H-1B वीजा पर अमेरिका जाने की हसरत रखने वाले आईटी और टेक्नोलॉजी पेशेवरों के लिए मौके घट सकते हैं. ट्रंप प्रशासन वीजा एप्लीकेशन की फीस बढ़ा सकता है. बढ़ी हुई फीस से इकट्ठा रकम अमेरिकी युवाओं की टेक्नोलॉजी ट्रेनिंग में खर्च होगी.
अमेरिकी संसद की कमेटी को श्रम मंत्रालय ने दी जानकारी
अमेरिकी श्रम मंत्री अलेक्जेंडर अकोस्टा ने कांग्रेस की एक कमेटी को 1 अक्टूबर को बताया कि H-1B वीजा की आवेदन फीस बढ़ सकती है. फीस कितनी बढ़ेगी और किस कैटगरी के लिए यह लागू होगी इस बारे में नहीं बताया गया.
भारतीय आईटी कंपनियों पर बढ़ेगा दबाव
अमेरिकी सरकार ने फीस बढ़ाई तो H-1B पर आईटी इंजीनियरों को अमेरिका भेजने वाली भारतीय कंपनियों की लागत बढ़ जाएगी. इसका असर उनके मुनाफे पर पड़ सकता है. साथ ही इस वीजा पर कम आईटी पेशेवर अमेरिका भेजे जा सकते हैं.
टेक्नोलॉजी कंपनियां भारत और चीन से हजारों आईटी पेशेवरों को H-1B वीजा पर अमेरिका भेजती हैं. लेकिन अमेरिकी सरकार का कहना है कि इससे अमेरिकी पेशेवरों की नौकरियों के मौके कम हो रहे है. इसी तर्क के आधार पर ट्रंप प्रशासन H-1B वीजा से जुड़े नियमों में बदलाव कर रहा है. सोमवार को अमेरिकी न्यूजपेपर सिएटेल टाइम्स ने खबर छापी थी कि इमिग्रेशन विभाग कुशल विदेशी पेशेवरों के चार वीजा आवेदनों में से एक को रद्द कर रहा है.
अकोस्टा ने अमेरिकी संसद की कमेटी को बताया कि श्रम विभाग ने पिछले साल हर सेक्टर के लिए पहली बार अप्रेंटिसशिप फंडिंग योजना लांच की थी. इसके तहत इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी, हेल्थकेयर और एडवांस्ड मैन्यूफैक्चरिंग के अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम में खर्च करने वाले फंड को वीजा की बढ़ी फीस से मदद मिल सकती है.
भारतीय आईटी कंपनियों की ओर से H-1B वीजा के लिए काफी आवेदन दिए जाते हैं. H-1B नॉन इमिग्रेशन वीजा है, जिस पर कंपनियां कुशल पेशेवरों को अमेरिकी कंपनियों के लिए काम करने के लिए भेजती हैं.
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