राजनीतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने अगला अध्यक्ष चुन लिया है. सूबे की राजधानी लखनऊ से लेकर दिल्ली में पार्टी हाईकमान के द्वारा कई दौर की बैठक के बाद योगी सरकार में मौजूदा पंचायती राज मंत्री भूपेंद्र सिंह चौधरी (Bhupendra Singh Chaudhary) को अगला प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया है.
प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ में केशव प्रसाद मौर्य, श्रीकांत शर्मा और विद्यासागर सोनकर का भी नाम बताया जा रहा था, लेकिन पार्टी ने भूपेंद्र सिंह चौधरी को प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपने का फैसला क्यों लिया?
1- पश्चिमी यूपी में अखिलेश-जयंत की जोड़ी का तोड़?
भूपेंद्र चौधरी की नियुक्ति को जाट समुदाय वोटर्स में पकड़ बनाने को लेकर देखा जा रहा है. तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन में सबसे आगे रहे जाट समुदाय से बीजेपी की दूरी बढ़ गयी थी, हालांकि इसका कोई बड़ा असर यूपी विधानसभा चुनाव में देखने को नहीं मिला था.
खास बात है कि हरियाणा में ओपी धनखड़ और राजस्थान में सतीश पूनिया के बाद उत्तर प्रदेश अब तीसरा ऐसा राज्य है जहां बीजेपी का नेतृत्व कोई जाट नेता करेगा.
भूपेंद्र चौधरी ने केवल एक बार चुनाव लड़ा है जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. उन्होंने 1999 में संभल से SP के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का मुकाबला किया और हार का सामना करना पड़ा.
2- क्षेत्रीय संतुलन बनाने की कोशिश
भूपेंद्र चौधरी का कद पार्टी में प्रभावशाली जाट नेताओं में है. विधानसभा चुनाव में बीजेपी नेता संगीत सोम और सुरेश राणा की हार ने पार्टी को भूपेंद्र चौधरी की ओर मोड़ दिया है. बीजेपी के पास जब टिकैत परिवार का साथ न हो तो उसे पश्चिमी यूपी में अतिरिक्त मेहनत की जरुरत थी.
चूंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूर्वी उत्तर प्रदेश से आते हैं और उन्होंने पार्टी के लिए यहां से वोट सुनिश्चित किए हैं, इसलिए बीजेपी भी चौधरी की नियुक्ति के साथ एक क्षेत्रीय संतुलन बनाना चाहती है, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं, जहां जाट समुदाय का दबदबा है.
याद रहे कि 2022 विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के गठबंधन को केवल पहले चरण में बीजेपी के ऊपर बढ़त मिली थी. बीजेपी शामली जिले की सभी तीन सीटें हार गई, जिसमें थाना भवन से एक मौजूदा मंत्री सुरेश राणा की हार भी शामिल थी, मेरठ की सात सीटों में से चार पर और मुजफ्फरनगर की छह सीटों में से चार पर बीजेपी को हार मिली थी - ये तीनों जाट बहुल जिले हैं.
3- 2019 में जो सबक मिला-उससे सीख लिया गया?
भूपेंद्र सिंह चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के पीछे एक और कारण 2024 का अहम लोकसभा चुनाव भी है. 2019 में सहारनपुर, बिजनौर, नगीना और अमरोहा की पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटें बहुजन समाज पार्टी के खाते में गई थी. इन सीटों पर जाटों का खासा दबदबा रहता है तथा नगीना को छोड़कर सहारनपुर, बिजनौर और अमरोहा में जाट निर्णायक भूमिका में भी रहते हैं.
अगर विधानसभा की तरह ही SP और राष्ट्रीय लोकदल एक साथ 2024 का आम चुनाव लड़ते हैं तो ऐसी स्थिति में जाटों को अपनी ओर करने में भूपेंद्र सिंह चौधरी बीजेपी की तरफ से यह भूमिका निभा सकते हैं.
4- अमित शाह के खास, संगठन में काम का लंबा अनुभव
गृह मंत्री अमित शाह के करीबी माने जाने वाले भूपेंद्र चौधरी के पास अच्छा संगठनात्मक अनुभव है क्योंकि वे 2011-18 के बीच पश्चिमी यूपी के प्रभारी रहे हैं. भूपेंद्र चौधरी का चयन पार्टी और सरकार दोनों को स्वीकार्य माना जा रहा है. इससे पहले जिन अन्य नामों पर चर्चा की जा रही थी, उनके विपरीत भूपेंद्र चौधरी अनावश्यक सुर्खियों में नहीं दिखे हैं.
5- स्वच्छ भारत मिशन में रिकॉर्ड शौचालय बनवाया
भूपेंद्र चौधरी ने पीएम मोदी की महत्वकांक्षी योजना- स्वच्छ भारत मिशन में रिकॉर्ड शौचालय बनवाया है. इन्होंने अपने कार्यकाल में यूपी के ग्रामीण इलाकों में 1.75 करोड़ शौचालय बनवाये तथा सभी 75 जिलों को खुले में शौच मुक्त घोषित करवाया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)