बिहार (Bihar) की चार विधानसभा सीटों- तरारी, रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज पर उपचुनाव का बिगुल बज चुका है. अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इसे 'सत्ता का सेमीफाइनल' कहा जा रहा है. उपचुनाव के लिए 13 नवंबर को वोट डाले जाएंगे और 23 नवंबर को नतीजे आएंगे.
NDA और INDIA गठबंधन के बीच आमने-सामने की टक्कर में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की एंट्री से मुकाबला दिलचस्प हो गया है. माना जा रहा है कि उपचुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है.
राजनीतिक जानकार उपचुनाव को प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी के लिए लिटमस टेस्ट बता रहे हैं. जानकारों का कहना है कि बिहार में प्रशांत किशोर का राजनीतिक भविष्य कैसा होगा, ये उपचुनाव से तय होगा.
दूसरी तरफ विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि NDA और INDIA गठबंधन को लेकर जनता के मन में क्या है, इस चुनाव से इसका भी पता चल जाएगा.
NDA-INDIA गठबंधन पर परिवारवाद का आरोप
उपचुनाव के लिए NDA और INDIA गठबंधन ने अपने-अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. NDA से बीजेपी दो, JDU और HAM एक-एक सीट पर चुनाव लड़ रही है. INDIA गठबंधन से RJD ने तीन सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं. वहीं एक सीट से CPI(ML) ताल ठोक रही है.
प्रत्याशियों के ऐलान के बाद से NDA और INDIA गठबंधन पर परिवारवाद के भी आरोप लग रहे हैं.
बीजेपी ने तरारी सीट से बाहुबली नरेंद्र कुमार पांडे उर्फ सुनील पांडे के बेटे विशाल प्रशांत पर दांव लगाया है. इमामगंज सीट पर हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) की ओर से जीतनराम मांझी की बहू दीपा मांझी को टिकट दिया गया है.
रामगढ़ से आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे और सुधाकर सिंह के भाई अजीत सिंह को उम्मीदवार बनाया है. बेलागंज में विश्वनाथ कुमार सिंह चुनाव लड़ेंगे. वो सुरेंद्र यादव के बेटे हैं.
प्रशांत किशोर ने भी उतारे उम्मीदवार
प्रशांत किशोर की पार्टी ने चारों सीटों पर अपने प्रत्याशियों का ऐलान किया है. तरारी से पूर्व उप सेना प्रमुख श्री कृष्ण सिंह को टिकट दिया है. जबकि बेलागंज से रिटायर्ड प्रोफेशर खिलाफत हुसैन और इमामगंज से डॉक्टर जितेंद्र पासवान पर दांव लगाया है. रामगढ़ से सुशील सिंह कुशवाहा मैदान में हैं.
वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं, "जन सुराज की नई एंट्री हुई है. पार्टी ने समाज के प्रमुख लोगों को मैदान में उतारा है. यह एक नया प्रयोग है. लेकिन यह कितना सफल होता है, ये वक्त ही बताएगा."
तरारी से पूर्व उप सेना प्रमुख श्री कृष्ण सिंह की उम्मीदवारी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. दरअसल, एसके सिंह का बिहार के वोटर लिस्ट में नाम नहीं है, ऐसे में उनकी उम्मीदवारी में दिक्कत आ गई है. सवाल उठ रहे हैं कि आखिर चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी से ऐसी चूक कैसे हो गई?
इस मामले पर प्रशांत किशोर ने कहा, "हमने पटना में याचिका दायर की है. वाईवी गिरि इस मामले को देख रहे हैं. इसका समाधान नहीं होगा तो हम लोग कोर्ट में लड़ेंगे. चुनाव के बाद हम लोग इसको राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती देंगे. ये क्या नियम है?"
किस सीट पर किसका पलड़ा भारी?
तरारी विधानसभा सीट: भोजपुर जिले की तरारी विधानसभा सीट से CPI(ML) के सुदामा प्रसाद विधायक थे. लोकसभा चुनाव में वो आरा सीट से बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री आरके सिंह को हराकर संसद पहुंचे हैं.
उपचुनाव में CPI(ML) के राजू यादव और बीजेपी के विशाल प्रशांत के बीच मुकाबला है. जन सुराज ने पूर्व उप सेना प्रमुख एसके सिंह को टिकट दिया है, लेकिन उनकी उम्मीदवारी पर फिलहाल तलवार लटक रही है.
पिछले दो विधानसभा चुनावों में CPI(ML) ने यहां जीत दर्ज की है. लेकिन सुनील पांडे के बीजेपी में आने से मुकाबला टक्कर का माना जा रहा है. इस साल अगस्त में वो अपने बेटे विशाल के साथ पार्टी में शामिल हुए थे.
