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जाति जनगणना: बिहार सरकार ने कोटा बढ़ाकर 65% किया, INDIA vs NDA की राजनीति पर क्या असर?

बिहार में जाति जनगणना की सबसे बड़ी तरफदार रही नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार के लिए ये एक बड़ी जीत है.

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बिहार विधानसभा (Bihar Assembly) में 9 नवंबर को अनुसूचित जाति, अत्यंत पिछड़ी जाति, पिछड़ी जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण बढ़ाने वाला एक विधेयक सर्वसम्मति से पास हो गया. ये विधेयक हाल ही में जाति जनगणना (Caste Census) के निष्कर्षों के आधार पर लाया गया था.

जाति जनगणना की सबसे बड़ी तरफदार रही नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार के लिए ये एक बड़ी जीत है.

इसके साथ, सरकारी नौकरियों और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में कुल आरक्षण बढ़कर 75 प्रतिशत हो जाएगा. इसमें केंद्र सरकार के कानून के अनुसार, अनारक्षित समुदायों (जनरल) के बीच आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण शामिल है.

इस स्टोरी में हम चार सवालों के जवाब खोजने की कोशिश करेंगे.

  • विभिन्न वर्गों के लिए आरक्षण में कितनी बढ़ोतरी हुई है?

  • इसका राजनीतिक असर क्या हो सकता है?

  • बिहार के बाहर इसका क्या मतलब है?

  • इसका महत्व चुनाव से परे क्यों है?

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विभिन्न वर्गों के लिए आरक्षण में कितनी बढ़ोतरी हुई है?

  • अत्यंत पिछड़ी जातियों के लिए कोटा 18 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया है.

  • पिछड़ी जातियों में कोटा 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया है.

  • अनुसूचित जाति के लिए इसे 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया है.

  • अनुसूचित जनजातियों के लिए एक प्रतिशत से बढ़ाकर दो प्रतिशत किया गया है.

पुराने और नए आरक्षण फॉर्मूले को समझने के लिए नीचे दी गई तालिका देखें. इसमें जाति जनगणना के अनुसार, हर वर्ग की जनसंख्या में हिस्सेदारी भी बतायी गयी है.

बिहार में जाति जनगणना की सबसे बड़ी तरफदार रही नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार के लिए ये एक बड़ी जीत है.

इसका राजनीतिक असर क्या हो सकता है?

जाति जनगणना विपक्षी गठबंधन, INDIA के लिए प्रमुख मुद्दों में से एक है. इसमें बिहार का महागठबंधन (RJD, JD-U, कांग्रेस, CPI-ML, CPI और CPI-M शामिल है) एक प्रमुख हिस्सा है.

बीजेपी अब तक अपनी प्रतिक्रिया को लेकर असमंजस में दिखी है.

जब जाति जनगणना के आंकड़े पहली बार जारी किए गए तो बीजेपी की पहली प्रतिक्रिया INDIA अलायंस पर "हिंदुओं को बांटने की कोशिश" करने का आरोप लगाना था. तब से, पार्टी ने अपनी स्थिति नरम कर ली है, इस डर से कि इससे पिछड़ी जातियां अलग हो सकती हैं.

हाल ही में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक विवादास्पद टिप्पणी की थी कि जाति जनगणना में "यादवों और मुसलमानों की संख्या बढ़ा दी है." बिहार सरकार ने इसे "अप्रमाणित" बताकर खारिज कर दिया. ऐसा लगता है कि बीजेपी का उद्देश्य महागठबंधन को RJD के विस्तार के रूप में पेश करना और EBC के बीच जेडी-यू के आधार को कम करना है.

हालांकि, जब आरक्षण बढ़ाने वाला विधेयक बिहार विधानसभा में आया, तो बीजेपी ने इसका समर्थन किया. कम से कम बिहार में, जाति जनगणना और अब आरक्षण में वृद्धि ने महागठबंधन को मजबूती से खड़ा कर दिया है.

कोटा में वृद्धि से गठबंधन को पिछड़ा और अति पिछड़ा, दोनों के बीच अपना आधार मजबूत करने में मदद मिलेगी, इसके अलावा शायद दलितों के बीच कुछ समर्थन भी बढ़ेगा.

बिहार में इसे बेअसर करने के लिए बीजेपी को राष्ट्रवादी या हिंदुत्व के मुद्दे पर एक बड़ी लामबंदी की जरूरत होगी. पुलवामा हमलों और बालाकोट हमलों के बाद मोदी समर्थक लहर के बाद भी, बिहार में NDA की एकतरफा जीत संभव न होती, अगर जेडी-यू उनके साथ न खड़ी होती.

एकजुट महागठबंधन बीजेपी के लिए बड़ा खतरा है, लेकिन जाति जनगणना और 'संख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व' जैसे मुद्दों के चलते महागठबंधन का मुकाबला करना और भी बहुत मुश्किल होने वाला है.

