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दबदबा, जाति पर पकड़: बिहार में आनंद मोहन की रिहाई पर क्यों खुश हैं पार्टियां?

Anand Mohan सिंह कौन हैं? उनकी रिहाई ने क्यों सुर्खियां बटोरीं और BJP नेताओं को क्यों दुविधा में डाल दिया?

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आनंद मोहन-एक 'बाहुबली' जिसे बंदूक के साथ फोटो खिंचवाना पसंद था, लालू प्रसाद यादव का 'दुश्मन', नीतीश कुमार का पुराना दोस्त और बिहार में राजपूतों के सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं. 2007 में एक IAS अधिकारी की लिचिंग के मामले में उनकी सजा शायद बिहार के सबसे चर्चित मामलों में से एक है.

दबदबा, जाति पर पकड़: बिहार में आनंद मोहन की रिहाई पर क्यों खुश हैं पार्टियां?

  1. 1. आनंद मोहन सिंह पर क्या है लिंचिंग केस?

    • 1994 में, गोपालगंज के DM और 1985 बैच के IAS अधिकारी जी कृष्णैया को पीट-पीटकर मार डाला गया था, जब उनकी कार मुजफ्फरपुर में एक अंतिम संस्कार के जुलूस से गुजर रही थी. इसमें बाहुबली आनंद मोहन भी शामिल थे. कृष्णैया तेलंगाना (तब आंध्र प्रदेश) के दलित थे.

    • आनंद मोहन, उस समय सहरसा के महिषी सीट से विधायक थे और भूमिहार समुदाय के गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार में शामिल होने पहुंचे थे.

    • उस समय छोटन शुक्ला की हत्या के लिए बृज बिहारी प्रसाद को दोषी ठहराया जा रहा था, जो एक मजबूत OBC नेता थे. बाद में बृज बिहारी प्रसाद राबड़ी देवी कैबिनेट में मंत्री भी बने थे.

    • इस मामले में 2007 में, ट्रायल कोर्ट ने हत्या के लिए आनंद मोहन सिंह को मौत की सजा सुनाई थी. इसके बाद 2008 में पटना हाईकोर्ट ने सजा को उम्रकैद में बदल दिया. हालांकि, फैसले के बाद राहत के लिए आनंद मोहन सुप्रीम कोर्ट भी गये. लेकिन 2012 में अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले बरकरार रखा था.

    • बिहार में जेल नियमों के मुताबिक, सरकारी कर्मचारी की हत्या जैसे मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे लोगों को 14 साल की सजा काटने के बाद भी रिहा नहीं किया जा सकता है. मोहन की रिहाई इस नियम में संशोधन के लिए बिहार कैबिनेट की मंजूरी के बाद हुई है.

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  2. 2. लालू के दुश्मन, नीतीश के दोस्त?

    राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, मोहन की सत्ताधारी गठबंधन से मेल-मिलाप कोई आश्चर्य की बात नहीं है. क्योंकि JDU और RJD दोनों ने 2007 में दोषी ठहराए जाने के बावजूद मोहन और उनके परिवार के साथ संबंध बनाए रखे हैं.

    बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में, आनंद मोहन की पत्नी लवली और बेटे चेतन दोनों ने RJD के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की.

    हालांकि, आनंद मोहन, नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच चीजें हमेशा से इतनी अच्छी नहीं रही हैं.

    आनंद मोहन ने अपना पहला चुनाव 1990 में हम्हिशी विधानसभा सीट से अविभाजित जनता दल के नेता के रूप में जीता था. उस समय नीतीश और लालू दोनों ही पार्टी के कद्दावर नेता थे. लालू को उस साल पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे.

    मंडल राजनीति में लालू के उदय के बाद, मोहन ने 1993 में पार्टी से अलग होकर बिहार पीपुल्स पार्टी (BPP) बनाई. एक साल बाद नीतीश कुमार भी जनता दल से अलग होकर समता पार्टी का गठन किया. BPP ने वैशाली से एक उपचुनाव जीतकर अपनी पहली हाई-प्रोफाइल चुनावी सफलता का स्वाद चखा था.

