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भीमा-कोरेगांव युद्ध पर अंग्रेज खुद क्या कहते हैं? किसकी हुई थी जीत

अंग्रेजों की नजर से कोरेगांव के युद्ध का आंखों देखा हाल. कंपनी की फौज को कैसे मिली जीत

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कोरेगांव युद्ध के बारे में दलितों और मराठा की अपनी अपनी दलीलें हैं. इतिहासकार इसमें करीब-करीब एकमत हैं कि युद्ध अंग्रेज और पेशवा की सेना के बीच हुआ था. इसमें अंग्रेज फौज (उस वक्त की कंपनी फौज) में महार सैनिकों की भी बड़ी तादाद थी.

अंग्रेजों का दावा है कि जीत उनकी हुई, जबकि कुछ मराठी इतिहासकार इसे विवादित मानते हैं. लेकिन ये जानना भी बहुत रोचक है कि अंग्रेजों के दस्तावेजों में इस युद्ध के बारे में क्या लिखा है? अंग्रेजों की सत्ता स्थापित होने के बाद हर महत्वपूर्ण घटना का अंग्रेजी शासनकाल के वक्त गजट में जिक्र है. इस गजट को राजपत्र भी कहा जाता है, जो सरकारी पक्ष माना जाता है.

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इंडियन एक्सप्रेस ने कोरेगांव युद्ध के बारे में अंग्रेजों के दस्तावेज यानी सरकारी गजट के हवाले से बताया कि अंग्रेज सेना और पेशवा की सेना के बीच युद्ध हुआ था.

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कोरेगांव युद्ध किसने जीता था?

डॉक्टर बीआर अम्बेडकर ने 1941 में जय स्तंभ में दिए एक भाषण में कहा था कि महार ने कोरेगांव में पेशवाओं को हराया.

उस वक्त के रिकॉर्ड के मुताबिक ब्रिटिश भी इस युद्ध को भारत में अपने सबसे बड़ी उपलब्धि मानते आए हैं.

अंग्रेजों का दस्तावेज यानी गजट क्या कहता है?

कोरेगांव युद्ध अंग्रेजों और पेशवा की सेना के बीच हुआ था. साल1885 के गजट में 1 जनवरी 1818 को हुए भीमा-कोरेगांव युद्ध का ब्‍योरा छापा गया था. बॉम्बे प्रेसिडेंसी के तहत तैयार किए गए इस गजट को जेम्स एम कैंपबेल की निगरानी में तैयार किया गया था.

इस गजट के मुताबिक पहली जनवरी 1818 को कोरेगांव गांव के पास युद्ध हुआ था. कोरेगांव पुणे से 16 मील दूर उत्तर-पूर्व में है जहां 800 सैनिकों की ब्रिटिश फौज का मुकाबला 30,000 सैनिकों वाली मराठा फौज से हुआ. गजट के मुताबिक गांव की आबादी 960 थी.

युद्ध 1 जनवरी 1818 में हुआ लेकिन इसकी वजह 6 माह पहले ही बन गई थी. 13 जून 1817 को पेशवा बाजीराव द्वितीय को अपने राज्य का बड़ा हिस्सा ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपना पड़ा. नवंबर में पेशवा की सेना ने ब्रिटिश के खिलाफ विद्रोह किया, लेकिन खदकी लड़ाई में उनकी हार हुई. इसके बाद पुणे का नियंत्रण कर्नल चार्ल्स बर्टन बर को सौंप दिया गया.

अंग्रेजों के मुताबिक युद्ध का हाल

साल 1817 के दिसंबर में कर्नल चार्ल्स बर्टन बर को खुफिया जानकारी मिली कि पेशवा बाजीराव द्वितीय पुणे में हमला करने की योजना बना रहे हैं. इसलिए कर्नल बर ने अपनी कंपनी (ईस्ट इंडिया) से मदद मांगी. मदद के लिए कैप्टेन फ्रांसिस स्टॉन्टन की अगुआई में बॉम्बे नेटिव इंफ्रेंट्री की टुकड़ी शिरूर से पुणे की तरफ रवाना कर दी गई. 31 दिसंबर 1817 को रात करीब 8 बजे चली इस टुकड़ी में 500 सैनिक, 300 घोड़े और दो तोपें भी शामिल थीं जिसे चलाने वाले 24 सैनिक भी थे.

कैप्टेन स्टॉन्टन का काफिला अगले दिन सुबह करीब 10 बजे 25 मील पहुंच गया, तभी भीमा नदी की दूसरी तरफ पेशवा की 25 हजार सैनिकों की फौज से इसका सामना हुआ. गजट में इस बात का जिक्र नहीं है कि स्टॉन्टन की अंग्रेज सेना में शामिल भारतीय सैनिकों की जाति क्या थी, लेकिन कई सूत्रों से जानकारी मिलती है कि इसमें महार जाति के सैनिक बड़ी तादाद में थे.

युद्ध के मैदान में क्या हुआ

गजट के मुताबिक मराठाओं ने 5000 सैनिकों की एक और टुकड़ी बुला ली. इनमें अरब, गोसावी और दूसरे सैनिकों के अलावा दो तोपें भी थीं. मराठाओं की इस सेना से ब्रिटिश फौजों को घेर लिया, उनको खाने और पानी की सप्लाई काट दी.

अंग्रेज फौज परेशान हो गई उनकी एक तोप भी मराठाओं के कब्जे में चली गई. बहुत से ब्रिटिश सैनिक आत्मसमर्पण करना चाहते थे. लेकिन 6 फुट 7 इंच ऊंचाई वाले लेफ्टिनेंट पैटिसन जबरदस्त जवाबी हमला किया, कुछ ही देर में उन्होंने पेशवा सेना के अरब सैनिकों के कब्जे से अपनी तोप छीन ली.

अंग्रेज सेना हावी हो गई

गजट के मुताबिक, रातभर चली भयंकर लड़ाई में अंग्रेज सैनिक हावी होते गए. उनके कब्जे में खाना-पानी आ गया. कुछ देर बाद फायरिंग बंद हो गई और मराठा सेना पीछे लौट गई. ब्रिटिश सेना के 834 सैनिकों में 275 सैनिक मारे गए और घायल हुए. मराठा सेना में 500 से 600 सैनिक मारे गए और घायल हुए.

इस हार के बाद तो अंग्रेजों के लिए काम आसान हो गया. मराठा के मजबूत गढ़ एक एक करके अंग्रेजों के कब्जे में चले गए. बाजीराव द्वितीय को भी राज्य छोड़ना पड़ा. बाद में उन्होंने 1823 में अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. अंग्रेज सरकार ने बाजीराव द्वितीय को बिथूर जेल में रखा जहां 1851 में उनकी मौत हो गई. बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी थे नानासाहेब पेशवा जो पेशवाई सिस्टम में अंतिम पेशवा थे.

(इंडियन एक्सप्रेस से इनपुट)

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