उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता के बीच कई ऐसे मुद्दे हैं, जो कभी ठीक से सामने नहीं आ पाते हैं. इनमें पलायन, स्वास्थ्य व्यवस्थाएं और बदहाल शिक्षा व्यवस्था जैसे गंभीर मुद्दे शामिल हैं. लेकिन इस बार चुनाव से ठीक पहले एक और मुद्दे ने जोर पकड़ लिया है और इसे उठाने वाले नेता नहीं बल्कि उत्तराखंड के हजारों-लाखों युवा हैं. ये मुद्दा है भू कानून का, युवाओं की मांग है कि उत्तराखंड में एक सख्त भू कानून जल्द से जल्द लागू किया जाए.
आखिर क्यों हो रही भू कानून की मांग?
ये मुद्दा उत्तराखंड में आने वाले चुनावों के दौरान सबसे बड़ा मुद्दा बनकर सामने आ सकता है. क्योंकि इसे राज्य के लगभग हर युवा का समर्थन मिल रहा है. तो आखिर क्या है ये भू कानून का मुद्दा, जिसकी चिंगारी अब आग बनकर पूरे उत्तराखंड में फैल रही है.
दरअसल उत्तराखंड जैसे छोटे और पहाड़ी राज्य में फिलहाल कोई भी सख्त भू कानून लागू नहीं है. इसका सीधा मतलब है कि यहां आकर कोई भी कितनी भी जमीन अपने नाम से खरीद सकता है. पहाड़ी राज्यों में सस्ते दामों पर जमीन खरीदकर उसे बाहरी लोग अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. लोगों का आरोप है कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बाहरी हस्तक्षेप से यहां की संस्कृति को बड़ा खतरा है. इसीलिए अब एक सख्त भू कानून की मांग छिड़ गई है.
बीजेपी सरकार ने खत्म किया कानून
लेकिन क्या उत्तराखंड में पिछले 21 साल से कोई भी भू कानून लागू नहीं है? जी नहीं, उत्तराखंड का जब गठन हुआ था तो यहां भू कानून भी लागू था, हालांकि ये इतना सख्त नहीं था. राज्य बनने के बाद पहले दो साल तक बाहरी लोग यहां 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे. लेकिन जब 2007 में भुवन चंद्र खंडूरी सीएम बने तो उन्होंने इसे घटाकर 250 वर्गमीटर कर दिया. इस फैसले का लोगों ने स्वागत किया.
लेकिन अपने कई गलत फैसलों के चलते सीएम की कुर्सी गंवाने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अध्यादेश लाकर इस कानून को लगभग पूरी तरह से खत्म करने का काम किया. यानी उत्तराखंड में जमीन खरीदने की सीमा को ही खत्म कर दिया गया. बीजेपी सरकार के इसी फैसले का अब विरोध शुरू हो चुका है.
क्या चाहते हैं उत्तराखंड के लोग?
उत्तराखंड के लोगों ने अब एक बार फिर भू कानून के लिए मशाल हाथ में ली है. लोक कलाकारों से लेकर तमाम पत्रकार और समाज से जुड़े लोग इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं. हजारों युवाओं ने भू कानून के समर्थन में अपनी डीपी लगाई है. बीजेपी सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है कि वो चुनाव से पहले एक सख्त भू कानून लागू करे.
उत्तराखंड के लोगों की मांग है कि उन्हें हिमाचल जैसा भू कानून चाहिए. हिमाचल प्रदेश में एक सख्त भू कानून है, यहां गैर हिमाचली जमीन नहीं खरीद सकता है. यानी बाहरी लोगों की घुसपैठ पर पूरी तरह से रोक है.
भू कानून को लेकर पहले भी लगातार आंदोलन होते रहे हैं, लेकिन इस बार सोशल मीडिया पर एक मुहिम छिड़ गई है. प्रवासी उत्तराखंडी और राज्य में रहने वाले हर वर्ग को इस मुद्दे से सरोकार है. क्योंकि ये मुद्दा उनकी भाषा, संस्कृति और सभ्यता की सुरक्षा के लिए है. चुनाव नजदीक है और बीजेपी सरकार एंटी इनकंबेंसी के चलते पूरी तरह से दबाव में है, ऐसे में लोग इस मुद्दे को हवा दे रहे हैं.
विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी उठाया मुद्दा
उत्तराखंड के लाखों लोगों के अलावा अब इस मुद्दे को विपक्षी दलों ने भी जोर शोर से उठाना शुरू कर दिया है. कांग्रेस सख्त भू कानून के समर्थन में उतर चुकी है. जनता तक मैसेज पहुंचाया जा रहा है कि अगर हम सत्ता में आए तो उनकी मांग को पूरा करेंगे. कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस मुद्दो के लेकर ट्विटर पर लिखा,
"हमारी देवभूमि में भूमिया देवता का महत्व आज का नहीं, प्राचीन काल का है. भूमिया देवता ने ही आज तक हमारी भूमि, हमारा परिवार- गांव, हमारी कला और संस्कृति को संरिक्षत रखा. आज उन्हीं भूमिया देवता का आह्वाहन कर हमें उत्तराखंड और उत्तराखंडियत को बचाना है. #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून"कांग्रेस नेता हरीश रावत
कांग्रेस के अलावा राज्य में पहली बार चुनाव लड़ने जा रही आम आदमी पार्टी ने भी इस मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया है. आम आदमी पार्टी ने भी भू कानून को अपना समर्थन दिया है. साथ ही इसे समझाने के लिए वीडियो भी शेयर किए जा रहे हैं. जिनमें बताया जा रहा है कि आखिर उत्तराखंड में सख्त भू कानून की जरूरत क्यों है. इसके अलावा यूकेडी और अन्य छोटे दल भी इस कानून का समर्थन कर रहे हैं.
चुनाव से ठीक पहले हो सकता है ऐलान
भू कानून की ऐसी मांग पहले कभी नहीं हुई, हमेशा से राजनीतिक दलों का एक मुद्दा रहने वाले भू कानून को युवाओं के हाथों में जाता देख बीजेपी की परेशानी बढ़ी है. बीजेपी पहले ही उत्तराखंड की जनता को एक सशक्त नेतृत्व देने में नाकाम रही है, बार-बार मुख्यमंत्री बदलने से पार्टी की फजीहत हुई है. ऐसे में ये मुद्दा बीजेपी को थोड़ा बहुत फायदा पहुंचा सकता है. इसीलिए ये मुमकिन है कि चुनाव से ठीक पहले नए सीएम पुष्कर सिंह धामी सख्त भू कानून लागू करने का ऐलान कर दें.
अब अगर आप ये सोच रहे हैं कि बीजेपी अपनी ही सरकार के फैसले को क्यों पलटेगी और इससे गलत मैसेज भी जा सकता है, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है. क्योंकि मुख्यमंत्री बदलने के पीछे सीधा मैसेज यही दिया गया कि पिछले वाले ने ठीक से काम नहीं किया या गलत फैसले लिए.
अब अगर भू कानून को लेकर अपनी ही सरकार का फैसला पलटा जाता है तो इसका ठीकरा त्रिवेंद्र सिंह रावत पर फूटेगा, जिन्हें पार्टी पहले ही बाहर कर चुकी है. जैसे सीएम बदलने को भूल सुधार की तरह पेश किया जा रहा है, ठीक वैसे ही इस भू कानून के फैसले को भी एक भूल मानकर सुधार किया जा सकता है.
लेकिन चाहे कुछ भी हो, इस बार उत्तराखंड की जनता ने खुद से जुड़े इस अहम मुद्दे को पकड़ लिया है. कुछ इस तरह से पकड़ा है कि कोई भी राजनीतिक दल इसे अब कतई नजरअंदाज करने की गलती नहीं कर सकता है. अगर बीजेपी सरकार ने चुनाव से पहले भू कानून पर चुप्पी नहीं तोड़ी तो पहले से नाराज जनता उन्हें कितने नीचे गिराएगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
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