    1995 के विधानसभा चुनावों में मोहन ने 100 से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन BPP का प्रदर्शन निराशाजनक था. इसके बाद मोहन ने नीतीश कुमार-जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व वाली समता पार्टी के साथ हाथ मिलाया और 1996 में शिवहर से चुनाव जीत पहली बार सांसद बने थे.

    BPP ने 1999 का चुनाव BJP और JDU के साथ गठबंधन में लड़ा था. 2004 में इसका कांग्रेस में विलय हो गया.

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  3. 3. आनंद मोहन की कितनी राजनीतिक पकड़?

    90 के दशक में जब लालू मंडल वोटों की सवारी कर रहे थे, तब आनंद मोहन उच्च जातियों, विशेष रूप से राजपूतों के सबसे बड़े नेताओं में से एक के रूप में उभरे थे. आनंद मोहन पर नरमी बरतते की वजह, महागठबंधन और बीजेपी दोनों का स्पष्ट फोकस राजपूत और सवर्ण वोटों पर है.

    विशेषज्ञों का कहना है कि OBC के बड़े हिस्से ने महागठबंधन का समर्थन किया है और 2020 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को उच्च जाति के वोट मिले हैं. नीतीश कुमार आनंद मोहन की मदद से उच्च जाति के वोटों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं.

    आंकड़ों के मुताबिक, ज्यादातर ऊंची जाति के विधायक (34) बीजेपी के टिकट पर चुने गए थे.

    त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा द्वारा क्यूरेट किए गए आंकड़ों के अनुसार, BJP ने अपने सभी टिकटों का 24.5% (110 सीटों पर चुनाव लड़ा था) राजपूत उम्मीदवारों को, 11.8% टिकट ब्राह्मणों को और 7.3% टिकट भूमिहारों को दिये थे. वहीं, JDU ने ऊंची जातियों के उम्मीदवारों को 20 फीसदी से कम टिकट बांटे थे.

    शिवहर, सुपौल, सहरसा और मधेपुरा सहित कम से कम चार निर्वाचन क्षेत्रों में आनंद मोहन और उनके परिवार का राजपूत और अन्य उच्च जाति के मतदाताओं के बीच दबदबा है-ये सभी निर्वाचन क्षेत्र जहां BJP को कमजोर माना जाता है.

    विशेषज्ञों का मानना है कि राजपूत वोटों को मजबूत करने के लिए ही नीतीश कुमार ने आनंद मोहन के साथ अपने संबंधों को नहीं छुपाया.

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  4. 4. राजनीतिक संबंधों के आधार पर और हुई रिहाई

    जेल से रिहाई की सुर्खियों में भले ही आनंद मोहन हैं. लेकिन एक और राजनीतिक संबंधों वाला कैदी को रिहा किया गया है.

    रिहा होने वाले 27 कैदियों में JDU के पूर्व नेता और विधायक अवधेश मंडल भी शामिल हैं. उनकी पत्नी बीमा भारती लगातार चौथी बार रूपौली विधानसभा क्षेत्र से JDU की मौजूदा विधायक हैं. वह पूर्व कैबिनेट मंत्री भी रह चुकी हैं.

    रिहा किए जाने वालों की सूची से CPI (ML) भी चिढ़ गई है, जिसने महागठबंधन को बाहर से समर्थन दिया है. मामले पर जारी एक बयान में, पार्टी सचिव कुणाल ने कहा कि उनके छह साथियों की मौत हो गई थी और अरवल जिले के कई अन्य 2003 में टाडा के तहत "न्याय के घोर उपहास में" दोषी ठहराए जाने के बाद से जेलों में बंद हैं.

