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जीना मुश्किल कर देने वाली भीषण गर्मी पर साहित्य और अदब वालों ने क्या लिखा है?

Heatwave: भारत के अलग-अलग इलाकों में हीटवेव और स्ट्रोक का दौर जारी है. दूसरी ओर मानसून ने भी लगभग दस्तक दे दी है.

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शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए

ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए

 21वीं सदी के मशहूर शायर राहत इंदौरी (Rahat Indori) की कलम से निकला ये शेर ऐसे वक्त में बिल्कुल फिट बैठता है, जब लोग भीषण गर्मी (Heat Wave) से जूझ रहे हैं. इसके अलावा अगला शेर कैसर-उल जाफरी साहब है, जो लिखते हैं...

तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे

मैं एक शाम चुरा लूं अगर बुरा न लगे

इन दिनों मौसम का बदलता मिजाज भी कुछ इसी तरह का हो गया है. पिछले कई दिनों से भारत के अलग-अलग इलाकों में हीटवेव और स्ट्रोक का दौर जारी है. दिल्ली-NCR, हरियाणा, पंजाब और UP सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में गर्मी और उमस से लोग परेशान हैं. वहीं दूसरी ओर मानसून ने भी लगभग दस्तक दे दी है.

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IMD के मुताबिक दक्षिण-पश्चिम मानसून पूरे देश में पहुंच चुका है और राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के बाकी इलाकों में आगे बढ़ रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं कि साहित्य और अदब से जुड़े लोग मौसम के इस तरह के बदलते मिजाज को किस तरह से देखते हैं.

"मौसम-दोस्त भी, दुश्मन भी"

मौसम की खुशगवारी और इसकी बे-दर्दी को शायरी में अलग-अलग तरीकों से बर्ता गया है. मौसम के मिजाज के नजरिए देखा जाए तो यह दोस्त भी है और दुश्मन भी. उर्दू शायरी में शायरी में मौसम की रूमानियन से पैदा होने वाले इश्किया जज्बात को भी मौजू बनाया गया है.

 आधुनिक दौर के शायरों में अपनी ख़ास पहचान रखने वाले शायर सुल्तान अख़्तर लिखते हैं...

मैं वो सहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी

तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं

आधुनिक पीढ़ी के शायरों में अपनी ख़ास पहचान रखने वाले कुमार पाशी लिखते हैं...

ये कैसी आग बरसती है आसमानों से,

परिंदे लौट के आने लगे उड़ानों से.

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अगले शेर में शब्दों का शानदार प्रयोग देखिए. सामाजिक असंतुलन, गरीबी और असमानता जैसे मुद्दों को शायरी का हिस्सा बनाने वाले शायर बेदिल हैदरी लिखते हैं...

गर्मी लगी तो ख़ुद से अलग हो के सो गए

सर्दी लगी तो ख़ुद को दोबारा पहन लिया

झीलों के शहर भोपाल से ताल्लुक रखने वाले शायर कैफ़ भोपाली कहते हैं...

'कैफ़' परदेस में मत याद करो अपना मकां

अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा

उर्दू गजलकार राजेन्द्र मनचंदा बानी लिखते हैं...

ओस से प्यास कहां बुझती है

मूसला-धार बरस मेरी जान

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हम से पूछो मिज़ाज बारिश का हम जो कच्चे मकान वाले हैं
अशफ़ाक़ अंजुम

उर्दू शायर अतहर नफीस धूप को परेशानी का सबब बताते हुए लिखते हैं...

ये धूप तो हर रुख़ से परेशान करेगी

क्यूं ढूंढ़ रहे हो किसी दीवार का साया

अपनी संजीदा सोच के लिए मशहूर शायर शकील जमाली धूप को दीवार से जोड़ते हुए लिखते हैं...

शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा

सो अपने रस्ते में धूप दीवार हो रही है

आधुनिक उर्दू ग़ज़ल के संस्थापकों में से एक नाम नासिर काज़मी लिखते हैं...

याद आई वो पहली बारिश

जब तुझे एक नज़र देखा था

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खलील रामपुरी, गर्मी के वक़्त महबूब की गली से हवा आने की उम्मीद करते हुए लिखते हैं...

गर्मी बहुत है आज खुला रख मकान को

उस की गली से रात को पुर्वाई आएगी

नजीबाबाद से ताल्लुक रखने वाले उर्दू शायर मरग़ूब अली लिखते हैं...

भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती है

दर्द बरसात की बूँदों में बसा करता है

शायर मीर अनीस लिखते हैं...

गर्मी से मुज़्तरिब था ज़माना ज़मीन पर

भुन जाता था जो गिरता था दाना ज़मीन पर

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अगला शेर भी कुछ इसी तरह घर में आने वाली गर्मी से जुड़ा हुआ है, जो गुलाम मुर्तजा राही की कलम से निलका है. वो लिखते हैं...

गर्मियों भर मिरे कमरे में पड़ा रहता है

देख कर रुख़ मुझे सूरज का ये घर लेना था

आखिरी में शायर शरीफ कुंजाही का शेर, जिसमें ये उम्मीद छिपी है कि ये गर्मी ज्यादा दिनों तक नहीं रहेगी. शरीफ लिखते हैं...

तू जून की गर्मी से न घबरा कि जहां में

ये लू तो हमेशा न रही है न रहेगी

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