"बिहार का चुनाव 2025 में जीतना चाहते हैं या 2024 में ही जीतना चाहते हैं? लोग हमको बहुत बड़ा रणनीतिकार कहते हैं. हम आपको राणनीति बताते हैं. नवंबर में चार सीटों पर उपचुनाव है. आप बताइए चुनौती ले लें. हरा दें चारों को. 2025 तक नहीं रुकना है. नवंबर 2024 में ही हिसाब बराबर कर दिया जाए. आपके भरोसे ठान रहे हैं. भागना नहीं है."
चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने बिहार (Bihar) में अपनी राजनीतिक पारी का शंखनाद कर दिया है. प्रदेश में दो साल तक पदयात्रा करने और जनता का मन टटोलने के बाद उन्होंने गांधी जयंती के मौके पर पटना में जन सुराज पार्टी ( Jan Suraaj Party) लॉन्च की. इसके साथ ही उन्होंने उपचुनाव के लिए बिगुल भी फूंक दिया है.
पीके ने 2 अक्टूबर को कहा कि 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उनकी जन सुराज पार्टी चुनावी मैदान में उतरेगी. पार्टी तरारी, रामगढ़, बेलागंज और इमामगंज सीट पर उपचुनाव में अपने प्रत्याशी उतारेगी. नवंबर महीने में इन चारों सीटों पर उपचुनाव की संभावना है.
दो साल की पदयात्रा और फिर पार्टी लॉन्च
बिहार की दुर्दशा के मूल कारण को समझने, जनता से मिलकर जमीनी हकीकत जानने, और बिहार के विकास का ब्लूप्रिंट तैयार करने के उद्देश्य से प्रशांत किशोर ने साल 2022 में अपनी पदयात्रा की शुरुआत की थी.
जन सुराज की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, 665 दिनों में जन सुराज यात्रा 2697 गांव, 235 ब्लॉक और 1319 पंचायतों से गुजरी है.
पीके के पार्टी बनाने और राजनीति में आने पर वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं, "इन्होंने (प्रशांत किशोर) जो शुरुआत की है, वो बिल्कुल अनोखी है. आज तक किसी राजनीतिक दल ने इस तरह से अपना गठन नहीं किया, जिस तरह से प्रशांत किशोर ने किया है. उन्होंने दो साल तक पदयात्रा की, गांव-गांव गए, लोगों की भावनाएं समझीं और फिर जाकर पार्टी का गठन किया."
वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे कहते हैं, "बिहार के चुनावी मैदान में एक नए प्लेयर के तौर पर बड़ी धूम-धाम के साथ प्रशांत किशोर की एंट्री हुई है. वो बदलाव का एक प्रतीक बनना चाहते हैं. अभी दावा है कि लालू और नीतीश की राजनीति से जो लोग ऊब गए हैं और बदलाव चाहते हैं, उनका वो विकल्प हैं. वो कहते हैं कि NDA से मेरी ही सीधी लड़ाई होगी. लेकिन ये देखना दिलचस्प होगा कि पीके के दावों में कितना दम है."
"मानवता हमारी विचारधारा"
स्थापना अधिवेशन को संबोधित करते हुए पीके ने "ह्यूमन फर्स्ट" का नारा देते हुए कहा, "हमारी पार्टी की विचारधारा मानवता है. मानवता से बढ़कर आगे कोई बात नहीं है. लोगों के बीच जाति, धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए."
इसके साथ ही उन्होंने कहा,
"हम लोग यहां मुख्यमंत्री और विधायक बनने के लिए नहीं जुटे हैं. हम लोग इस उद्देश्य के साथ यहां जुटे हैं कि अपने जीवनकाल में एक ऐसा बिहार देखें, जहां हरियाणा, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र से लोग रोजी-रोजगार करने आएं. तब मानेंगे कि बिहार में विकास हुआ है."
बिहार की जनता से 5 बड़े वादे
प्रशांत किशोर ने पटना के वेटनरी कॉलेज ग्राउंड से बिहार के विकास का फॉर्मूला बताते हुए जनता से 5 बड़े वादे किए हैं:
सत्ता में आते ही एक घंटे के अंदर शराबबंदी खत्म करना और उससे मिलने वाले राजस्व से प्रदेश में नई शिक्षा व्यवस्था तैयार करना.
बिहार के युवाओं के लिए 10-15 हजार के रोजी-रोजगार की व्यवस्था करना. इसके लिए बैंकों से पूंजी मुहैया करवाना.
60 साल से ऊपर के हर महिला-पुरुष को 2000 रुपया प्रति माह पेंशन के रूप में देने का वादा.
बिहार में किसानों की स्थिति में सुधार लाने के लिए भूमि सुधार लागू करना. साथ ही किसानों को पेट भरने वाली खेती से कमाऊ खेती की तरफ ले जाना.
महिलाओं को व्यवसाय करने के लिए सरकारी गारंटी पर 4 प्रतिशत ब्याज पर लोन दिया जाएगा.
पीके ने कहा कि गरीबी से निकलने का तीन ही रास्ता है- पढ़ाई, जमीन और पूंजी.
वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं, "पीके उन मुद्दों को उठा रहे हैं, जिसे किसी राजनीतिक दल ने नहीं उठाया है. इसके साथ ही वो कैसे बेरोजगारी दूर करेंगे और व्यवस्था बदलेंगे, उसका ब्लूप्रिंट भी पेश कर रहे हैं."
4 सीटों पर उपचुनाव क्यों?
चारों विधानसभा सीट विधायकों के सांसद बनने से खाली हुई है. भोजपुर जिले की तरारी विधानसभा सीट से CPI(ML)L विधायक सुदामा प्रसाद संसद पहुंच गए है. इस साल हुए लोकसभा चुनाव में उन्होंने आरा लोकसभा सीट से बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री आरके सिंह को हराया है.
