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गुजरात में ‘CM मोदी’ के राज से कितना अलग रूपाणी सरकार का एक साल

गुजरात की विजय रूपाणी सरकार का एक साल पूरा

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भारत
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गुजरात में पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष को 2019 में भी 26 में सभी 26 लोकसभा सीट में जीत चाहिए. लेकिन मुख्यमंत्री के तौर पर विजय रूपाणी की दूसरी पारी को सालभर हो गए है. लेकिन इसमें कुछ बड़े मोर्चों में राज्य सरकार की मुश्किलों ने पार्टी नेताओं की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.

बीजेपी की असली फिक्र 2019 को लेकर है क्योंकि 2014 में नरेंद्र मोदी के सीएम रहते लोकसभा चुनाव में बीजेपी को लोकसभा की सभी 26 सीटें मिलीं थीं. अब विपक्ष भी मजबूत नजर आ रहा है.

विजय रूपाणी 7 अगस्त 2016 को पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे. 2017 में उनकी सरकार पर सत्ता में वापसी कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी की अगुवाई में हुए जोरदार चुनाव की वजह से थोड़ा दिक्कत में पड़ गई थी.

रूपाणी सरकार ने 26 दिसंबर को कार्यकाल का पहला साल पूरा कर लिया है. आइए इस मौके पर ये परखने की कोशिश करते हैं कि रूपाणी का कामकाज सीएम मोदी के कार्यकाल से कितना अलग है.

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1. नाकामीः पावर-शेयरिंग के मामले में फेल

गुजरात की विजय रूपाणी सरकार का एक साल पूरा
वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ डिप्टी सीएम नितिन पटेल और सीएम विजय रूपाणी
(फोटोः PTI)

आनंदीबेन पटेल के बाद पटेल वोटरों को साधने के लिए बीजेपी ने नितिन पटेल को राज्य का उप-मुख्यमंत्री बनाया. 2017 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद, उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल को रोड, बिल्डिंग, हेल्थ, मेडिकल एजूकेशन, नर्मदा, कलपसार और कैपिटल प्रोजेक्ट दिए गए. लेकिन नितिन पटेल इन विभागों को देखकर असंतुष्ट हो गए. पटेल चाहते थे कि उन्हें विधानसभा चुनाव से पहले दिए गए फाइनेंस और अर्बन डेवलेपमेंट जैसे विभाग मिलें.

चर्चा तो ये थीं कि इसके बाद पटेल बीजेपी छोड़ने का मन बना रहे थे. इस बीच राज्य के कई बड़े बीजेपी नेताओं ने उन्हें समझाने के लिए उनसे मुलाकात की. आखिरकार, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को गुजरात में अपने दो शीर्ष नेताओं के बीच शुरू हुई कलह की शर्मिंदगी से बचने के लिए पटेल को फाइनेंस डिपार्टमेंट सौंपना पड़ा.
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2. नाकामीः खराब वाटर मैनेजमेंट

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
(Photo: Twitter/@PIB_India)

साल 2017 में भारी बारिश हुई, जिसके चलते पूरे उत्तर गुजरात में, खास तौर पर बनासकांठा जिले में बाढ़ आ गई थी. लेकिन सरकार के सही प्रबंधन न करने से गुजरात को साल 2018 में पानी के संकट से जूझना पड़ा. इसकी वजह से रूपाणी सरकार पर 2017 के विधानसभा चुनावों में जल संसाधनों के दुरुपयोग के लिए उंगलियां उठाई गईं.

सेंट्रल वाटर कमीशन के मुताबिक, साल 2018 में जलाशयों में पानी का स्तर साल 2017 से कम था. संयोग से, 12-17 सितंबर के बीच नर्मदा नदी में पानी की एक असामान्य मात्रा छोड़ी गई थी. ठीक उसी वक्त जब 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार सरोवर बांध का उद्घाटन किया था.

साल 2018 में हालात बिगड़ने के बाद, राज्य सरकार ने घोषणा की कि वह भीषण गर्मी के दौरान पीने का पानी देगा. हालांकि, शहरी निवासी और किसान दोनों को पानी की कमी के गंभीर संकट से जूझना पड़ा.