हालांकि, INDIA अलायंस के लिए समस्या ये है कि बिहार के बाहर इसका क्या असर होगा?

बिहार के बाहर क्या असर होगा है?

अब तक जिन राज्यों ने जाति जनगणना की घोषणा की है उनमें कर्नाटक, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और ओडिशा शामिल हैं. महाराष्ट्र और असम ने कहा है कि वे आगे बढ़ने से पहले बिहार के तरीके की स्टडी कर रहे हैं.

कर्नाटक संभावित रूप से INDIA ब्लॉक के लिए अनुकूल परिस्थितियों वाला एक और राज्य हो सकता है, क्योंकि सीएम सिद्धारमैया का सामाजिक गठबंधन, नीतीश कुमार की तरह, गैर-प्रमुख पिछड़ी जातियों के आसपास केंद्रित है. हालांकि, BJP-JD (S) गठबंधन से कांग्रेस के खिलाफ प्रमुख किसान जातियां- लिंगायत और वोक्कालिगा एकजुट हो सकते हैं.

राजस्थान में चुनाव पहले से ही चल रहे हैं और जाति जनगणना कोई बड़ा मुद्दा बनता नहीं दिख रहा है.

आंध्र प्रदेश और ओडिशा में, जाति जनगणना की पहल उन क्षेत्रीय दलों की तरफ से की गई है जो NDA या INDIA ब्लॉक के साथ गठबंधन नहीं करते हैं- क्रमशः YSRCP और BJD. दोनों राज्यों में, पूरी कवायद इन दोनों पार्टियों के अपने सामाजिक गठबंधन को मजबूत करने के प्रयासों का हिस्सा है.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने कहा है कि अगर वो मौजूदा चुनावों में सत्ता में आती है तो वह जाति जनगणना कराएगी. हालांकि, बिहार या उत्तर प्रदेश के विपरीत, राज्य में मजबूत सामाजिक न्याय-आधारित राजनीति का इतिहास नहीं है. इसलिए इस मुद्दे की राजनीतिक ताकत उतनी नहीं हो सकती जितनी बिहार में है. यही बात राजस्थान और छत्तीसगढ़ के लिए भी सच है, लेकिन मध्य प्रदेश के उलट, इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के पास प्रमुख ओबीसी चेहरे हैं.

इस संदर्भ में दो सबसे महत्वपूर्ण राज्य महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश हैं. महाराष्ट्र इस समय एक बड़े मंथन के दौर से गुजर रहा है, जहां मराठा ओबीसी दर्जे की मांग कर रहे हैं और ओबीसी इस दिशा में किसी भी कोशिश का विरोध कर रहे हैं. एक जाति जनगणना, जो राज्य की आबादी में अलग-अलग समुदायों की हिस्सेदारी के साथ-साथ उनके सामाजिक-आर्थिक संकेतकों का डेटा देती है, इस गतिरोध से बाहर निकलने का रास्ता हो सकती है.

ये देखना बाकी है कि INDIA गुट इस मौके का लाभ उठाता है या NDA.

उत्तर प्रदेश INDIA ब्लॉक की जाति जनगणना प्लानिंग के लिए परीक्षण का मामला होगा. फिलहाल, पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ के 'डबल इंजन' और बीजेपी के पीछे गैर-यादव ओबीसी, गैर-जाटव दलितों के एकजुट होने के अलावा और भरोसेमंद उच्च जाति आधार के चलते बीजेपी राज्य में अच्छी स्थिती में हैं.

राज्य में INDIA गुट अव्यवस्थित है, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की तरफ से अभी तक किसी भी तरह के सहयोग का कोई संकेत नहीं मिल रहा है.

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इसका महत्व चुनावों से भी परे है

बिहार में जाति जनगणना और आरक्षण में वृद्धि, वास्तव में एक ऐसा कदम है जिसका महत्व 2024 के चुनावों से कहीं ज्यादा है.

ये राजनीति के लिए एक नई शब्दावली है, जिसमें समुदायों को सामाजिक और आर्थिक हाशिये पर पड़े व्यवस्थित, डेटा-संचालित दस्तावेजीकरण के आधार पर प्रतिनिधित्व दिया जाता है.

ये प्रक्रिया इस तर्क को भी मजबूत करती है कि जाति-आधारित आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा वास्तव में कोटा के उद्देश्य के विपरीत हासिल करने का एक तरीका था: इसने प्रमुख जातियों के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित कर दीं, जो 20 प्रतिशत भी नहीं थीं.

जाति जनगणना संभावित रूप से हिंदू-मुस्लिम की राजनीति का मुकाबला कर सकती है जो बीजेपी की राजनीति की आधारशिला रही है. ये समाज को देखने का एक अलग तरीका है- हिंदू और मुसलमानों के समुदाय आरक्षित और अनारक्षित दोनों श्रेणियों में आते हैं.

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