अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से करीब डेढ़ घंटे की मुलाकात की. फिर बाहर निकले और दो टूक ऐलान कर दिया कि वह कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे. इस दौरान उन्होंने माफी मांगने से लेकर राजस्थान में कांग्रेस संकट (Rajasthan Congress Crisis) का भी जिक्र किया. कहा कि जो कुछ हुआ ठीक नहीं हुआ. वह कांग्रेस के वफादार सिपाही हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि इस पूरे घटनाक्रम में अशोक गहलोत हीरो बने या विलेन. इसे डिकोड करने की कोशिश करते हैं.
अशोक गहलोत ने विधायकों से कोई सार्वजनिक अपील क्यों नहीं की?
राजस्थान कांग्रेस संकट के दौरान अशोक गहलोत चुप रहे. विधायकों के बगावती सुर एक के बाद एक फूटते रहे और गहलोत बस देखते नजर आए. कोई भी सार्वजनिक अपील नहीं की. अगर मीडिया के सामने आकर यही कह देते कि सभी विधायकों को आलाकमान की बात माननी चाहिए तो शायद विधायक इतने बगावती नहीं होते. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. करीब दो दिन बाद जब दिल्ली पहुंचे तो 12 घंटे में दो बार मीडिया के सामने आए. खुलकर बोले. कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से भी मना कर दिया.
अशोक गहलोत का माफीनामा हकीकत कम नाटकीय ज्यादा लगा
अशोक गहलोत का माफीनामा नाटकीय ज्यादा लगा. वो 28 सितंबर की रात राजस्थान से दिल्ली पहुंचे. रात में ही बयान दिया कि सोनिया गांधी जो तय करेंगी वही होगा. फिर रात बीती. सुबह खबर आई कि अशोक गहलोत को सोनिया गांधी से मुलाकात के लिए समय नहीं दिया जा रहा. कुछ देर बाद ही अशोक गहलोत सोनिया से मिलने के लिए उनके घर पहुंच गए. करीब डेढ़ घंटे मुलाकात हुई. इसके बाद अशोक गहलोत बाहर आकर सीधे मीडिया से बात करने पहुंच गए.
अपनी पूरी स्पीच में 4 से 5 बार सोनिया गांधी से माफी मांगने का जिक्र किया. खुद को राजस्थान का गुनहगार बताकर अध्यक्ष पद का चुनाव न लड़ने की बात कही. जबकि गहलोत शुरू से ही तो यही चाहते थे. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि जब उनके सीएम पद पर सवाल पूछा गया तो कहने लगे कि ये फैसला हाईकमान करे. वह सीएम बने रहें या नहीं.
गहलोत ने भले ही कह दिया हो कि सीएम पद का फैसला हाईकमान करे, लेकिन हाईकमान के निर्देशों की कैसे धज्जियां उड़ाई गईं, वो सबने देखा. यानी गहलोत जानते हैं कि उन्हें सीएम पद से हटाने का फैसला हाईकमान के लिए कितनी मुश्किल पैदा कर सकता है. इसलिए शायद ही उन्हें हटाने के बारे में सोचा जाए. वो भी तब जब गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.
सचिन साइलेंट रहे लेकिन कुछ नहीं मिला, गहलोत ही जीतते रहे
राजस्थान के पूरे घटनाक्रम में अशोक गहलोत हीरो रहे या विलेन. कहना मुश्किल है. लेकिन सचिन साइलेंट और अनुशासन में रहकर भी साइड हीरो ही रहे. क्योंकि पूरे घटनाक्रम के दौरान उनका या उनके समर्थकों का कोई आपत्तिजनक बयान नहीं आया. जबकि अशोक गहलोत के समर्थकों ने पायलट को गद्दार तक कहा. आखिर में क्या हुआ? सचिन पायलट को सीएम की कुर्सी मिलते-मिलते रह गई. अशोक गहलोत भी यही चाहते थे कि सचिन पायलट को सीएम पद न मिले. हुआ भी यही.
पूरे घटनाक्रम में एक बात तो स्पष्ट है कि हाईकमान वर्सेज राजस्थान सीएम की जंग में अशोक गहलोत बाजी मार ले गए. सोनिया गांधी बेबस नजर आईं. क्योंकि राजस्थान में जिस तरह से सोनिया के भेजे पर्यवेक्षकों पर पक्षपात के आरोप लगे. उनके फैसलों की अनदेखी की गई. वह सब गहलोत के करीबियों ने किया. लेकिन जब एक्शन की बात आई तो अशोक गहलोत को क्लीन चिट दे दिया गया. ऐसा इसलिए क्योंकि शायद ये कांग्रेस की मजबूरी थी. पार्टी गहलोत जैसे नेता को खोना नहीं चाहती और अध्यक्ष के लिए गहलोत ही पार्टी की पहली पसंद थे.
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