भारतीय जनता पार्टी (BJP) 6 अप्रैल को अपना 43वां स्थापना दिवस मना रही है. कभी दो लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी के आज 303 सांसद हैं. बीजेपी ने यहां तक का सफर कई सफलता और विफलता को पार करते हुए तय किया है.
कैसे सफलता के शिखर पर पहुंची बीजेपी
बीजेपी साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 303 सीट हासिल करने वाली सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. वर्तमान में बीजेपी सरकार भारत के कुल 16 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों पर विराजमान है. वहीं राज्यसभा में इसके नाम 93 सीटें और लोकसभा में 302 सीट है. वर्तमान में, केंद्र और राज्य सरकारों में पार्टी द्वारा बनाए गए गढ़ को काफी हद तक प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता से जोड़ा जाता है जिसे 'मोदी लहर' भी कहा जाता है.
मोदी लहर ने बीजेपी की तकदीर का तख्ता पलट कैसे किया?
जब 2014 में आम चुनाव हुए, तो बीजेपी ने अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी को चुना. उनकी छवि और गुजरात में उनके मुख्यमंत्री के रूप में हासिल की गई सफलताओं को बरकरार रखते हुए बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की. अटल बिहारी वाजपेयी के बाद बीजेपी को एक ऐसे चेहरे की तलाश थी, जिसमे भारत अपने प्रधानमंत्री को देख सके.
देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के नेतृत्व वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जनता ने नकार दिया. राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस के पास दूसरा कोई प्रधानमंत्री चेहरा मौजूद नहीं था,पर उस वक्त राहुल भारतीय राजनीति में मंझे राजनेता के रूप में नहीं उभर पाए थे. ऐसे में एक के बाद लगातार जीत हासिल करने वाले गुजरात सत्ता के सबसे बड़े योद्धा नरेंद्र मोदी लगातार सुर्खियों में बने हुए थे.
जहां विपक्ष के पास कोई मजबूत चेहरा नहीं था वहीं मोदी का गुजरात में ताबड़तोड़ जीत हासिल करना बीजेपी को संदेश दे रहा था की मोदी जिस भी सीट पर खड़े हो जाएंगे जीत अपने साथ लायेंगे. इसके साथ ही "मोदी घर में घुस कर मारेंगे","मोदी बनाम ऑल","हर हर मोदी घर घर मोदी","राष्ट्रीय सुरक्षा","राम मंदिर" और "हिन्दू राष्ट्र" जैसे भावनात्मक चीजों ने जनता के दिलों दिमाग में मोदी ही मोदी भर दिया.
बीजेपी किन मुद्दों पर राजनीति में कायम है
बीजेपी एक कट्टर हिंदुत्ववादी राजनीतिक विचारधारा पर चलती हैं. यही वजह है कि अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे ने पार्टी को एक मजबूत प्रोत्साहन दिया और समय के साथ-साथ देश भर में भारी फायदा प्राप्त करने में मदद भी की हैं. बीजेपी का जनादेश हमेशा से हिंदू पहचान और संस्कृति का संरक्षण था, तब से अब तक बीजेपी एजेंडा की सूची में हिन्दू राष्ट्र पहले स्थान पर रहा है.
किन सफलता और विफलता से गुजरी बीजेपी
बीजेपी का गठन 6 अप्रैल, 1980 को हुआ था. जबकि बीजेपी की वैचारिक उत्पत्ति 1951 में ही हो गई थी जब राजनीतिक जनता पार्टी और सामाजिक संगठन आरएसएस ने मिलकर बीजेएस की शुरूआत की थी. उत्पत्ति के अगले साल 1952 के आम चुनावों में, BJS केवल 3 लोकसभा सीटें जीत सकी और उन्हें बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. गठन के बाद कई बाधाओं और असफलताओं को पार करते हुए, बीजेपी ने वर्तमान में भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में एक मजबूत आधार बनाया है.1975 में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल लगाया, बीजेएस के सदस्यों ने कांग्रेस शासन के खिलाफ कड़ा विरोध किया.
आपातकाल की वापसी के बाद, बीजेएस ने कई अन्य दलों के साथ मिलकर जनता पार्टी का गठन किया और1977 के आम चुनाव में बहुमत हासिल किया और मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री के रूप में केंद्र में सरकार भी बनाई. हालांकि, पार्टी के भीतर राजनीतिक असहमति के कारण, मोरारजी देसाई को 1980 में इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा और नए सिरे से चुनाव हुए. जनता पार्टी जल्द ही भंग हो गई, और बड़ी संख्या में इसके सदस्य जो पहले बीजेएस के सदस्य थे, उन्होंने मिलकर बीजेपी का गठन किया.
स्थापना के तुरंत बाद, बीजेपी के पार्टी अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने गांधीवादी समाजवाद में अपना वैचारिक सोच स्थापित करते हुए, हिंदू राष्ट्रवाद पर एक नरम स्थिति बनाए रखी. हालांकि, 1984 के चुनावों में पार्टी की भारी हार के बाद, बीजेपी ने अपने राजनीतिक सिद्धांत में संशोधन करने का फैसला किया. उन्होंने अपनी आधारशिला हिन्दू राष्ट्रवाद पर मुख्य रूप से चलने कि योजना बनाई.
1980 में बीजेपी ने अपनी विचारधारा को राजनीति में प्रवेश कराया
दरअसल 1980 का दशक देश में गंभीर हिंदू-मुस्लिम संघर्ष का समय था, पार्टी को विश्व हिंदू परिषद (VHP) द्वारा शुरू किए गए राम जन्मभूमि आंदोलन में अपने राजनीतिक जनादेश के रूप में बनाए रखने के लिए एक ऐसा विवाद मिला. जों उन्हें जीत हासिल करने के लिए आदर्शवाद तरीका लगा.
बीजेपी ने 6 दिसंबर 1992 को,वीएचपी के साथ उत्तर प्रदेश में एक जन रैली आयोजित की थी. अयोध्या में 16वीं शताब्दी का मस्जिद ध्वस्त कर दिया गया. इस घटना ने बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगों को जन्म दिया और अब तक राज्य और देश दोनों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए एक बड़ा ट्रिगर बना हुआ है.
बता दें नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी 8 साल से सत्ता पर काबिज है, अगले साल 2024 में लोकसभा चुनाव होना है. ये चुनाव अपने साथ कई सवाल लेकर आया है. पहला बीजेपी इस बार भी हिन्दू राष्ट्र मुद्दों के साथ आगे बढ़ेगी दूसरा क्या राहुल भारत जोड़ो यात्रा और लगातार संघर्ष झेलते अवस्था से राजनीति के उन मंझे खिलाड़ियों में शुमार हो पाए हैं, जो विपक्ष की ओर से बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सके. तीसरा जनता इस बार कैसा भारत देखना चाहती है. इन सवालों पर बिंदु भविष्य में ही लगाया जा सकता है.
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