    PTI के अनुसार, सूची में शामिल अन्य लोगों में बक्सर से राज बल्लभ यादव और भागलपुर से चंदेश्वरी यादव शामिल हैं. दोनों की उम्र 80 वर्ष से अधिक है. इसमें राम प्रदेश सिंह (गया) का भी नाम शामिल हैं, जिन्हें 1985 में दोषी ठहराया गया था.

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  5. 5. असमंजस में क्यों है BJP?

    इस मामले पर बीजेपी की प्रतिक्रिया काफी हद तक ठंडी रही है, कम से कम राज्य इकाई के भीतर. बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और बीजेपी सांसद सुशील कुमार मोदी ने ट्विटर पर नीतीश कुमार से पूछा कि जेल नियमों को किस आधार पर कमजोर किया गया?

    उन्होंने आरोप लगाया, "चुनाव के दौरान केवल 'बाहुबलियों'का इस्तेमाल करने के लिए ये कदम उठाए गए."

    बीजेपी आईटी सेल के प्रभारी अमित मालवीय ने ट्वीट कर बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन पर तीखा हमला किया और कहा, "RJD की भयावह साजिशों के आगे घुटने टेकने के लिए नीतीश कुमार को शर्म आनी चाहिए."

    उन्होंने आगे कहा, "क्या सत्ता पर काबिज होने के लिए आपराधिक सिंडिकेट पर निर्भर रहने वाला कोई व्यक्ति विपक्षी नेता ( पीएम उम्मीदवार) के रूप में भी भारत का चेहरा हो सकता है?"

    हालांकि, बीजेपी विधायक अवधेश नारायण सिंह ने मीडिया से बात करते हुए नरम दिखे. उन्होंने कहा, "कानून ने यहां अपना काम किया है और ये चीजें उसी के अनुसार काम करती हैं. लेकिन नियम सभी के लिए समान होने चाहिए."

    केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि "बेचारे आनंद मोहन को नीतीश कुमार सरकार सिर्फ बलि का बकरा है."

    उन्होंने कहा, "लोग पूछ रहे हैं कि केवल आनंद मोहन को रिहा करने की आड़ में किसे रिहा किया गया है."

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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यही वजह है कि उनकी रिहाई की खबरें और उसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के साथ उनकी तस्वीरें राष्ट्रीय सुर्खियां बनीं हुई हैं.

यह तस्वीर 24 अप्रैल को पटना में आनंद मोहन के बेटे और विधायक चेतन की सगाई समारोह में क्लिक की गई थी, जबकि आनंद मोहन अपनी सजा काट रहे थे. एक दिन पहले बिहार सरकार द्वारा जारी की गयी 27 लोगों की सूची में आनंद मोहन का भी नाम था और अब वो जेल से बाहर आ चुके हैं.

आनंद मोहन की रिहाई का बिहार में JDU और RJD के नेताओं ने मजबूती से बचाव किया है. जबकि कांग्रेस काफी हद तक चुप रही है और बीजेपी ने मिली-जुली ने प्रतिक्रिया दी है.

कौन हैं आनंद मोहन सिंह? उनकी रिहाई ने राष्ट्रीय सुर्खियां क्यों बटोरीं और बिहार के बीजेपी नेताओं को क्यों दुविधा में डाल दिया? उनका राजनीतिक रसूख क्या है और राज्य में उनका राजनीतिक आधार क्या है?
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आनंद मोहन सिंह पर क्या है लिंचिंग केस?

  • 1994 में, गोपालगंज के DM और 1985 बैच के IAS अधिकारी जी कृष्णैया को पीट-पीटकर मार डाला गया था, जब उनकी कार मुजफ्फरपुर में एक अंतिम संस्कार के जुलूस से गुजर रही थी. इसमें बाहुबली आनंद मोहन भी शामिल थे. कृष्णैया तेलंगाना (तब आंध्र प्रदेश) के दलित थे.

  • आनंद मोहन, उस समय सहरसा के महिषी सीट से विधायक थे और भूमिहार समुदाय के गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार में शामिल होने पहुंचे थे.

