हर साल ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा को वट पूर्णिमा या वट सावित्री पूर्णिमा के तौर पर मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन सावित्री अपने पति के प्राण वापस ले आने में सफल हुई थी. इसलिए उन्हें सती सावित्री कहा जाने लगा.
इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं. माना जाता है कि जो महिलाएं वट पूर्णिमा का व्रत रखकर पूरे विधि-विधान से पूजा-पाठ करती हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ वट वृक्ष, यानी बरगद के पेड़ की भी पूजा की जाती है.
वट पूर्णिमा का महत्व
सनातन धर्म को मानने वालों की बरगद के पेड़ में गहरी आस्था है. वटवृक्ष को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप माना जाता है. मान्यता है कि सृष्टि के संचालक भगवान इस वृक्ष में वास करते हैं.
आयुर्वेद में वटवृक्ष को परिवार का वैद्य माना जाता है. पंचवटी में पांच वृक्षों- वट, अशोक, पीपल, बेल और हरड़ को शामिल किया गया है. ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से वट पूर्णिमा के दिन वटवृक्ष की पूजा करता है, उसे संतान की प्राप्ति होती है. साथ ही सुहागिन स्त्री के पति की आयु भी लंबी होती है.
वट पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त- वट पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 27 जून 2018 को सुबह 08 बजकर 12 मिनट से लेकर वट पूर्णिमा तिथि समाप्त: 28 जून 2018 को सुबह 10 बजकर 22 मिनट तक
जानिए पूजन विधि
इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद सच्चे मन से व्रत का संकल्प लेना चाहिए. वटवृक्ष के नीचे बांस की एक टोकरी में सात तरह के अनाज रखते हैं, जिसे कपड़े के दो टुकड़ों से ढक दिया जाता है. दूसरी टोकरी में सावित्री की प्रतिमा रखते हैं, फिर वटवृक्ष को जल, धूप, दीप, अक्षत, कुमकुम आदि से पूजा करते हैं.
इसके बाद लाल मौली से बांधते हुए वृक्ष की सात बार परिक्रमा करते हैं. इसके बाद महिलाएं सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं. कथा सुनने के बाद चने-गुड़, फल-मिठाई का प्रसाद दिया जाता है, फिर दान-दक्षिणा दी जाती है. सुहागिन महिलाओं को वटवृक्ष पर सुहाग का सामान भी अर्पित करना चाहिए.
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