BJP सांसद बाबुल सुप्रियो (Babul Supriyo) ने राजनीति से संन्यास ले लिया. उन्होंने फेसबुक पर लंबा पोस्ट लिखकर कहा कि मैं ऐसा महसूस कर रहा हूं कि अब राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए. मैं किसी और पार्टी में नहीं जा रहा हूं. पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से सांसद बाबुल सुप्रियो का राजनीतिक करियर सिर्फ 7 साल का ही है. वे 2 बार सांसद रहे. 3 बार विभिन्न विभागों में राज्य मंत्री रहे. इन सबके बावजूद उन्होंने राजनीति छोड़ने का फैसला किया.
पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लिए ये बड़ा झटका है. लेकिन क्या राजनीति से बाबुल की विदाई कुछ और भी संदेश दे रही है? क्या ये बता रही है कि राजनीति में स्टारडम के बूते कामयाबी का दौर खत्म हो गया? क्या बाबुल एक ट्रेंड का हिस्सा भर हैं?
सिंगर से पॉलिटिशियन बने थे बाबुल सुप्रियो
राजनीति में आने से पहले बाबुल सुप्रियो प्लेबैक सिंगर, लाइव परफॉर्मर, टेलीविजन होस्ट और एक्टर थे. उन्होंने मिड नाइन्टीज में हिंदी सिनेमा के लिए कई गाने गाए. सबसे ज्यादा हिंदी, बंगाली और उड़िया भाषा में गाने गाए. उन्होंने 11 अन्य भाषाओं में भी गाना गाया है.
साल 2014 में भाजपा के जरिए राजनीति में एंट्री हुई. आसनसोल से टीएमसी के डोला सेन को हराकर सांसद बने. मिनिस्ट्री ऑफ अर्बन डेवलपमेंट एंड मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन पॉवर्टी एलेविएशन में राज्य मंत्री बने. फिर साल 2016 में मिनिस्ट्री ऑफ हैवी इंडस्ट्रीज एंड पब्लिक एंटरप्राइजेज में राज्य मंत्री बने. साल 2019 में फिर से चुनाव हुआ और दूसरी बार चुनकर संसद में पहुंचे. मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरनमेंट, फॉरेस्ट एंड क्लाइमेट चेंज में राज्य मंत्री का दर्जा मिला.
यहां तक तो सब ठीक था। लेकिन इसके बाद साल 2021 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हुआ. रिकॉर्ड मतों से जीत का दावा करने वाली भाजपा की हार हुई. ठीकरा बाबुल सुप्रियो पर भी फूटा. राजनीति से संन्यास लेने से पहले बाबुल सुप्रियो लगातार अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे थे. उन्होंने कहा भी था कि मैं हार की जिम्मेदारी लेता हूं, लेकिन दूसरे नेता भी जिम्मेदार हैं.
'जब धुआं होता है तो कहीं आग जरूर लगती है'
इसी महीने जब मोदी कैबिनेट का विस्तार हुआ, तब उससे ठीक पहले उन्होंने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया था कि जब धुआं होता है तो कहीं आग जरूर लगती है. बाबुल सुप्रियो टॉलीगंज सीट से विधानसभा चुनाव लड़े थे, लेकिन अपनी सीट नहीं बचा सके.
यानी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव उनके राजनीतिक करियर में बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ. यहीं से वे बीजेपी की टॉप प्रॉयोरिटी से खिसकने लगे. नतीजा आपके सामने है. तो एक सवाल ये भी है कि क्या बाबुल पार्टी में अपनी अनदेखी से खफा थे. जो भी असल सवाल तो यही है कि अनदेखी हुई भी तो ये नौबत कैसे आई?
बीजेपी में शामिल हुए मिथुन भी एक्टिव नहीं हैं
इसी साल मार्च महीने में कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में पीएम मोदी की रैली होनी थी, उससे ठीक पहले एक्टर मिथुन चक्रवर्ती ने भाजपा का दामन थाम लिया था. मिथुन की करीब 5 साल बाद राजनीति में एंट्री हुई. उससे पहले साल 2014 में ममता बनर्जी ने उन्हें राज्यसभा के लिए भेजा. वहां दो एक साल बाद दिसंबर 2016 में इस्तीफा दे दिया. इसके बाद राजनीति में भाजपा के साथ 2021 में एंट्री ली.
हालांकि वे चुनाव नहीं लड़े. कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि मिथुन चक्रवर्ती ने खुद ही चुनाव लड़ने से मना किया है. मिथुन को स्टार प्रचार के तौर पर शामिल किया. उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान मंच से अपने डायलॉग के जरिए भीड़ जुटाने का काम तो किया, लेकिन वो भीड़ वोट में नहीं बदली. नतीजा हुआ कि भाजपा चुनाव हार गई। चुनाव बाद मिथुन चक्रवर्ती पश्चिम बंगाल में ज्यादा एक्टिव नजर नहीं आ रहे हैं.
प. बंगाल में किसके फिल्म स्टार/मॉडल/क्रिकेटर चमके?
पश्चिम बंगाल में भाजपा और टीएमसी दोनों ने फिल्म स्टार, मॉडल, सिंगर या क्रिकेटर को टिकट दिया. लेकिन इन उम्मीदवारों के प्रभाव से ज्यादा पार्टी की इमेज ने काम किया. यही वजह है कि इन सेलिब्रिटी में टीएमसी उम्मीदवारों ने ज्यादा जीत संख्या में जीत दर्ज की. टीएमसी की बात करें तो डायरेक्टर राज चक्रवर्ती, सिंगर अदिति मुंशी, एक्टर कंचन मल्लिक और जून मल्लिया ने जीत हासिल की. हालांकि सायोनी घोष, सायंतिका बैनर्जी, कौशानी मुखर्जी जैसे टीएमसी उम्मीदवार की हार भी हुई.
