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स्टीयरिंग संभालती औरतें सड़कों को सुरक्षित बना रही हैं 

दिल्ली पुलिस के आंकड़ों से ये पता चलाता है कि महिलाएं सबसे सुरक्षित ड्राइविंग करती हैं

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अरे ये कार मैडम चला रही है, साइड में रख, ठोक देगी.

इनका क्या है, ये तो रास्ते के बीच में रोक कर खड़ी हो जाती है.

चलानी आती नहीं है, तो लेकर क्यों आ जाती है सड़कों पर जाम लगाने के लिए.

दिल्ली, एनसीआर की सड़कों पर ड्राइविंग करती लड़कियों/ महिलाओं के बारे में इस तरह मजाक उड़ाने वाली और स्टीरियोटाइप बातें आपने खूब सुनी होंगी. महिलाओं के हाथ में कार या एसयूवी का स्टीयरिंग व्हील भारतीय पुरुष प्रधान समाज के लिए आसानी से हजम होने वाली बात नहीं है. महिला ड्राइवर्स को कमतर आंकने के लिए इस तरह के स्टीरियो टाइप को जिंदा रखा गया है.

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लेकिन, जिस दौर में रोड रेज की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, पार्किंग में जगह ना मिलने पर, सड़क पर ओवरटेक करने पर, जाम में दो गाड़ियों के सट जाने, टोल टैक्स मांगने पर, या अकारण ही लोग हिंसक हो जाते है, मर्डर तक हो जाते है, वह महिला ड्राइवर्स का इन घटनाओ में ना के बराबर नाम आना सुकून की बात है.

कुछ बातें इतनी बार और इतने आत्मविश्वास से कही जाती हैं कि उन पर भरोसा करने का मन करने लगता है. इसलिए कहा गया है कि छवियां यानी इमेज का कई बार सत्य से भी ज्यादा असर होता है. हममें से ज्यादातर लोगों ने कभी न कभी किसी से यह सुना होगा कि महिलाएं खराब ड्राइवर होती हैं, सड़क पर कनफ्यूज रहती हैं और उनके आसपास अपनी गाड़ी नहीं ले जानी चाहिए. इसे बहुत सारे लोग सही भी मानते हैं.

ऐसा मानने वालों में औरतें भी हैं. ऐसी धारणाओं को स्टीरियोटाइपिंग कहा जाता है. ये वे बातें हैं, जो मान ली जाती हैं. इससे फर्क नहीं पड़ता कि उस बात के पक्ष में तथ्य और तर्क हैं या नहीं.

ऐसी धारणाओं के ज्यादातर शिकार कमजोर समूहों के लोग जैसे अमेरिका में ब्लैक, यूरोप में जिप्सी या अपने देश में दलित या ग्रामीण लोग होते हैं. समाज की सत्ता संरचना में महिलाएं कमजोर हैं और इसलिए उनको लेकर भी तमाम तरह की स्टीरियोटाइपिंग हैं. औरतें खराब ड्राइवर होती हैं, भी ऐसी ही धारणा है.

यह बहुत आश्चर्यजनक है कि जिस बात को कन्फर्म करने के लिए कोई फैक्ट या डाटा नहीं था, उस पर कई लोग इतने दिनों तक विश्वास करते रहे.

दिल्ली पुलिस के आंकड़ों से ये पता चलाता है कि महिलाएं सबसे सुरक्षित ड्राइविंग करती हैं
दिल्ली पुलिस के आंकड़ों से ये पता चलाता है कि महिलाएं सबसे सुरक्षित ड्राइविंग करती हैं
( फोटो:iStock )
अब दिल्ली पुलिस ने इस बारे में पहली बार विस्तार से आंकड़े जारी किए हैं. इन आंकड़ों को पढ़ने के बाद आप चाहेंगे कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएं ड्राइविंग करें, क्योंकि यह सड़क पर मौजूद हर शख्स के लिए सुकून की बात होगी. इन आंकड़ों से पता चला है कि महिलाएं सबसे सुरक्षित ड्राइविंग करती हैं और सड़क पर बवाल भी नहीं करतीं.

सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण है ड्रंकेन ड्राइविंग यानी दारू पीकर गाड़ी चलाना. दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक केवल 2 परसेंट महिलाएं ही ड्रंकेन ड्राइविंग एक्सीडेंट में लिप्त पायी गयी है. 2018 में अब तक किसी भी महिला का इस धारा के तहत चालान नहीं कटा है.

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दिल्ली ट्रैफिक पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार 2017 में ट्रैफिक नियम तोड़ने के लिए कुल 26 लाख चालान काटे गए, जिनमें केवल 600 चालान महिलाओं के काटे गए.

ओवर स्पीडिंग के कुल मामले 1,39,471 थे, जिनमें 514 महिलाएं ही शामिल थी. ओवर स्पीडिंग सड़क दुर्घटनाओं की प्रमुख वजहों में से एक है.

ट्रैफिक सिग्नल जंप के कुल 1,67,867 चालान में सिर्फ 44 चालान महिलाओं के काटे गए. चूंकि महिलाएं ट्रैफिक सिग्नल पर गाड़ी रोकती हैं, इसलिए उन्हें डरपोक ड्राइवर करार दिया जाता है.

दिल्ली पुलिस के आंकड़ों से ये पता चलाता है कि महिलाएं सबसे सुरक्षित ड्राइविंग करती हैं
सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण है ड्रंकेन ड्राइविंग यानी दारू पीकर गाड़ी चलाई जाती है
( फोटो:iStock )

यह सच है कि दिल्ली में ज्यादातर वाहन पुरुष चलाते हैं. दिल्ली में जारी हुए कुल डार्इविंग लाइसेंस का हिसाब देखें तो 71 पुरुष लाइसेंस होल्डर के मुकाबले सिर्फ एक महिला लाइसेंस होल्डर है. इस हिसाब से भी महिलाएं बेहतर और ज्यादा सुरक्षित ड्राइवर साबित होती है. वहीं दिल्ली में रजिस्टर्ड कुल गाड़ियों में से 11 परसेंट गाड़ियां महिलाओं के नाम पर हैं. इसका मतलब है कि परिवारों में महिलाओं के नाम पर गाड़ियां खरीदी जा रही हैं, लेकिन वे अक्सर इन गाड़ियों को खुद नहीं चलातीं. इसकी कई वजहें हो सकती हैं.

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डर एक वजह..

दिल्ली में सड़कों पर अनुशासन का अभाव है, ऐसे में शायद महिलाएं ड्राइव करना सुरक्षित नहीं मानतीं. आमतौर पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जो माहौल है, उसमें महिलाएं सोच सकती हैं कि अचानक किसी सुनसान जगह पर कार या स्कूटी खराब हुई तो क्या होगा?

दिल्ली पुलिस के आंकड़ों से ये पता चलाता है कि महिलाएं सबसे सुरक्षित ड्राइविंग करती हैं
आमतौर पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जो माहौल है,, ऐसे में शायद महिलाएं ड्राइव करना सुरक्षित नहीं मानतीं
( फोटो:iStock )

परिवारों में भी यह धारणा होती है कि लड़कियां या औरतें ठीक से गाड़ी नहीं चला पाएंगी. औरतें खुद भी इन धारणाओं में फंसी होती हैं. इस वजह से लड़कियों को ड्राइविंग सिखाने से परहेज ही किया जाता है. महिलाओं के पास इतनी कम संख्या में ड्राइविंग लाइसेंस होना इसी वजह से है.

कई लोगों का यह लगता है कि ड्राइविंग में ताकत लगती है और यह महिलाओं के अनुकूल काम नहीं है. यह धारणा पूरी तरह गलत है और अब खासकर पावर स्टीयरिंग आने के बाद से तो इस तर्क का कोई आधार ही नहीं बचा. बहरहाल, हमारे पास अब यह कहने के लिए आंकड़ा है कि दिल्ली की सड़कें बेहद असुरक्षित हैं. लेकिन इसकी वजह औरतें नहीं हैं.