इतना ही नहीं, सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड (SSNNL) ने यह भी कहा कि वह नर्मदा नहर में पानी की कमी के कारण किसानों को हुए किसी भी नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.

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3. नाकामीः मूंगफली घोटाला

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साल 2017 में विधानसभा चुनाव कैंपेन के दौरान, बीजेपी ने मूंगफली के लिए मौजूदा बाजार मूल्य 3,700 रुपये के सापेक्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 4,500 रुपये प्रति क्विंटल देने का वादा किया था. आखिरकार, राज्य सरकार ने 4,000 करोड़ रुपये से 10 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा मूंगफली खरीदी.

साल 2018 की शुरुआत गोदामों में लगी आग की घटनाओं से हुई, जिसने सौराष्ट्र और कच्छ में कम से कम चार मूंगफली गोदामों को राख कर दिया. इसमें कथित तौर पर कम से कम 50 करोड़ रुपये की मूंगफली जल गई. इसके बाद संदेह तब और गहरा गया जब अगस्त महीने में सौराष्ट्र में एक निजी गोदाम के निरीक्षण में पता चला कि 35 किलो से ज्यादा वजन वाली 30,000 मूंगफली की बोरियों में कंकड़ और रेत मिला हुआ था.

रूपाणी के इस्तीफे की मांग करते हुए विपक्ष के नेता परेश धनानी ने आरोप लगाया है कि मूंगफली खरीद केंद्रों के संचालन के लिए बीजेपी समर्थकों द्वारा नियंत्रित सहकारी समितियों को चुना गया था. धनानी के मुताबिक, अच्छी क्वालिटी वाली मूंगफली को बीजेपी समर्थकों द्वारा चलाई जा रही तेल मिलों में भेज दिया गया.

यहां तक कि नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NAFED) ने घोषणा की कि वह 2017 में खरीद में अनियमितताओं के कारण गुजरात में मूंगफली की खरीद नहीं करेगी.

नवंबर 2018 में, रूपाणी ने माना कि 2017 में मूंगफली की खरीद में वास्तव में गड़बड़ी हुई थी, और यह सुनिश्चित करने के लिए उपाय किए जा रहे हैं कि इस तरह के घोटाले दोबारा न हों.

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4. कामयाबीः कुंवरजी बावलिया बीजेपी में शामिल

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गुजरात विधानसभा स्पीकर राजेंद्र त्रिवेदी को अपना इस्तीफा सौंपते कांग्रेस विधायक कुंवरजी बावलिया
(Photo Courtesy: BJP Media Centre) 

कोली समुदाय के मजबूत नेता कुंवरजी बावलिया इस साल जुलाई में बीजेपी में शामिल हुए, जिससे सौराष्ट्र में बीजेपी की जड़ें मजबूत हुई हैं. बावलिया कांग्रेस के वफादार नेता थे, लेकिन गुजरात कांग्रेस में राहुल गांधी के फैसलों से काफी नाखुश थे. इसी वजह से युवा परेश धनानी को अनुभवी बावलिया की जगह नेता विपक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था.

चुनाव के तुंरत बाद, बावलिया को तीन विभाग वाटर रिसोर्स, रूरल हाउसिंग डेवलेपमेंट और पशुपालन दिया गए. बावलिया ने 20 दिसंबर को जसदण विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में 19,000 से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी.

बावलिया के साथ आ जाने के बाद, बीजेपी 2019 के आम चुनावों में सौराष्ट्र में अपनी संभावनाओं को लेकर पहले से ज्यादा मजबूत महसूस कर रही है, क्योंकि इस इलाके में कोली-पटेल समुदाय का वर्चस्व है. सौराष्ट्र में राजकोट समेत सात प्रमुख लोकसभा सीटें हैं. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में बावलिया ने राजकोट लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था और जीता था.

इसके अलावा जसदण सीट पर हुए उपचुनाव में भी बावलिया ने जीत हासिल कर विधानसभा में बीजेपी के 100 सीटों के आंकड़े को पूरा कर दिया है.

(यह स्टोरी मूल रूप से The Quint पर प्रकाशित हुई थी. यहां पर इसका अनुवाद दिया गया है.)

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