ज्यादा पढ़ा-लिखा होना रोजगार की गारंटी तो नहीं है. NSO के ताजा डेटा में ये बात सामने आई है. दरअसल, आकंड़े बताते हैं कि 2017-18 में शहरी क्षेत्रों में जहां 2.1% अशिक्षित पुरुष बेरोजगार थे, वहीं ये आंकड़ा कम से कम सेकेंडरी एजुकेशन हासिल करने वालों के लिए 9.2% था. मतलब की अशिक्षित लोगों से ज्यादा बेरोजगार शिक्षित लोग थे.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षित और अशिक्षित बेरोजगारों के बीच का यह फासला शहरी महिलाओं के बीच तो और भी ज्यादा था. 2017-18 में जहां 0.8% अशिक्षित शहरी महिलाएं बेरोजगारी थीं, वहीं 20% शिक्षित शहरी महिलाएं बेरोजगार थी.
बता दें कि आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, देश में बेरोजगारी की दर 45 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई है. देश में जुलाई 2017 से लेकर जून 2018 के दौरान एक साल में बेरोजगारी 6.1 फीसदी बढ़ी.
कम लोग नौकरी मांगने आ रहे हैं
Labour Force Participation Rate (LFPR) की भी हालत खराब. LFPR बताती है कि कितने लोग नौकरी मांगने बाजार में आ रहे हैं. साल 2011-12 में करीब 40 फीसदी की तुलना में ये दर वर्ष 2017-18 में 36 फीसदी तक गिर गया. विकसित देशों में LFPR की दर 60 फीसदी के करीब होती है. बीते समय में अपने देश में भी ये दर 40-45 फीसदी के बीच रही है. मतलब नौकरियां नहीं मिल रही हैं और लोगों को नौकरी मिलने की उम्मीद भी कम ही है. बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2011-12 की तुलना में अब कम ही लोग रोजगार तलाश रहे हैं. रोजगार तलाशने वालों में भी करीब 20 फीसदी युवाओं को रोजगार नहीं मिलता.
ये तमाम आंकड़े और उसके पीछे की वजह चुनाव से पहले ही सामने आ गए थे. सरकार ने पहले लीक हुई आधिकारिक रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा था कि बेरोजगारी के आंकड़ों को अभी अंतिम रूप नहीं दिया गया है.
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