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कर्ज और डिजिटल असमानता भारत के सबसे बड़े जोखिमों में शामिल- WEF

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि बढ़ती सामाजिक दरारों के रिस्क महामारी से बढ़ते रहेंगे

Published
भारत
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कोरोनावायरस महामारी (COVID Pandemic) के पिछले दो वर्षों में डिजिटल प्रक्रियाओं पर बढ़ती निर्भरता ने वैश्विक स्तर पर साइबर सुरक्षा खतरों से पैदा होने वाले जोखिमों को जन्म दिया है. विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा मंगलवार, 11 जनवरी को जारी एक सर्वे के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भारत में युवाओं का यह मोहभंग, डिजिटल असमानता और इंटर स्टेट संबंधों का टूटना कुछ मुख्य जोखिम हैं.

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युवाओं का मोहभंग भारत के लिए खतरा

अगले हफ्ते होने वाली अपनी ऑनलाइन दावोस एजेंडा बैठक से पहले डब्ल्यूईएफ (WEF) द्वारा जारी ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2022 में कहा गया है कि 'जलवायु संबंधी जोखिम', प्रभाव के मामले में सबसे बड़ी चिंताओं में से है, विशेष रूप से लॉन्ग टर्म में - जहां संयोग से शीर्ष 10 में से पांच ग्लोबल रिस्क सभी जलवायु या पर्यावरण से संबंधित हैं.

रिपोर्ट में पहचाने गए शीर्ष पांच जोखिम जलवायु संकट (Climate Change) बढ़ते सोशल डिवाइड, बढ़े हुए साइबर जोखिम, असमान ग्लोबल चेंज और जैसा कि यह महामारी जारी है. एक्सपर्ट्स के एक ग्लोबल सर्वे में पाया गया कि छह लोगों में से केवल एक आशावादी है और दस में से केवल एक का मानना ​​है कि वैश्विक सुधार में तेजी आएगी.

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि बढ़ती सामाजिक दरारों के रिस्क महामारी से बढ़ते रहेंगे और एक्सपर्ट्स आगाह कर रहे हैं कि आने वाले वर्षों में वैश्विक आर्थिक सुधार असमान और संभावित रूप से अस्थिर होगा.

भारत पर रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरराज्यीय संबंधों का फ्रैक्चर, बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में ऋण संकट, युवाओं का मोहभंग, प्रौद्योगिकी शासन की विफलता और डिजिटल असमानता WEF के कार्यकारी राय सर्वेक्षण (EOS) द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए पहचाने गए शीर्ष पांच जोखिम हैं.

WEF की प्रबंध निदेशक सादिया जाहिदी ने कहा,

"ग्लोबल लीडर्स को एक साथ आना चाहिए और निरंतर ग्लोबल चुनौतियों से निपटने और अगले संकट से पहले लचीलापन बनाने के लिए एक कॉर्डिनेटेड नजरिया अपनाना चाहिए."
सादिया जाहिदी, WEF की प्रबंध निदेशक

डब्ल्यूईएफ ने कहा कि शॉर्ट टर्म ग्लोबल कंसर्न में सोशल डिवाइड, आजीविका संकट और मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट शामिल है, जबकि ज्यादातर एक्सपर्ट्स का मानना ​​है कि ग्लोबल इकोनॉमिक चेंज अगले तीन सालों में अस्थिर और असमान होगा.

(न्यूज इनपुट्स - एनडीटीवी)

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