वहीं, रामगढ़ विधानसभा सीट से आरजेडी विधायक और पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह के सांसद बनने से रिक्त हुई है. उन्होंने बक्सर लोकसभा सीट से जीत दर्ज की थी.
गया जिले की बेलागंज विधानसभा से आरजेडी नेता सुरेंद्र यादव विधायक थे. लेकिन अब वो जहानाबाद से सांसद है. इसके अलावा, इमामगंज सीट से पूर्व उपमुख्यंत्री जीतन राम मांझी ने 2020 में विधानसभा चुनाव जीता थी, जो अब एनडीए सरकार में केंद्रीय मंत्री हैं.
"उपचुनाव ही इंडिकेटर"
प्रशांत किशोर की नई पार्टी और उनके वादों का लिटमस टेस्ट सबसे पहले उपचुनाव में होगा. जानकारों का कहना है कि उपचुनाव के नतीजों से उनका राजनीतिक भविष्य भी तय होगा.
जिन चार सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से दो आरजेडी का गढ़ माना जाता है, जबकि 1 सीट पर पिछले 10 सालों से CPI(ML)L और एक पर HAM का कब्जा रहा है.
प्रवीण बागी कहते हैं, "उपचुनाव ही इंडिकेटर होगा कि बिहार के लोगों ने प्रशांत किशोर को कितना अपनाया है. इसी पर उनकी आगे की राजनीति निर्भर करेगी. उपचुनाव में अगर वो कोई मजबूत हस्तक्षेप कर पाते हैं तो विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीद जगेगी. अगर वो इसमें फेल हो जाते हैं तो उनका आंदोलन बहुत पीछे चला जाएगा."
दो सीटों पर आरजेडी से मिलेगी चुनौती
कैमूर जिले की रामगढ़ विधानसभा सीट पर आरजेडी का दबदबा है. बिहार आरजेडी अध्यक्ष जगदानंद सिंह यहां से 6 बार विधायक रह चुके हैं. 2020 में उनके बेटे सुधाकर सिंह आरजेडी के टिकट पर यहां से MLA चुने गए थे. आरजेडी के ही अंबिका यादव यहां से दो बार विधायक रहे हैं. 2015 में बीजेपी को पहली बार यहां जीत मिली थी.
रामगढ़ सीट पर यादव, मुस्लिम और राजपूत मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं. ऐसे में प्रशांत किशोर को आरजेडी के MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण की तोड़ निकालनी होगी. अगर वो मुस्लिम और रविदास वोटों को अपने पाले में लाने में सफल रहते हैं तो उपचुनाव के नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं.
गया जिले की बेलगंज विधानसभा सीट भी आरजेडी का गढ़ है. सुरेंद्र यादव यहां से 8 बार विधायक चुने गए हैं. 1990 में वो पहली बार जनता दल के टिकट पर MLA बने थे. साल 2000 से वो आरजेडी के टिकट पर जीतते आ रहे हैं.
बेलागंज सीट पर भी मजबूत MY समीकरण है. जो पिछले 30 सालों से देखने को मिल रहा है. उपचुनाव के लिए सुरेंद्र यादव के बेटे विश्वनाथ आरजेडी की ओर से अपनी दावेदार पेश कर रहे हैं.
अरुण पांडे कहते हैं, "प्रशांत किशोर का इस चुनाव में सबसे पहला लिटमस टेस्ट होगा. वो कहते हैं कि जगदानंद सिंह को उनके घर में हराएंगे. मांझी को उनके घर में हराएंगे. जनसुराज पार्टी में कितना दम है ये इसी चुनाव में साफ हो जाएगा. चुनाव के दो पहलू हैं- रनर या विनर. अगर रनर भी बनते हैं, तो माना जाएगा कि लालू-नीतीश के रहते हुए उन्होंने टक्कर पेश की है."
इमामगंज और तरारी का सियासी समीकरण
गया जिले की इमामगंज आरक्षित सीट है. हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के संरक्षण और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी यहां से दो बार विधायक रहे हैं. उनसे पहले उदय नारायण चौधरी इस सीट से पांच बार अलग-अलग पार्टियों के टिकट पर MLA चुने गए हैं.
2020 विधानसभा चुनाव जीतन राम मांझी की टक्कर उदय नारायण चौधरी से हुई थी. वो आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. जीतन राम मांझी को 78,762 वोट मिले थे, जबकि चौधरी को 62,728 वोट मिले. एलजेपी की कुमारी शोभा को 14,197 वोट मिले थे.
इस सीट पर कोइरी जाति की आबादी सबसे ज्यादा, जो निर्णायक साबित होते हैं. दूसरे स्थान पर दलित में मुसहर हैं. और तीसरे नंबर पर मुसलमान हैं.
तरारी विधानसभा सीट की पहचान CPI(ML)L सांसद सुदामा प्रसाद से हैं. प्रसाद हलवाई समुदाय की कानू जाति से हैं, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में आती है. इस साल हुए लोकसभा चुनाव में आरा सीट से बीजेपी नेता आरके सिंह को हरा कर उन्होंने सभी को चौंका दिया. प्रसाद ने करीब 60 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी.
तरारी विधानसभा सीट पर यादव, भूमिहार और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. उपचुनाव में CPI(ML)L की ओर से राजू यादव को टिकट देने की चर्चा है. वहीं कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी बाहुबली सुनील पांडेय के बेटे विशाल प्रशांत पर दांव लगा सकती है. ऐसे में जनसुराज पार्टी किसे टिकट देती है, दे देखना अहम होगा.
हालांकि, प्रशांत किशोर ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी में जनता ही अपने उम्मीदवारों का चयन करेगी.
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