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विदेश में हुए रिसर्च भी बताते हैं कि औरतें बेहतर ड्राइवर

2015 में लंदन में हुई एक रिसर्च में इस बात की पुष्टि हुई कि औरतें पुरुषों की तुलना में बेहतर ड्राइवर होती हैं. सुरक्षित ड्राइविंग के हर मानकों पर औरतों ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया. लंदन के सबसे व्यस्त हाइड पार्क कॉर्नर पर शोधकर्ताओं ने महिलाओं और पुरुषों को ड्राइविंग करते देखा. उन्होंने पाया कि पुरुष ड्राइविंग करते समय ज्यादा जोखिम लेते हैं, अपनी कार सामने वाली कार के ज्यादा पास ले जाते हैं, बहुत पास से गाड़ियां निकालते हैं और ड्राइविंग करते समय फोन पर बात भी ज्यादा करते हैं.

दिल्ली पुलिस के आंकड़ों से ये पता चलाता है कि महिलाएं सबसे सुरक्षित ड्राइविंग करती हैं
प्रिविलेज इंश्योरेंस कंपनी के इस शोध से यह भी पता चला कि औरतें ड्राइविंग के दौरान ज्यादा भद्र आचरण करती हैं
( फोटो:iStock )
प्रिविलेज इंश्योरेंस कंपनी के इस शोध से यह भी पता चला कि औरतें ड्राइविंग के दौरान ज्यादा भद्र आचरण करती हैं, गाड़ी के आईनों का ज्यादा इस्तेमाल करती हैं और जोखिम के पास आने से पहले सतर्क हो जाती हैं.

जहां ड्राइविंग के आधार पर महिलाएं बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं, वहीं वे धारणा यानी परसेप्शन की लड़ाई में हार जाती हैं. सिर्फ 28 फीसदी महिलाएं मानती हैं कि महिलाएं बेहतर ड्राइवर हैं. जबकि सिर्फ 13 फीसदी पुरुष मानते हैं कि महिलाएं बेहतर ड्राइवर हैं.

एक अन्य शोध में नार्वे के वैज्ञानिकों ने पाया कि ड्राइविंग करते समय मन विचलित होने या मन भटक जाने की ज्यादा शिकायतें पुरुषों में होती हैं. महिलाएं ड्राइविंग पर ज्यादा कंसंट्रेट करती हैं और इसलिए सड़क पर होने वाली हलचल पर ज्यादा ध्यान देती हैं. उम्रदराज महिलाओं का रिकॉर्ड इस मायने में और भी अच्छा है.

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ऑटोमैटिक का है जमाना

हाल के वर्षों में गाड़ियों की टेक्नोलॉजी में आया एक बदलाव औरतों के लिए अच्छा साबित हो रहा है. गियरलेस टूह्वीलर के आने और छा जाने से सड़कों पर महिलाओं की उपस्थिति बढ़ी है. इनमें से इलेक्ट्रिक स्कूटर्स के लिए तो लाइसेंस की भी जरूरत नहीं होती. इसी तरह ऑटोमैटिक (बिना गियर वाली) कारों का बाजार भी बढ़ा है.

दिल्ली पुलिस के आंकड़ों से ये पता चलाता है कि महिलाएं सबसे सुरक्षित ड्राइविंग करती हैं
हाल के वर्षों में गाड़ियों की टेक्नोलॉजी में आया एक बदलाव औरतों के लिए अच्छा साबित हो रहा है
( फोटो:iStock )

हो सकता है कि महिलाएं इन्हें चलाने में ज्यादा सहज महसूस करें. अभी ऑटोमैटिक कारों की कीमत आम कारों से ज्यादा है. आने वाले दिनों में टेक्नोलॉजी के सर्वसुलभ होने से कीमतों का यह फासला कम हो सकता है. ऐसे दौर में शायद हम सड़कों पर बड़ी संख्या में महिलाओं को कार चलाते देख पाएंगी.

फिलहाल आप अगर पुरुष हैं तो इतना तो कर ही सकते हैं कि सड़क पर कार चलाती किसी औरत को देखें तो कमेंट पास न करें. वे आपसे बेहतर और सुरक्षित गाड़ी चलाने वाली ड्राइवर हैं.

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