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Labour Day 2022: आत्महत्या, कर्ज, बेरोजगारी, कोरोना 'मजदूर वर्ग' के लिए बना काल

कोरोना महामारी के पीक के दौरान सबसे ज्यादा देश के मिडिल क्लास और लेबर क्लास पर मार पड़ी

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हर साल विश्व मजदूर दिवस(World labor day) 1 मई को मनाया जाता है. इसकी भी एक वजह है . 1886 में 1 मई को अमेरिका के शिकागो शहर में हजारों मजदूरों ने एकजुटता दिखाते हुए प्रदर्शन किया था. उनकी मांग थी कि मजदूरी का समय 8 घंटे निर्धारित किया जाए और हफ्ते में एक दिन छुट्टी हो. इससे पहले मजदूरों के लिए कोई समय-सीमा नहीं थी. खैर, मजदूर दिवस पर हम बात करेंगे मजदूरों की, बात करेंगे उनकी जिन्होंने कोरोना महामारी में रोटी खाने तक के पैसे नसीब नहीं हुए.

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2020 में भी मजदूरों पर कोरोना का कहर बरपा था. मजदूर दिन रात पैदल ही अपने गांव लौटने को मजबूर हुए थे. कोरोना महामारी के पीक के दौरान सबसे ज्यादा देश के मिडिल क्लास और लेबर क्लास पर दोहरी मार पड़ी. कोरोना की पहली और दूसरी लहर ने इन तबके के करोड़ों लोगों को गरीबी में धकेल दिया.

3 करोड़ 20 लाख मिडिल क्लास लोग हुए गरीब

प्यू रिसर्च सेंटर के आंकड़ों के मुताबिक कोरोना की पहली लहर में तीन करोड़ 20 लाख मिडिल क्लास लोग गरीब हो गए. अगर दुनिया की बात करें तो करीब पांच करोड़ 40 लाख मिडिल क्लास लोग गरीब हुए.

कोरोना महामारी के पीक के दौरान सबसे ज्यादा देश के मिडिल क्लास और लेबर क्लास पर मार पड़ी

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दूसरी लहर में 12 करोड़ लोगों की गई नौकरी

CMIE के आंकड़ों पर नजर डालें तो कोरोना की पहली लहर में ऑर्गनाइज्ड और अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर मिलाकर करीब 12 करोड़ लोगों को अपनी जॉब से हाथ धोना पड़ा. इसमें करीब दो करोड़ नौकरीपेशा और बाकी लेबर क्लास के थे.

कोरोना महामारी के पीक के दौरान सबसे ज्यादा देश के मिडिल क्लास और लेबर क्लास पर मार पड़ी

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37 हजार मजदूरों ने की आत्महत्या

कोरोना महामारी के पीक के दौरान सबसे ज्यादा देश के मिडिल क्लास और लेबर क्लास पर मार पड़ी

37 हजार मजदूरों ने की आत्महत्या

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कोरोना महामारी में मजदूरों पर दोहरी मार पड़ी. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2020 में भारत में लगभग 1 लाख 53 हजार लोगों ने आत्महत्या की, जिसमें तकरीबन 37 बजार दिहाड़ी मजदूर थे. जान देने वालों में सबसे ज्यादा तमिलनाडु के मजदूर थे. फिर मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और गुजरात के मजदूरों की संख्या है.

23 फीसदी लोगों को लेना पड़ा कर्ज

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23 फीसदी लोगों को लेना पड़ा कर्ज

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गांव कनेक्शन के द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार हर चौथे व्यक्ति ने स्वीकार किया है कि उन्हें कोरोना महामारी के दौरान और बाद में घर चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ा . इस मुश्किल दौर में उन्हें जमीन, गहने, कीमती सामान को गिरवी रखना पड़ा या बेचना पड़ा. सर्वे के मुताबिक, पांच फीसदी ने जमीन बेची या गिरवी रखी. सात फीसदी ने गहने या तो बेचे या गिरवी रखे. वहीं आठ फीसदी लोगों ने महंगे सामान या तो बेचे या गिरवी रखे. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के आंकड़ों के अनुसार असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 40 करोड़ मजदूरों के सामने मुश्किलें पैदा हुई.

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