सुनील पांडे ने पहली बार 2000 में भोजपुर जिले की पीरो विधानसभा सीट से जनता दल के टिकट पर जीत हासिल की थी. 2005 में जेडीयू के उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने सीट बरकरार रखी थी. 2010 के विधानसभा चुनाव में तरारी (2008 के परिसीमन के बाद पीरो का नाम बदलकर तरारी हो गया) का भी प्रतिनिधित्व किया था. 2015 में यहां से एलजेपी के टिकट पर उनकी पत्नी गीता पांडे ने चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं. 2020 में सुनील पांडे निर्दलीय खड़े हुए और दूसरे स्थान पर रहे.
दूसरी तरफ CPI(ML) उम्मीदवार राजू यादव दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. 2019 लोकसभा चुनाव में वो आरा लोकसभा सीट से महागठबंधन समर्थित CPI(ML) उम्मीदवार थे. तकरीबन 4 लाख 20 हजार वोट लाकर उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दी थी. 2024 में आरा संसदीय सीट CPI(ML) ने जीत ली.
तरारी विधानसभा सीट पर यादव, भूमिहार और मुस्लिम वोटर्स निर्णायक भूमिका में हैं. ऐसे में CPI(ML) ने यादव और बीजेपी ने भूमिहार उम्मीदवार पर दांव लगाया है. जबकि एसके सिंह राजपूत समाज से आते हैं.
सूत्रों के मुताबिक, अगर एसके सिंह चुनाव नहीं लड़ पाते हैं, तो ऐसे में जन सुराज पार्टी किसी भूमिहार प्रत्याशी पर दांव लगा सकती है.
रवि उपाध्याय कहते हैं, "उपचुनाव को लेकर जन सुराज का बड़ा गेम प्लान है. पार्टी की नजर NDA और INDIA गठबंधन के वोट बैंक में डेंट लगाने पर है. इसके लिए जाति फैक्टर पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है."
रामगढ़ विधानसभा सीट: कैमूर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट से आरजेडी नेता सुधाकर सिंह विधायक थे. उन्होंने बक्सर लोकसभा सीट से जीत दर्ज की है. अब यहां से उपचुनाव में उनके भाई अजीत सिंह उम्मीदवार बनाए गए हैं.
इस सीट पर आरजेडी का दबदबा रहा है. प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह यहां से 6 बार विधायक रह चुके हैं. 2009 उपचुनाव और 2010 विधानसभा चुनाव में आरजेडी के टिकट पर अंबिका यादव विधायक बने थे. 2015 में बीजेपी को पहली बार यहां जीत मिली थी. हालांकि, 2020 में आरजेडी ने फिर से इस सीट पर कब्जा जमा लिया. सुधाकर सिंह MLA चुने गए.
बीजेपी ने एक बार फिर अशोक कुमार सिंह पर भरोसा जताया है. 2020 में अशोक सिंह तीसरे नंबर पर रहे थे. जबकि बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले अंबिका यादव दूसरे नंबर पर थे और मात्र 189 वोटों से चुनाव हारे थे.
जन सुराज पार्टी ने सुशील सिंह कुशवाहा को अपना उम्मीदवार बनाया है. इलाके में लोगों के बीच उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है. साल 2019 में उन्होंने बीएसपी के टिकट पर बक्सर से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था. उस चुनाव में उनको 80 हजार वोट मिले थे. वह बीएसपा के प्रदेश महासचिव रह चुके हैं.
बेलागंज विधानसभा सीट: गया जिले की बेलागंज विधानसभा सीट, आरजेडी नेता सुरेंद्र यादव के जहानाबाद से सांसद बनने के बाद खाली हुई है. उपचुनाव में सुरेंद्र यादव के बेटे विश्वनाथ सिंह के सामने जेडीयू की मनोरमा देवी हैं.
बेलागंज सीट पर मजबूत MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण है. जो पिछले 30 सालों से देखने को मिल रहा है. सुरेंद्र यादव यहां से 8 बार विधायक चुने गए हैं. 1990 में वो पहली बार जनता दल के टिकट पर MLA बने थे. साल 2000 से वो आरजेडी के टिकट पर जीतते रहे हैं.
जेडीयू प्रत्याशी मनोरम देवी दो बार एमएलसी रही हैं. 2003 में उन्होंने ये चुनाव निर्दलीय जीता था, वहीं 2015 में वह जेडीयू के टिकट पर एमएलसी बनी थीं. 2020 में उन्होंने गया जिले के अतरी विधानसभा सीट से जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन करीब 8,000 वोटों से चुनाव हार गयी थीं. उनके पति स्वर्गीय बिंदेश्वरी प्रसाद यादव उर्फ बिन्दी यादव, गया जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष थे. उन्होंने भी दो बार विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाया, लेकिन सफलता नहीं मिली.
