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जासूसी कांडः WhatsApp ने बताया-सरकार को मई में ही दे दी थी जानकारी

WhatsApp ने बयान में कहा कि उसने हैकिंग का शिकार हुए लोगों को पहचानकर उन्हें अलर्ट किया.

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WhatsApp जासूसी कांड में एक अहम जानकारी सामने आई है. WhatsApp के मुताबिक, कंपनी ने यूजर्स की सुरक्षा से जुड़े इस मसले की जानकारी भारत सरकार को मई में ही दे दी थी. इसके बाद कंपनी ने जासूसी के शिकार हुए लोगों की पहचान कर उनसे संपर्क साधा.

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समाचार एजेंसी एएनआई ने सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया कि WhatsApp ने मई में सरकारी एजेंसी CERT-IN को जानकारी उपलब्ध कराई थी. लेकिन उपलब्ध कराई गई जानकारी में भारी-भरकम तकनीकि शब्दों का इस्तेमाल किया गया था और उस मैसेज में कहीं भी न तो Pegasus का ही जिक्र था और न ही सुरक्षा में सेंध की गंभीरता का.

WhatsApp ने हाल ही में इजरायली कंपनी NSO पर जासूसी का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज किया था. कंपनी का आरोप था कि NSO के Spywasre Pegasus का इस्तेमाल कर WhatsApp के जरिए पत्रकारों, वकीलों, दलित एक्टिविस्ट और कई सामाजिक कार्यकर्ताओं की जासूसी की गई.

इस खबर के आने के बाद से ही लगातार हंगामा मचा हुआ है. साथ ही WhatsApp पर प्राइवेसी को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं.

सरकार को मई में दी थी जानकारी

शुक्रवार, 1 नवंबर की रात WhatsApp ने बयान जारी कर बताया-

“हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता WhatsApp यूजर्स की प्राइवेसी और सुरक्षा है. मई में यूजर्स की प्राइवेसी से जुड़ा मामला सामने आने पर हमने तुरंत संबंधित भारतीय और अंतरराष्ट्रीय सरकारों को जानकारी दी थी. इसके बाद से ही हमने लगातार निशाने पर आए यूजर्स की पहचान की और उनसे कहा कि वो अदालतों को कहें कि अंतरराष्ट्रीय Spyware फर्म NSO की जिम्मेदारी तय की जाए.”

WhatsApp ने अपने बयान में ये भी कहा कि वो भारत सरकार के साथ मिलकर यूजर्स की प्राइवेसी सुनिश्चित करने के लिए काम करेगा. कंपनी ने कहा है कि यूजर्स की प्राइवेसी को कमजोर करने की कोशिशों को नाकाम करना जरूरी है.

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सिर्फ सरकार को ही बेचते हैं Spyware

इस बीच NSO ग्रुप ने द क्विंट को बताया है कि वह इस बात का खुलासा तो नहीं कर सकते कि उनके क्लाइंट कौन हैं लेकिन उन्होंने ये स्पष्ट किया है कि वह अपना प्रोडक्ट सिर्फ सरकारों को ही बेचते हैं.

वहीं द क्विंट को बीते मंगलवार से अब तक उन 20 भारतीय नागरिकों का पता चल चुका है, जिनकी Pegasus स्पाइवेयर के जरिए जासूसी की गई थी. इनमें एल्गार परिषद और भीमा कोरेगांव मामले से जुड़े वकील, जाति-विरोधी कार्यकर्ता और डिफेंस रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार शामिल हैं.

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