6 मार्च का दिन भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में विश्व बेरोजगारी दिवस (World Unemployment Day) के रूप में मनाया जाता है, लेकिन क्यों? इस दिन ऐसा क्या हुआ था? बेरोजगारों का दिन मनाने के पीछे क्या तर्क है? आपके भी मन में कभी न कभी ऐसे सवाल जरूर आए होंगे, तो आज हम आपको इसका इतिहास और इस दिन की प्रासंगिकता से रूबरू करवाते हैं.
क्या है "अंतर्राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस" का इतिहास?
1930 के दशक में स्टॉक मार्केट मार्केट भयानक तरीके से क्रैश हुआ. इसका असर ये रहा कि दुनिया की इंटरलॉक्ड पूंजीवादी अर्थव्यवस्था बुरे दौर में प्रवेश कर गई. यहां से हजारों प्रोफेशनल्स की नौकरी जाने लगी और बेरोजगारी एक व्यापक समस्या बन गई. इससे प्रभावित लोगों के लिए सामाजिक रूप से भी राहत की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी.
मॉस्को में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की कार्यकारी समिति (ECCI) में 6 मार्च, 1930 को बेरोजगारी के खिलाफ विरोध के "अंतर्राष्ट्रीय दिवस" के रूप में स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया था.
हालांकि शुरू में विरोध की तारीख 26 फरवरी, 1930 रखी गई थी, लेकिन तारीख बहुत जल्दी थी और तैयारी के लिए और समय की जरूरत थी. यही कारण है कि इसे 6 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया गया था.
दुनिया भर में हुए थे प्रदर्शन
जिन-जिन की नौकरियां गई थीं उन्होंने 6 मार्च के दिन यानी अंतरराष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस के मौके पर दुनिया भर में प्रदर्श किए. बर्लिन में 2 प्रदर्शनकारियों की मौते हो गई. विएना और बिलबाओ के बास्क शहर में घटनाओं में कई लोग घायल हुए. लंदन और सिडनी में भी हिंसा की खबरें सामने आईं.
संयुक्त राज्य अमेरिका में, बोस्टन, मिल्वौकी, बाल्टीमोर, क्लीवलैंड, वाशिंगटन, डीसी, सैन फ्रांसिस्को और सिएटल सहित कुल 30 अमेरिकी शहरों में इसी दिन बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. न्यूयॉर्क शहर और डेट्रायट में बड़े पैमाने पर दंगे भड़क उठे जब पुलिस ने हजारों की संख्या में आए प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया.
तब से अब तक 6 मार्च हर साल अंतरराष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है.
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