  • उस समय छोटन शुक्ला की हत्या के लिए बृज बिहारी प्रसाद को दोषी ठहराया जा रहा था, जो एक मजबूत OBC नेता थे. बाद में बृज बिहारी प्रसाद राबड़ी देवी कैबिनेट में मंत्री भी बने थे.

  • इस मामले में 2007 में, ट्रायल कोर्ट ने हत्या के लिए आनंद मोहन सिंह को मौत की सजा सुनाई थी. इसके बाद 2008 में पटना हाईकोर्ट ने सजा को उम्रकैद में बदल दिया. हालांकि, फैसले के बाद राहत के लिए आनंद मोहन सुप्रीम कोर्ट भी गये. लेकिन 2012 में अदालत ने हाईकोर्ट के फैसले बरकरार रखा था.

  • बिहार में जेल नियमों के मुताबिक, सरकारी कर्मचारी की हत्या जैसे मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे लोगों को 14 साल की सजा काटने के बाद भी रिहा नहीं किया जा सकता है. मोहन की रिहाई इस नियम में संशोधन के लिए बिहार कैबिनेट की मंजूरी के बाद हुई है.

लालू के दुश्मन, नीतीश के दोस्त?

राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, मोहन की सत्ताधारी गठबंधन से मेल-मिलाप कोई आश्चर्य की बात नहीं है. क्योंकि JDU और RJD दोनों ने 2007 में दोषी ठहराए जाने के बावजूद मोहन और उनके परिवार के साथ संबंध बनाए रखे हैं.

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में, आनंद मोहन की पत्नी लवली और बेटे चेतन दोनों ने RJD के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की.

हालांकि, आनंद मोहन, नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच चीजें हमेशा से इतनी अच्छी नहीं रही हैं.

आनंद मोहन ने अपना पहला चुनाव 1990 में हम्हिशी विधानसभा सीट से अविभाजित जनता दल के नेता के रूप में जीता था. उस समय नीतीश और लालू दोनों ही पार्टी के कद्दावर नेता थे. लालू को उस साल पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे.

मंडल राजनीति में लालू के उदय के बाद, मोहन ने 1993 में पार्टी से अलग होकर बिहार पीपुल्स पार्टी (BPP) बनाई. एक साल बाद नीतीश कुमार भी जनता दल से अलग होकर समता पार्टी का गठन किया. BPP ने वैशाली से एक उपचुनाव जीतकर अपनी पहली हाई-प्रोफाइल चुनावी सफलता का स्वाद चखा था.

1995 के विधानसभा चुनावों में मोहन ने 100 से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन BPP का प्रदर्शन निराशाजनक था. इसके बाद मोहन ने नीतीश कुमार-जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व वाली समता पार्टी के साथ हाथ मिलाया और 1996 में शिवहर से चुनाव जीत पहली बार सांसद बने थे.

BPP ने 1999 का चुनाव BJP और JDU के साथ गठबंधन में लड़ा था. 2004 में इसका कांग्रेस में विलय हो गया.

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आनंद मोहन की कितनी राजनीतिक पकड़?

90 के दशक में जब लालू मंडल वोटों की सवारी कर रहे थे, तब आनंद मोहन उच्च जातियों, विशेष रूप से राजपूतों के सबसे बड़े नेताओं में से एक के रूप में उभरे थे. आनंद मोहन पर नरमी बरतते की वजह, महागठबंधन और बीजेपी दोनों का स्पष्ट फोकस राजपूत और सवर्ण वोटों पर है.

विशेषज्ञों का कहना है कि OBC के बड़े हिस्से ने महागठबंधन का समर्थन किया है और 2020 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को उच्च जाति के वोट मिले हैं. नीतीश कुमार आनंद मोहन की मदद से उच्च जाति के वोटों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं.

आंकड़ों के मुताबिक, ज्यादातर ऊंची जाति के विधायक (34) बीजेपी के टिकट पर चुने गए थे.

