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Navjot Singh Sidhu को रोड रेज केस में एक साल की जेल, बोले-अदालत का जो हुक्म

रोड रेज में जिस शख्स की मौत हुई थी, उसके परिवार ने रिव्यू पिटीशन दायर की थी.

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 1988 के रोड रेज (Road Rage) मामले में पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को एक साल जेल की सजा सुनाई है. कोर्ट ने मामले में हादसे के दौरान मारे गए 65 साल के मृतक के परिवार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया था.

सिद्धू को इस मामले में हाईकोर्ट ने सजा दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गैर इरादतन हत्या के आरोप को खारिज कर दिया था. इसके बाद 2 साल पहले परिजनों ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी.

वहीं, अदालत के फैसले के बाद कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने ट्वीट कर कहा कि अदालत का जो हुक्म.

सजा होने पर जनप्रतिनिधियों के लिए क्या है नियम?

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 विधायकों की नियुक्ति, अयोग्यता आदि के नियमों को निर्धारित करता है. अधिनियम की धारा 8(3) के तहत, यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और दो या अधिक वर्षों के कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो उसे दोषसिद्धि की तारीख से संसद या राज्य विधानमंडल में किसी भी पद पर रहने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाता है. उन्हें उनकी अंतिम रिहाई की तारीख से अतिरिक्त छह वर्षों के लिए भविष्य के किसी भी कार्यालय को धारण करने से भी अयोग्य घोषित किया जाता है.
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1988 में क्या हुआ था?

साल 1988 में सिद्धू का पटियाला में पार्किंग को लेकर 65 साल के गुरनाम सिंह नामक बुजुर्ग व्यक्ति से झगड़ा हो गया. आरोप यहां तक लगे कि उनके बीच मारपीट भी हुई. इसके बाद गुरनाम सिंह की मौत हो गई. पुलिस ने नवजोत सिंह सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह सिद्धू के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया था.

मामला अदालत पहुंचा तो सुनवाई के दौरान सेशन कोर्ट ने सिद्धू को सबूतों का अभाव में 1999 में बरी किया. लेकिन पीड़ित पक्ष ने मामले को हाईकोर्ट पहुंचा दिया. साल 2006 में हाईकोर्ट ने इस मामले में सिद्धू को तीन साल कैद की सजा और एक लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी.

इसके बाद सिद्धू ने मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 16 मई 2018 को सिद्धू को गैर इरादतन हत्या के आरोप में लगी धारा 304 से बरी कर दिया गया. हालांकि, IPC की धारा 323 (चोट पहुंचाने) के मामले में सिद्धू को दोषी ठहरा दिया गया. लेकिन उन्हें जेल की सजा नहीं हुई, सिद्धू को सिर्फ एक हजार रुपया जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया.

पीड़ित पक्ष में जब पुनर्विचार याचिका दाखिल की तो कोर्ट ने उसे स्वीकार कर उस पर सुनवाई की और सिद्धू को दोषी मानते हुए एक साल जेल की सजा सुनाई है.

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