मुस्लिम वोटर्स को साधने के लिए जन सुराज पार्टी ने रिटायर्ड प्रोफेसर खिलाफत हुसैन को टिकट दिया है. वो मिर्जा गालिब कॉलेज में गणित विभाग के प्रमुख रह चुके हैं. टिकट बंटवारे के समय उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा था.
दरअसल, बेलागंज से टिकट के लिए चार नामों- मो. अमजद हसन, प्रो. खिलाफत हुसैन, मो. दानिश मुखिया और प्रो. सरफराज खान की चर्चा थी. गया में आयोजित पार्टी की बैठक में प्रो. खिलाफत हुसैन के नाम पर मुहर लगी. इससे अमजद हसन के समर्थकों ने नाराज होकर हंगामा किया था.
इमामगंज विधानसभा सीट: गया जिले की इमामगंज आरक्षित सीट है. हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के सांसद बनने के बाद यह सीट खाली हुई है. वो लगातार दो बार (2015 और 2020) यहां से विधायक चुने गए थे.
HAM की ओर से जीतन राम मांझी की बहू दीपा मांझी टिकट मिला है. आरजेडी ने रोशन साहू और जन सुराज पार्टी ने डॉक्टर जितेंद्र पासवान पर दांव लगाया है.
24 सालों से इस सीट पर NDA का दबदबा रहा है. अगर यहां के जातिगत समीकरण की बात करें तो मांझी और भुईंया समाज के बाद दांगी का वोट सबसे अधिक है. दांगी और कुशवाहा समाज का झुकाव जिस प्रत्याशी की ओर होता है, उनकी जीत तय मानी जाती है.
"जनता और जन सुराज दोनों का टेस्ट"
जिन चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें से तीन पर INDIA गठबंधन और दो पर एक पर NDA का कब्जा था. जानकारों का मानना है कि जन सुराज के आने गठबंधन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
"उपचुनाव में दो चीजों का ट्रायल होना है. पहला तो जिस लाइन पर जन सुराज राजनीति कर रही है, उसकी तस्वीर साफ हो जाएगी. दूसरे कि जनता क्या सोचती है. बिहार जिस चंगुल में फंसा है, क्या जनता उससे निकलना चाहती है? अगर हां, तो वो नए चेहरों को वोट करेगी, नई राजनीति को सपोर्ट करेगी. अगर नहीं तो उन पुराने चेहरे और पार्टियों के साथ जाएगी."प्रवीण बागी, वरिष्ठ पत्रकार
रवि उपाध्याय कहते हैं, "NDA और INDIA गठबंधन के खिलाफ प्रशांत किशोर एक ही नारा दे रहे हैं- आप अपने बच्चों के भविष्य के लिए वोट कीजिए. इसलिए उन्होंने किसी से गठबंधन नहीं किया है. हर सीट पर उनका अलग-अलग समीकरण है. जिससे NDA और INDIA, दोनों को डेंट लग सकता है."
उपचुनाव: सत्ता का सेमीफाइनल
बिहार में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में उपचुनाव को अहम माना जा रहा है. फिलहाल प्रदेश में NDA की सरकार है.
बता दें कि 2019 विधानसभा चुनाव में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. बीजेपी को 74 सीटें मिली थी. जबकि जेडीयू 43 सीटों पर सिमट गई थी. तब नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA की सरकार बनी थी.
2022 में नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़कर आरजेडी से हाथ मिला लिया और 17 महीनों के लिए महागठबंधन की सरकार बनी. लेकिन इस साल लोकसभा चुनाव से पहले जनवरी महीने में नीतीश कुमार ने एक बार फिर यू-टर्न मारा और बीजेपी के साथ हो गए.
लोकसभा चुनाव में NDA को झटका लगा. 2019 में 40 में से 39 सीटें जीतने वाली NDA को इस बार 30 सीटें ही मिलीं. चार सीटों पर जीत के साथ आरजेडी ने कमबैक किया. 2019 के चुनावों में आरजेडी का खाता भी नहीं खुला था. जबकि पिछली बार 1 सीट जीतने वाली कांग्रेस ने इस बार तीन सीटों पर कब्जा जमाया है. वहीं CPI(ML) को दो सीटें मिली हैं.
प्रशांत किशोर प्रदेश की सभी सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं, "इस उपचुनाव में अगर प्रशांत किशोर की पार्टी चार में से दो सीट पर भी दूसरे पायदान पर रहती है तो विधानसभा चुनाव से पहले ये दूसरे दलों के लिए एक वार्निंग होगी."
प्रवीण बागी कहते हैं, "उपचुनाव से जनता के मूड का पता चलेगा. अलग-अलग क्षेत्रों में उपचुनाव हो रहे हैं. जीत-हार से सरकार की स्थिरता पर कोई असर नहीं पड़ेगा. लेकिन जनता के मन में क्या चल रहा है, इसका एक संकेत जरूर मिलेगा. क्या वो सरकार के काम से खुश है या फिर वो बदलाव चाहती है."
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