त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा द्वारा क्यूरेट किए गए आंकड़ों के अनुसार, BJP ने अपने सभी टिकटों का 24.5% (110 सीटों पर चुनाव लड़ा था) राजपूत उम्मीदवारों को, 11.8% टिकट ब्राह्मणों को और 7.3% टिकट भूमिहारों को दिये थे. वहीं, JDU ने ऊंची जातियों के उम्मीदवारों को 20 फीसदी से कम टिकट बांटे थे.

शिवहर, सुपौल, सहरसा और मधेपुरा सहित कम से कम चार निर्वाचन क्षेत्रों में आनंद मोहन और उनके परिवार का राजपूत और अन्य उच्च जाति के मतदाताओं के बीच दबदबा है-ये सभी निर्वाचन क्षेत्र जहां BJP को कमजोर माना जाता है.

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राजनीतिक संबंधों के आधार पर और हुई रिहाई

जेल से रिहाई की सुर्खियों में भले ही आनंद मोहन हैं. लेकिन एक और राजनीतिक संबंधों वाला कैदी को रिहा किया गया है.

रिहा होने वाले 27 कैदियों में JDU के पूर्व नेता और विधायक अवधेश मंडल भी शामिल हैं. उनकी पत्नी बीमा भारती लगातार चौथी बार रूपौली विधानसभा क्षेत्र से JDU की मौजूदा विधायक हैं. वह पूर्व कैबिनेट मंत्री भी रह चुकी हैं.

रिहा किए जाने वालों की सूची से CPI (ML) भी चिढ़ गई है, जिसने महागठबंधन को बाहर से समर्थन दिया है. मामले पर जारी एक बयान में, पार्टी सचिव कुणाल ने कहा कि उनके छह साथियों की मौत हो गई थी और अरवल जिले के कई अन्य 2003 में टाडा के तहत "न्याय के घोर उपहास में" दोषी ठहराए जाने के बाद से जेलों में बंद हैं.

PTI के अनुसार, सूची में शामिल अन्य लोगों में बक्सर से राज बल्लभ यादव और भागलपुर से चंदेश्वरी यादव शामिल हैं. दोनों की उम्र 80 वर्ष से अधिक है. इसमें राम प्रदेश सिंह (गया) का भी नाम शामिल हैं, जिन्हें 1985 में दोषी ठहराया गया था.

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असमंजस में क्यों है BJP?

इस मामले पर बीजेपी की प्रतिक्रिया काफी हद तक ठंडी रही है, कम से कम राज्य इकाई के भीतर. बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और बीजेपी सांसद सुशील कुमार मोदी ने ट्विटर पर नीतीश कुमार से पूछा कि जेल नियमों को किस आधार पर कमजोर किया गया?

उन्होंने आरोप लगाया, "चुनाव के दौरान केवल 'बाहुबलियों'का इस्तेमाल करने के लिए ये कदम उठाए गए."

बीजेपी आईटी सेल के प्रभारी अमित मालवीय ने ट्वीट कर बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन पर तीखा हमला किया और कहा, "RJD की भयावह साजिशों के आगे घुटने टेकने के लिए नीतीश कुमार को शर्म आनी चाहिए."

उन्होंने आगे कहा, "क्या सत्ता पर काबिज होने के लिए आपराधिक सिंडिकेट पर निर्भर रहने वाला कोई व्यक्ति विपक्षी नेता ( पीएम उम्मीदवार) के रूप में भी भारत का चेहरा हो सकता है?"

हालांकि, बीजेपी विधायक अवधेश नारायण सिंह ने मीडिया से बात करते हुए नरम दिखे. उन्होंने कहा, "कानून ने यहां अपना काम किया है और ये चीजें उसी के अनुसार काम करती हैं. लेकिन नियम सभी के लिए समान होने चाहिए."

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि "बेचारे आनंद मोहन को नीतीश कुमार सरकार सिर्फ बलि का बकरा है."

उन्होंने कहा, "लोग पूछ रहे हैं कि केवल आनंद मोहन को रिहा करने की आड़ में किसे रिहा किया गया है."

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