कट्टर हिन्दुओं की भीड़ मुस्लिमों के दुकानों के बीच से नारे लगाते गुजर रही है, मुस्लिम परिवार को क्षेत्र छोड़कर जाने का अल्टीमेटम दिया जा रहा है और 'लव-जिहादियों' के खिलाफ रैलियां निकाली जा रही हैं- कुछ ऐसे दृश्य बता रहें कि पिछले कुछ हफ्तों में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले (Uttarakhand's Uttarkashi) में जीवन कैसा रहा है.
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे ऐसे दृश्यों ने चिंता बढ़ाई है लेकिन इसके बावजूद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं. उत्तरकाशी जिले के दो दिवसीय दौरे पर आए सीएम धामी रविवार, 11 जून को एक गांव में खेत जोतते और मंडुवे की बुआई करते दिखे.
इससे पहले शुक्रवार को सीएम धामी ने मीडिया से कहा था कि सरकार ने लव जिहाद के मामलों की सख्त जांच और कार्रवाई की मांग की है. सीएम ने आगे कहा, "लव जिहाद हो या लैंड जिहाद, हम उसके खिलाफ सख्ती से काम कर रहे हैं" और "लोग वेरिफिकेशन के बाद ही उत्तराखंड में रह पाएंगे."
लेकिन सीएम ने अभी तक जिले से मुस्लिम परिवारों को दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा दिए गए अल्टीमेटम के बारे में कोई बयान नहीं दिया है.
जैसे-जैसे तनाव बढ़ता जा रहा है, द क्विंट आपके लिए उन घटनाओं की एक सीक्वेंस लेकर आया है जिससे हालात यहां तक पहुंच गए हैं.
'लव जिहाद' का मामला जो है ही नहीं
26 मई को, जितेंद्र सैनी और उबैद खान नाम के दो लोगों को कथित रूप से उत्तरकाशी के पुरोला कस्बे में एक नाबालिग लड़की का अपहरण करने की कोशिश करते हुए पकड़ा गया था. लड़की को घर वापस भेज दिया गया और दोनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उनपर आईपीसी की धारा 363 (अपहरण) 366A (नाबालिग लड़की की खरीद) के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया.
भले ही आरोपियों में से एक हिंदू है, दूसरे के मुस्लिम होने ने 'लव जिहाद' के संदेह और अफवाहों को जन्म दिया. यह जल्द ही शहर में जंगल की आग की तरह फैल गया.
'लव जिहाद' हिंदुत्व दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा गढ़ा गया एक शब्द है, जिसका अर्थ है कि मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं को प्यार का झांसा देकर केवल इसलिए 'फंसाते' हैं, ताकि उन्हें इस्लाम धर्म में कन्वर्ट किया जा सके.
हालांकि, द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, मामले के एक जांच अधिकारी ने 'लव जिहाद' से कोई लेना-देना होने से इनकार किया है. अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है, "लड़की इन लोगों को नहीं जानती थी ... कोई लव जिहाद एंगल नहीं है."
इसके अलावा, उत्तराखंड में पहले से ही जबरन-धर्मांतरण विरोधी कानून (anti-forceful religious conversion law) मौजूदा है, जिसे लोकप्रिय रूप से 'लव जिहाद' कानून कहा जाता है. लेकिन इस मामले में ऐसा कोई अधिनियम लागू नहीं किया गया है.
रैलियों, पोस्टरों में मुसलमानों को 'गंभीर परिणाम भुगतने' की धमकी
इसके बाद जल्द ही, क्षेत्र में तनाव फैल गया. 29 मई को दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा पुरोला में एक बड़ी रैली निकाली गई, जिसमें मुसलमानों को शहर छोड़ने की मांग की गई. रैली के वीडियो वायरल हुए. इसमें पुलिस की मौजूदगी के बावजूद भीड़ को मुस्लिमों की दुकानों पर हमला करते देखा जा सकता है.
