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बवाना उपचुनाव, एक सीट का नहीं, अरविंद केजरीवाल की इज्जत का सवाल है

अरविंद केजरीवाल, अजय माकन और मनोज तिवारी ने जीत के लिए झोंकी पूरी ताकत 

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दिल्ली की बवाना विधानसभा सीट पर 23 अगस्त को उप चुनाव होना है. दिल्ली सचिवालय से करीब चालीस किलोमीटर दूर बवाना विधानसभा सीट पर हो रहा उप-चुनाव महज एक सीट का नहीं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) की इज्जत का सवाल है.

यही वजह है कि तीनों ही पार्टियों ने दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से एक, इस सीट पर अपनी जीत को संभव बनाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया हुआ है. ये इलेक्शन सबसे ज्यादा दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल, दिल्ली बीजेपी के प्रमुख मनोज तिवारी और दिल्ली कांग्रेस के चीफ अजय माकन के लिए अहम है, क्योंकि इस सीट पर हो रहे उप-चुनाव को तीनों ही नेताओं ने साख का सवाल बना लिया है.

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अरविंद केजरीवाल, अजय माकन और मनोज तिवारी ने जीत के लिए झोंकी पूरी ताकत 

मैदान-ए-बवानाः AAP के लिए साख का सवाल

साल 2015 में दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीटों पर कब्जा कर धमाकेदार जीत दर्ज कराने वाली आम आदमी पार्टी और उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल के लिए बवाना सीट साख का सवाल बन गई है. दरअसल, दिल्ली में दावों के दम पर ऐतिहासिक जीत हासिल करने के बाद हुए दिल्ली एमसीडी इलेक्शन, बाई इलेक्शन और पंजाब असेंबली इलेक्शन में आम आदमी पार्टी का उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं रहा है. आंकड़ों पर गौर करें तो-

  • सितंबर 2015 में दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट इलेक्शन में AAP स्टूडेंट विंग कमाल नहीं दिखा पाई.
  • अप्रैल 2016 में हुए एमसीडी के बाई इलेक्शन में AAP वोट शेयर में दूसरे नंबर पर रही.
  • मार्च 2017 में पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव में उम्मीदें टूटीं.
  • अप्रैल 2017 में राजौरी गार्डन विधानसभा सीट के बाई इलेक्शन में AAP उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई.
  • अप्रैल 2017 में एमसीडी इलेक्शन में AAP को बीजेपी के हाथों बुरी हार मिली.
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मैदान-ए-बवानाः BJP फिर बाजी मारने को बेकरार

साल 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी आम आदमी पार्टी की आंधी में 31 सीटों से कुल तीन सीटों पर सिमट गई. खराब प्रदर्शन के बाद बीजेपी ने दिसंबर 2016 में मनोज तिवारी को दिल्ली बीजेपी की कमान सौंपी. इसके बाद अप्रैल 2017 में हुए एमसीडी इलेक्शन में बीजेपी ने बंपर जीत हासिल की. 270 सीटों में से बीजेपी ने 181 सीटें हासिल कर AAP को 48 और कांग्रेस को 30 सीटों पर समेट दिया.

अरविंद केजरीवाल, अजय माकन और मनोज तिवारी ने जीत के लिए झोंकी पूरी ताकत 

इतना ही नहीं मनोज तिवारी के नेतृत्व में दिल्ली की राजौरी गार्डन विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी बीजेपी ने कब्जा जमाया. इस चुनाव में बीजेपी के चुनाव चिह्न पर अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने कांग्रेस की मीनाक्षी चंदेला को करीब 14 हजार वोटों से हराया. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई.

ऐसे में अब दिल्ली बीजेपी चीफ मनोज तिवारी ने भी बवाना सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है. इस सीट को बीजेपी के खाते में जोड़कर वह AAP के आंकड़ों को कम कर देना चाहते हैं.

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मैदान-ए-बवानाः कांग्रेस को जीत की जरूरत

साल 2014 में आम चुनाव, फिर साल 2015 के विधानसभा चुनाव में और एमसीडी चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस पार्टी के नेताओं के साथ-साथ पार्टी कार्यकर्ताओं का भी मनोबल कमजोर हुआ है. आलम ये है कि एमसीडी इलेक्शन में मिली हार के बाद दिल्ली कांग्रेस के चीफ अजय माकन ने अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया था. हालांकि पार्टी ने उनके इस्तीफे को नामंजूर कर दिया था. इसके बाद अब कांग्रेस को पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल मजबूत करने के लिए, अजय माकन को अपनी प्रतिष्ठा के लिए और बवाना से कांग्रेस उम्मीदवार सुरेंद्र कुमार को वापसी के लिए जीत की जरूरत है.

अरविंद केजरीवाल, अजय माकन और मनोज तिवारी ने जीत के लिए झोंकी पूरी ताकत 
कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र कुमार के पक्ष में प्रचार करते हरियाणा के पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा
(फोटोः @INCDelhi)

सुरेंद्र कुमार कांग्रेस से तीन बार विधायक रह चुके हैं और वह चौथी बार वापसी के लिए दांव आजमा रहे हैं. यही वजह है कि पार्टी बवाना के जरिए वापसी के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है. हरियाणा के पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा से लेकर तमाम दिग्गज नेता यहां प्रचार में जुटे हैं. बवाना इलाके के गांवों में जाटों की ज्यादा आबादी को देखते हुए ही जाटों के नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा को स्टार प्रचारक बनाया गया है. कांग्रेस इस सीट पर दिल्ली और केंद्र सरकार की नाकामियों को गिनाकर चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है.

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दिल्ली की बवाना विधानसभा सीट पर एक नजरः

  1. बवाना विधानसभा सीट साल 1993 से अस्तित्व में आई.
  2. साल 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के चांद राम जीते थे.
  3. साल 1998 के अलावा 2003 और 2008 में लगातार कांग्रेस के सुरेंदर कुमार जीते.
  4. साल 2013 में बीजेपी की वापसी हुई और गुग्गन सिंह जीते.
  5. साल 2015 में आम आदमी पार्टी की लहर पर सवार होकर वेद प्रकाश विधानसभा पहुंचे.

आम आदमी पार्टी की टिकट पर विधानसभा पहुंचे वेद प्रकाश के पार्टी और विधानसभा दोनों से इस्तीफा देने के चलते इस सीट पर उप चुनाव हो रहा है. वेद प्रकाश विधानसभा और पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.

साल 2015 के चुनाव में वेद प्रकाश ने 1,09,256 वोट हासिल किए थे और बीजेपी के गुग्गन सिंह को करीब 50 हजार वोटों से हराया था.

इस बार वेद प्रकाश बीजेपी के टिकट पर दांव आजमा रहे हैं, जबकि आम आदमी पार्टी ने रामचंद्र को अपना उम्मीदवार बनाया है. रामचंद्र अरविंद केजरीवाल के साथ इंडिया अगेंस्ट करप्शन मूवमेंट के दिनों से जुड़े हुए हैं. हालांकि रामचंद्र साल 2008 में बीएसपी की टिकट पर इसी सीट से चुनाव लड़ चुके हैं.

बवाना सीट के लिए हो रहे उपचुनाव में 23 अगस्त को वोटिंग होनी है. इसके बाद 28 अगस्त को ये फैसला हो जाएगा कि जीत के लिए जोर आजमाइश कर रहे तीनों दलों में जीत का ताज किसके सिर सजेगा?

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