'अधिकार बगैर इस दुनिया में जीना मुश्किल है. आप बोलोगे, तो कहेंगे कि यह देशद्रोही है. अगर नहीं बोलोगे, तो कहेंगे कि गूंगा है. मुझे लगता है कि गूंगा होने की बजाए देशद्रोही होना कहीं ज्यादा बेहतर है.'
यह शब्द हैं पाटीदार आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल के. 12 सितंबर को उन्होंने अपना 19 दिन लंबा अनशन खत्म किया. पिछले 19 दिन में उनके मंच पर बीजेपी को छोड़कर लगभग हर राजनीतिक दल के प्रतिनिधियों का आना-जाना लगा हुआ था, लेकिन सूबे की बीजेपी सरकार उनकी मांगों के सामने अडिग रही. आखिरकार पटेल समाज के नेताओं के आग्रह पर उन्होंने अपना आमरण अनशन खत्म कर दिया.
गुजरात में पटेल समाज की दो बड़ी शाखाएं हैं. पहली लेउआ पटेल और दूसरी कड़वा पटेल. उंझा में स्थित उमिया माता मंदिर कड़वा पटेलों के श्रद्धा का केंद्र है. कड़वा पाटीदार उमिया माता को अपनी कुल देवी मानते हैं. वहीं खोडल धाम की खोडियार माता लेउआ पटेल कुलदेवी के तौर पर पूजते हैं.
हार्दिक ने अपना अनशन प्रह्लाद पटेल और नरेश पटेल के हाथों जूस पीकर तोड़ा. नरेश लेउआ के मंदिर खोडल धाम के अध्यक्ष हैं, तो प्रह्लाद उमिया माता मंदिर ट्रस्ट के सदर हैं. अनशन खत्म करते वक्त हार्दिक यह संदेश देना चाह रहे थे कि उनके पीछे पूरा पाटीदार समाज एकजुट है.
कैसे शुरू हुआ अनशन
इस अनशन की शुरुआत के पीछे 20 अगस्त को हुई एक गिरफ्तारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही. इस दिन सूरत से पाटीदार अनामत आंदोलन के संयोजक अल्पेश कथरिया को गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर तीन साल पहले पाटीदार आरक्षण आंदोलन के वक्त राजद्रोह की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था.
हार्दिक पटेल गुजरात चुनाव के नतीजों के बाद से ही फिर से आंदोलन शुरू करने की बात कह रहे थे. अल्पेश की गिरफ्तारी के बाद सूरत, मेहसाणा, अहमदाबाद, अमरेली सहित सूबे के काई कोनों में पाटीदार सड़कों पर उतर आए. गिरफ्तारी के पांचवें दिन हार्दिक पटेल ने अनशन की शुरुआत कर दी.
क्या हैं मांगें
हार्दिक ने अनशन की शुरुआत तीन मांगों को लेकर की थी. पहला, पाटीदारों को अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में आरक्षण दिया जाए. दूसरा, किसानों के कर्जे माफ किए जाएं और तीसरा, अल्पेश कथोरिया को बिना शर्त रिहा किया जाए. इनमें से शुरुआती दो मांगों पर समझौता होना मुश्किल लग रहा था, लेकिन तीसरे बिंदु पर समझौते की उम्मीद थी. सरकार ने हार्दिक की किसी भी मांग को मानाने से साफ इनकार कर दिया.
आगे का रास्ता क्या है
अनशन तोड़ने के बाद हार्दिक पटेल ने जल्द ही दिल्ली में अनशन करने का ऐलान किया है. उन्होंने उपवास तोड़ने के बाद प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि वो इस लड़ाई को दिल्ली लेकर जाएंगे. वहां अनशन पर बैठकर यह साबित कर देंगे कि उनके आन्दोलन पर लग रहे हिंसा के आरोप बेबुनियाद हैं. इसके अलावा उन्होंने गुजरात के 12,000 गांवों का दौरा करने की बात भी कही.
हार्दिक के आंदोलन का कितना असर
पिछले लंबे समय से पाटीदार अनामत आंदोलन और पटेल समाज की संस्थाओं के बीच खींचतान चली आ रही थी. उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल से लेकर ऊर्जा मंत्री सौरभ पटेल तक, पटेल समाज के कई बड़े नेता बीजेपी के खेमे में हैं. ऐसे में समाज की परंपरागत संस्थाओं का झुकाव सत्ताधारी दल की तरफ होना स्वाभाविक बात है.
यह झुकाव हार्दिक के साथ टकराव की वजह बना हुआ था. इस अनशन के जरिए हार्दिक पाटीदार समाज के दोनों धड़ों के नेताओं को साधने में कामयाब नजर आ रहे हैं.
आने वाले समय में हार्दिक पटेल को दिल्ली में अनशन करते हुए देखा जा सकता है. अगर ऐसा हुआ, तो यह बीजेपी के लिए अच्छा संकेत नहीं होगा. इससे प्रधानमंत्री मोदी हार्दिक की जद में और हार्दिक राष्ट्रीय मीडिया की जद में आ सकते हैं. इससे बीजेपी को गुजरात में काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
इसी साल जुलाई में हार्दिक 25 साल की उम्र पर कर चुके हैं. विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी के साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ कड़ी चुनौती खड़ी की थी. फिलहाल अल्पेश और जिग्नेश विधानसभा में पहुंच चुके हैं. ऐसे में इस बात की बहुत संभावना बनती है कि हार्दिक 2019 का चुनाव लड़ जाएं.
2016 के अगस्त में आनंदीबेन पटेल ने अचानक से अपना इस्तीफा फेसबुक पर सार्वजनिक कर दिया था. उस समय अहमदाबाद के सियासी गलियारों में एक वाक्य बार-बार उछाला जा रहा था, “भतीजा बुआ के सरकार खा गया”. हार्दिक पटेल अहमदाबाद के वीरम गांव के रहने वाले हैं. आनंदीबेन उस समय इसी सीट से विधायक हुआ करती थीं. 2015 के पाटीदार आन्दोलन के वक्त हार्दिक पटेल अपने भाषणों आनंदीबेन पटेल को ‘फुई’ कह कर बुलाया करते थे. पूरे गुजरात में उनका यही नाम प्रचलित हो गया था. फुई का हिंदी तर्जमा है, ‘बुआ’.
इस बार के आंदोलन में वो धार नहीं है कि हार्दिक मुख्यमंत्री की कुर्सी हिला पाएं, लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं है कि वो सियासी तौर पर अपने माने खो चुके हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में पूरी 26 सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं. गुजरात में पटेल बिरादरी बीजेपी का सबसे बड़ा वोट बैंक है. अगर हार्दिक का आन्दोलन ऐसे ही चलता रहा, तो इस वोट बैंक में सेंध लगना तय है.
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