इसके बाद, इलाके में मुस्लिमों के दुकानों पर चिपकाए गए पोस्टर देखे गए. इसमें उन्हें "गंभीर परिणाम" भुगतने की धमकी दी गई थी.
पोस्टर पर लिखा था, "लव जिहादियों को सूचित किया जाता है कि दिनांक 15 जून 2023 को होने वाली महापंचायत होने से पूर्व अपनी दुकानें खाली कर दें, यदि तुम्हारे द्वारा ऐसा नहीं किया जाता तो वह वक्त पर निर्भर करेगा. देवभूमि रक्षा अभियान."
पुलिस ने पोस्टर लगाने के मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की है.
मुसलमानों का उत्पीड़न पुरोला तक ही सीमित नहीं था. पास के बरकोट शहर में मुस्लिमों की दुकानों के शटर पर काले क्रॉस का निशान लगा हुआ था.
इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं. सोशल मीडिया पर कई लोगों ने कहा कि यह नाजी जर्मनी की याद दिलाता है, जब यहूदी व्यापारियों को इसी तरह से निशाना बनाया गया था.
मुस्लिम बीजेपी अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रमुख को घर छोड़ना पड़ा
उत्तरकाशी में बीजेपी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रमुख मोहम्मद जाहिद को पुरोला छोड़कर जाना पड़ा, जहां वे 25 वर्षों से अधिक समय से रह रहे थे.
जाहिद कपड़े की दुकान चलाते हैं. उन्होंने 6 जून की शाम को अपनी दुकान बंद कर दी और शहर छोड़ दिया. जाहिद तीन साल पहले बीजेपी में शामिल हुए थे और क्षेत्र में एक लोकप्रिय व्यक्ति रहे हैं.
जाहिद ने द हिंदू को बताया कि उन्होंने अपनी पार्टी बीजेपी से उनका समर्थन करने के लिए कहा, लेकिन उन्हें चुप रहने के लिए कहा गया. जाहिद ने कहा, 'जब हम सुरक्षित नहीं है तो बताइये कौन सा मुसलमान सुरक्षित होगा वहां'.
पलायन की खबर से पुलिस का इनकार
पुलिस अधीक्षक अर्पण यदुवंशी ने कहा कि उन्होंने मीडिया रिपोर्टों में पढ़ा है कि कई मुस्लिम परिवार शहर छोड़कर भाग गए हैं. यदुवंशी ने द क्विंट को बताया, "हमने कई फ्लैग मार्च और समुदायों के साथ शांति बैठकें की हैं."
पुरोला थाने के एसएचओ खजान सिंह चौहान के मुताबिक कस्बे से मुस्लिम परिवारों का पलायन नहीं हुआ है. चौहान ने द क्विंट को बताया, "यह सच नहीं है. केवल एक या दो वैसे दुकानदार जो आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं, छोड़कर गए हैं."
विश्व हिंदू परिषद का अल्टीमेटम
मुस्लिम दुकानों पर लगे पोस्टरों पर 15 जून की महापंचायत की धमकी के अलावा अन्य अल्टीमेटम भी जारी किए गए हैं.
5 जून को टिहरी गढ़वाल जिला प्रशासन को संबोधित एक पत्र में, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने कहा कि स्थानीय लोगों ने 'विशेष समुदाय' को उत्तराखंड के कई स्थानों को छोड़ने के लिए 10 दिनों का समय दिया है. विहिप ने अपने पत्र में लिखा है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे हिंदू युवा वाहिनी और टिहरी गढ़वाल व्यापर मंडल के साथ मिलकर 20 जून को विरोध स्वरूप हाईवे जाम कर देंगे.
पत्र में दावा किया गया है कि उक्त समुदाय के लोग कबाड़ी वाले, आइसक्रीम बेचने वाले के रूप में लगातार घूमते हैं. इससे उत्तराखंड की बेटी, चोटी और रोटी तथा पूर्वजों के धरोहर पर खतरे बढ़ता जा रहा है.
अरबाब अली के इनपुट्स के साथ
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)