर के दर्द को समझ सकते हैं. लेकिन उस दौर के बारे में हमारे जेहन में कुछ सवाल उठते हैं. मसलन, आपातकाल होता क्या है? क्यों लगाया जाता है? इसके प्रभाव क्या होते हैं? तो आइए जानते हैं आपातकाल से जुड़े इसी तरह के सवालों के जवाब.
आखिर 'आपातकाल' होता क्या है?
आपातकाल भारतीय संविधान में एक ऐसा प्रावधान है, जिसका इस्तेमाल तब किया जाता है, जब देश को किसी आंतरिक, बाहरी या आर्थिक रूप से किसी तरह के खतरे की आशंका होती है.
आपातकाल की जरूरत क्यों है?
संविधान निर्माताओं ने आपातकाल जैसी स्थिति की कल्पना ऐसे वक्त को ध्यान में रखकर की थी, जिसमें देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा खतरे में हो. इसी को ध्यान में रखकर कुछ ऐसे प्रावधान बनाए गए, जिसके तहत केंद्र सरकार बिना किसी रोक टोक के गंभीर फैसले ले सके.
उदाहरण के लिए अगर कोई पड़ोसी देश हम पर हमला करता है, तो हमारी सरकार को जवाबी हमले के लिए संसद में किसी भी तरह का बिल पास न कराना पड़े. चूंकि हमारे देश में संसदीय लोकतंत्र है, इसलिए हमारे देश को किसी भी देश से युद्ध करने के लिए पहले संसद में बिल पास कराना होता है. लेकिन आपात स्थितियों के लिए संविधान में ऐसे प्रावधान हैं, जिसके तहत केंद्र सरकार के पास ज्यादा शक्तियां आ जाती हैं और केंद्र सरकार अपने हिसाब से फैसले लेने में समर्थ हो जाती है. केंद्र सरकार को शक्तियां देश को आपातकालीन स्थिति से बाहर निकालने के लिए मिलती हैं.
संविधान में तीन तरह के आपातकाल का प्रावधान
भारतीय संविधान में तीन तरह के आपातकाल का जिक्र है.
- राष्ट्रीय आपातकाल (नेशनल इमरजेंसी)
- राष्ट्रपति शासन (स्टेट इमरजेंसी)
- आर्थिक आपातकाल (इकनॉमिक इमरजेंसी)
1. नेशनल इमरजेंसी (अनुच्छेद 352)
देश में नेशनल इमरजेंसी का ऐलान विकट परिस्थितियों में किया जा सकता है. इसका ऐलान युद्ध, बाहरी आक्रमण और राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर किया जा सकता है. आपातकाल के दौरान सरकार के पास तो असीमित अधिकार हो जाते हैं, जिसका इस्तेमाल वह किसी भी रूप में कर सकती है, लेकिन आम नागरिकों के सारे अधिकार छीन लिए जाते हैं. नेशनल इमरजेंसी को कैबिनेट की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जाता है.
इस आपातकाल के दौरान संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों का अनुच्छेद 19 खुद-ब-खुद निलंबित हो जाता है. लेकिन इस दौरान अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 अस्तित्व में बने रहते हैं.
2. राष्ट्रपति शासन या स्टेट इमरजेंसी (अनुच्छेद 356)
संविधान के अनुच्छेद 356 के अधीन राज्य में राजनीतिक संकट को देखते हुए संबंधित राज्य में राष्ट्रपति आपात स्थिति का ऐलान कर सकते हैं. जब किसी राज्य की राजनीतिक और संवैधानिक व्यवस्था फेल हो जाती है या राज्य, केंद्र की कार्यपालिका के किन्हीं निर्देशों का अनुपालन करने में असमर्थ हो जाता है, तो इस स्थिति में ही राष्ट्रपति शासन लागू होता है.
इस स्थिति में राज्य के सिर्फ न्यायिक कार्यों को छोड़कर केंद्र सारे राज्य प्रशासन अधिकार अपने हाथों में ले लेता है. कुछ संशोधनों के साथ इसकी सीमा कम से कम 2 महीने और ज्यादा से ज्यादा 3 साल तक हो सकती है. आमतौर पर जब राज्य सरकारें संविधान के मुताबिक सरकार चलाने में विफल हो जाती हैं, तो केंद्र की सिफारिश पर राष्ट्रपति आपातकाल घोषित कर देते हैं.
3. आर्थिक आपात (अनुच्छेद 360)
वैसे तो देश में अब तक आर्थिक आपातकाल लागू नहीं हुआ है. लेकिन संविधान में इसे अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है. अनुच्छेद 360 के तहत आर्थिक आपात की घोषणा राष्ट्रपति उस वक्त कर सकते हैं, जब उन्हें लगे कि देश में ऐसा आर्थिक संकट बना हुआ है, जिसके कारण भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा है.
अगर देश में कभी आर्थिक संकट जैसे विषम हालात पैदा होते हैं और सरकार दिवालिया होने के कगार पर आ जाती है या फिर भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होने की कगार पर आ जाती है, तब इस आर्थिक आपात के अनुच्छेद का इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसी आपात स्थिति में आम नागरिकों के पैसों और संपत्ति पर देश का अधिकार हो जाएगा.
बता दें कि भारतीय संविधान में जिन तीन आपात स्थितियों का जिक्र किया गया है, उनमें से आर्थिक आपात को छोड़कर बाकी दोनों लागू हो चुके हैं.
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