हिंदुस्तान के साहित्य में एक बड़ा नाम महाश्वेता देवी (MahaShweta Devi). उनकी लघुकथा द्रौपदी को डीयू इंग्लिश ऑनर्स के कोर्स से हटा दिया गया है. मंगलवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी (Delhi University) के शैक्षणिक परिषद की 12 घंटे बैठक चली, जिसमें 2022-23 सत्र से राष्ट्रीय शिक्षा नीति और चार साल के स्नातक के क्रियान्वयन को मंजूरी दी गई. रिपोर्ट के मुताबिक शैक्षणिक परिषद के 14 सदस्यों ने बीए (ऑनर्स) के पाठ्यक्रम में बदलाव पर असहमति जताई थी.
महाश्वेता देवी एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ ऐसी लेखिका थीं, जिनकी रचनाओं में वंचित तबकों के स्वर बहुत ही प्रभावित ढंग से देखने को मिलते हैं. उनकी कई रचनाओं पर फिल्में भी बन चुकी हैं.
आखिर लघुकथा ‘द्रौपदी’ में ऐसा क्या है
द्रौपदी बंगाल की पृष्ठभूमि पर आधारित एक लघुकथा है. यह 27 साल की एक मजबूत दिमाग की महिला दोपदी की कहानी है, जो पितृसत्ता, बलात्कार और यौन शोषण के खिलाफ लड़ती है. दुलना दोपदी का पति है. वे संथाली जनजाति से संबंध रखते हैं. दोपदी अपने पति दुलना के साथ मिलकर कई अमीर जमींदारों की हत्या करती है, क्योंकि उन्होंने गांव के पानी के स्रोतों पर कब्जा कर रखा था. वो पानी के स्रोतों को अपने अधीन करती है ताकि गांव वालों की पानी की समस्या समाप्त हो सके.
उसके बाद सरकार इस विरोध करने वाले जनजाति ग्रुप को पकड़ने की कोशिश करती है. द्रौपदी को पकड़ लिया जाता है सिपाही उसका रेप करते हैं. दोपदी का बलात्कार करने के बाद सिपाही उसे वापस कपड़े पहनने को कहते हैं ताकि उसे अफसर के पास ले जाया जा सके, लेकिन वो कपड़े पहनने से इनकार कर देती है और कपड़ों को दांतों से फाड़कर फेंक देती है. वो बिना कपड़े के ही दिन की रोशनी में अफसर के सामने चली जाती है और वो कहती है कि मैं कपड़े क्यों पहनूं, यहां पर कोई इंसान ऐसा नहीं जिससे मैं शर्माऊं. उसके इस रूप से सब आश्चर्य में पड़ जाते हैं. निहत्थी दोपदी को देख बिल्कुल डर जाता है.
महाश्वेता देवी की इस लघुकथा में एक ताकतवर सेनानायक एक निहत्थी लड़की के सामने बिल्कुल असहाय महसूस करता है. इसके माध्यम से एक ऐसी महिला का चरित्र दर्शाया गया है, जो खुद के दम पर पितृसत्ता के खिलाफ लड़ाई लड़ती है. इस प्रकार दोपदी का शरीर सत्तावादी शक्ति की हवस और लैंगिक शोषण दोनों का जीता-जागता उदाहरण बन जाता है. दोपदी तमाम तरह की यातनाओं को सहन करती है लेकिन हार नहीं मानती.
अब सवाल ये उठता है कि क्या ऐसी कथाओं या कहानियों को दिल्ली जैसे विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम से हटाना चाहिए जो आदिवायिसों पर हो रहे जुल्म और अत्याचार की सच्ची तस्वीर दिखाते हैं.
महाश्वेता देवी की लघुकथा ‘द्रौपदी’ को कोर्स से हटाने पर यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स के साथ-साथ उनके राजनैतिक संगठनों ने भी आपत्ति जताई है.एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव, लोकेश चुग ने कहा कि
"बीजेपी ने भारत को एक हिंदू देश के रूप में अपने दृष्टिकोण के साथ, अतीत को बदलना शुरू कर दिया क्योंकि यह भारत के धर्मनिरपेक्ष इतिहास को पेश करता है. कोई भी भारतीय इतिहास जिसने इसे हिंदू देश के रूप में स्थापित नहीं किया है, वह इसके हिंदू राष्ट्रवादी आदर्शों की प्राप्ति में बाधा है. यही कारण है कि भाजपा विविधता और समावेशिता को दर्शाने वाले सभी आख्यानों को नष्ट करना चाहती है"
महाश्वेता देवी कौन हैं
महाश्वेता देवी जी एक लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता थीं. बांगला के अलावा उनका खासा लगाव संस्कृत और हिंदी से भी था. भारत विभाजन के बाद उनका परिवार पश्चिम बंगाल में बस गया. महाश्वेता जी ने विश्वभारती विश्वविद्यालय और शांतिनिकेतन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से ज्ञान प्राप्त किया. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, विश्वविद्यालय में ही अंग्रेजी लेक्चरर का पदभार संभाला. लेखन कार्य को ज्यादा वक्त देने के लिए 1984 में उन्होंने रिटायरमेंट ले ली.
महाश्वेता देवी जी को कई राष्ट्रीय पुरस्कारों नवाजा गया. उन्हें 1979 में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, 1996 में ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ और 1997 में ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’ प्राप्त हुआ. दूसरी ओर अगर नागरिक सम्मान की बात की जाए, तो 1986 में ‘पद्मश्री’ और 2006 में उन्हें ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित किया गया.
फेफड़ों के इंफेक्शन से जूझ रहीं महाश्वेता देवी को अचानक दिल का दौरा पड़ा. किडनी सहित उनके कई अंगों के काम करना बंद हो जाने से जुलाई 2016 में उनका निधन हो गया.
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