वहीं हिरन चटर्जी को छोड़कर इस साल भाजपा में शामिल हुए सभी कलाकारों ने खराब प्रदर्शन किया. हिरन चटर्जी ने खड़गपुर सदर से टीएमसी के प्रदीप सरकार को हराया. इस साल फरवरी में बंगाली फिल्म अभिनेता यश दासगुप्ता और पापिया अधिकारी भाजपा में शामिल हुए. लेकिन चांदीपुर में यश दासगुप्ता और उलुबेरिया साउथ से पापिया अधिकारी की हार हुई. दोनों उम्मीदवार टीएमसी से हारे.
मार्च में एक्ट्रेस सरबंती चटर्जी, पायल सरकार और तनुश्री चक्रवर्ती भाजपा में शामिल हुई थीं, लेकिन तीनों टीएमसी से हार गईं। दो साल पीछे जाए तो साल 2019 में परनो मित्रा सहित 11 कलाकार दिल्ली पहुंच भाजपा में शामिल हुए थे. लेकिन परनो मित्रा टीएमसी के तापस रॉय से हार गए.
खिलाड़ियों की बात करें तो टीएमसी के टिकट पर क्रिकेटर मनोज तिवारी और फुटबॉलर विदेश बोस ने जीत हासिल की. वहीं भाजपा के टिकट पर पूर्व क्रिकेटर अशोक डिंडा ने जीत दर्ज की.
फिल्मों के सुपरस्टार राजनीति में फेल!
राजनीति से दूरी बनाने वालों में सुपरस्टार रजनीकांत एक बड़ा नाम है. उन्होंने इसी महीने राजनीति छोड़ने का ऐलान किया और अपने संगठन रजनी मक्कल मंद्रम (RMM) को भी भंग कर दिया. उन्होंने भविष्य में भी राजनीति में आने से इच्छा जाहिर नहीं की. इससे पहले दिसंबर 2020 में उन्होंने खुद कहा था कि जनवरी 2021 में पार्टी लॉन्च करेंगे.
ताजा उदाहरण कमल हासन का भी है. 21 फरवरी 2018 को उन्होंने तमिलनाडु में क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी मक्कल निधि मय्यम (एमएनएम) का गठन किया. उनकी पार्टी ने 2019 में 37 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ा और हार गई. वहीं तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में कमल हासन की बुरी हार हुई. यहां तक कि वे अपनी खुद की सीट नहीं बचा पाए. विधानसभा चुनाव से पहले वे राजनीति में काफी एक्टिव थे, लेकिन नतीजों के बाद शांत नजर आ रहे हैं.
बाबुल सुप्रियो, सुपरस्टार रजनीकांत और कमल हासन का इतना जल्दी राजनीति से मोह भंग होना ये साबित करता है कि ये कलाकार शायद समझ गए कि पर्दे पर एक्शन के बदले ऑडियंश का जबरदस्त रिएक्शन मिल सकता है, लेकिन जरूरी नहीं कि फिल्माई करिश्मा राजनीति में भी काम कर जाए. शायद 21वीं सदी के वोटर को स्टार पावर से नहीं बहला सकते, उसके लिए जन नायक होना पहली शर्त है.
अमिताभ से लेकर गोविंदा तक
राजनीति में फेल सुपरस्टार्स की एक लंबी फेहरिस्त है. इसमें अमिताभ बच्चन एक बड़ा नाम है. उन्हें राजीव गांधी राजनीति में लेकर आए. साल 1984 में इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव लड़े और जीत गए. लेकिन बोफोर्स घोटाले में नाम आने के बाद सांसद पद से इस्तीफा देकर राजनीति को भी अलविदा कह दिया.
फिल्म इंडस्ट्री में सुनील दत्त का बड़ा नाम है. वे लगातार पांच बार सांसद चुने गए. शुरुआत 1984 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मुंबई उत्तर पश्चिम लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने से हुई. उनकी मृत्यु के बाद बेटी प्रिया दत्त ने पिता की विरासत संभाली.
गोविंदा ने 2004 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और भाजपा उम्मीदवार को हराया. लेकिन जीत के बाद भी राजनीति में सफल नहीं हुए और 2008 में पार्टी से इस्तीफा दे दिया.
एक्ट्रेस उर्मिला मातोंडकर मार्च 2019 में कांग्रेस में शामिल हुई. मुंबई उत्तर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं. उसी साल सितंबर में पार्टी छोड़ दिया. हालांकि फिर से साल 2020 में शिवसेना में शामिल हो गईं.
सनी देओल पंजाब के गुरदासपुर से भाजपा सांसद हैं. वह अपने राजनीतिक करियर में अक्सर विवादों में रहे हैं. उन्होंने एक बार तो अपनी अनुपस्थिति में गुरदासपुर में एक व्यक्ति को नियुक्त कर दिया और कहा कि जब वे (सनी देओल) गुरदासपुर में नहीं रहेंगे तो वह व्यक्ति ही बैठकों में शामिल होगा. उनके इस फैसले की काफी आलोचना हुई थी.
जावेद जाफरी साल 2014 में आम आदमी पार्टी में शामिल हुए. 2014 में लखनऊ से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. उसके बाद से राजनीति में ज्यादा एक्टिव नहीं दिखे.
शेखर सुमन ने 2009 में पटना साहिब से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा से हार गए. बाद में 2012 में उन्होंने राजनीति को अलविदा कह दिया.
गुल पनाग ने साल 2014 में चंडीगढ़ से आप के टिकट पर चुनाव लड़ा. हालांकि वह तीसरे नंबर पर रहीं. आज वे राजनीति में ज्यादा सक्रिय नहीं हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)