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अनुराग ठाकुर जीतकर भी 'हारे'? कैबिनेट में जगह नहीं, क्या अब BJP में खुद को साबित करना होगा?

Anurag Singh Thakur को इस बार मोदी सरकार में मंत्री पद नहीं मिला है. इसके पीछे कौन से हैं वो तीन पहलू?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की कैबिनेट की घोषणा हो चुकी है. इस बार 71 सांसदों को इसमें जगह दी गई है. लगभग सभी मंत्रियों ने अपने-अपने विभाग का कार्यभार संभाल लिया है, लेकिन इस बीच पूर्व खेल, युवा मामले और सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर (Anurag Thakur) को लेकर चर्चाएं तेज हैं. इस बार अनुराग ठाकुर को मोदी सरकार की कैबिनेट में जगह नहीं मिली है.

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इसके साथ ही कयासों के दौर शुरू हो गया है. अटकल लगाए जाने लगे कि अनुराग सिंह ठाकुर को पार्टी में अहम पद दिया जा सकता है क्योंकि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया है. तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सच में अनुराग ठाकुर को बीजेपी अध्यक्ष बनाया जा सकता है या फिर बात कुछ और है?

चुनाव जीतने के बावजूद सरकार में जगह नहीं

मोदी सरकार में कई ऐसे बड़े नेता हैं जिन्हें मौजूदा कैबिनेट में जगह नहीं मिली है. सबसे अव्वल स्मृति ईरानी, आरके सिंह, अश्विनी चौबे जैसे नेताओं को पार्टी ने पिछले कार्यकाल की तरह इस बार जगह नहीं दी. लेकिन ये वो नेता हैं जो चुनाव हार चुके हैं.

अश्विनी चौबे को बीजेपी ने चुनाव लड़ने के लिए टिकट भी नहीं दिया. हालांकि कई ऐसे नेता भी हैं जो चुनाव जीतकर आए लेकिन उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली, जैसे राजीव प्रताप रूढ़ी, रविशंकर प्रसाद. हालांकि इन नेताओं को मोदी 2.0 में ही कैबिनेट विस्तार के वक्त मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था.

लेकिन अनुराग ठाकुर चुनाव भी जीते हैं और पिछली सरकार के कार्यकाल के आखिर तक मंत्री भी थे.

अनुराग ठाकुर हिमाचल के हमीरपुर से चुनाव जीतकर आए हैं. उन्होंने कांग्रेस के सतपाल रायजादा को करीब 1 लाख 87 हजार वोटों से हराया है. वे पिछले सरकार में खेल, युवा मामलों के मंत्री और सूचना और प्रसारण मंत्री मंत्री थे. लेकिन मोदी 3.0 में अनुराग ठाकुर को जगह नहीं मिलने के पीछे क्या कारण रही?

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री इसके 3 अलग-अलग पहलू बताते हैं. वह कहते हैं,

अनुराग ठाकुर के पार्टी में कोई जगह मिल सकती है ये संभव है. अध्यक्ष पद तो मुश्किल है लेकिन महासचिव बनाया जा सकता है. अध्यक्ष पद इसलिए मुश्किल है क्योंकि अनुराग ठाकुर अभी युवा नेता हैं. पार्टी उनकी राजनीति को एक नया सिरा देने के प्रयास से ऐसे फैसले ले सकती हैं.

दूसरे पहलू के बारे में बात करते हुए हेमंत अत्री कहते हैं, "जेपी नड्डा को कैबिनेट में लेने का फैसला पहले से तय किया जा चुका था. हिमाचल प्रदेश छोटा सा राज्य है, वहां सिर्फ 4 लोकसभा सीटें हैं. ऐसे में वहां से किसी एक को ही मंत्री बनाया जा सकता था, इसलिए अनुराग के आगे जेपी नड्डा को चुना गया."

उपचुनाव में बीजेपी का खराब प्रदर्शन तो वजह नहीं?

हाल ही में हिमाचल प्रदेश की 6 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए. 27 फरवरी को हिमाचल प्रदेश की इकलौती राज्यसभा सीट के लिए वोटिंग के दौरान कांग्रेस के 6 विधायक और 3 निर्दलीय विधायकों ने बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर दी थी, इसके बाद कांग्रेस विधायकों को व्हिप के उल्लंघन के लिए उन्हें दलबदल के तहत अयोग्य करार दे दिया गया और उनकी सीटों पर उपचुनाव हुए.

6 सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को सिर्फ 2 सीटें हासिल हुईं जबकि कांग्रेस को 4 सीटों पर जीत हासिल हुई.

तीसरे पहलू का जिक्र करते हुए हेमंत अत्री कहते हैं, "उपचुनाव में खराब प्रदर्शन भी अनुराग ठाकुर की राह में रोड़ा बना होगा. पार्टी को उम्मीद से कम सीटों पर जीत मिली तो इसकी तपिश तो अनुराग ठाकुर तक पहुंची ही होगी और एक वजह ये भी हो सकती है."

गौरतलब है कि जिन छह सीटों पर उपचुनाव हुए उनमें से तीन सीट सुजानपुर, गगरेट और कुटलेहड़ हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं. इन तीनों सीट पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है.

इन तीन सीटों पर बीजेपी ने राजिंदर राणा, चैतन्य शर्मा और देवेंदर भुट्टो को अपना उम्मीदवार बनाया था. ये तीनों नेता उन छह विधायकों में से हैं जिन्होंने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की पक्ष में राज्य सभा चुनाव के दौरान क्रांस वोटिंग की थी और फिर बाद में बीजेपी में शामिल हो गए थे.

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