पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी से काफी काम सीटें जीतने के बावजूद नीतीश कुमार (Nitish Kumar) वैसे बिहार के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे लेकिन कुर्सी को संभालना अब उनके लिए भारी चुनौती भरा काम साबित हो रहा है.
खासकर हाल ही में संपन्न विधान सभा चुनावों के बाद चार राज्यों में बीजेपी की शानदार वापसी ने नीतीश के सामने कई परेशानियां खड़ी कर दी हैं. वैसे तो सरकार अभी एनडीए की है लेकिन दोनों मुख्य सहयोगी दलों के बीच की रिश्तों की कड़वाहट अब साफ दिखाई पड़ने लगी है.
वैसे तो बीजेपी और JDU के बीच मतभेद कई मुद्दों को लेकर है लेकिन नीतीश के सामने अब नयी परेशानी उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के "बुलडोज़र मॉडल" को बिहार में लागू करने के बढ़ती मांग को लेकर है. जब से योगी सरकार की सत्ता में वापसी हुई है, बीजेपी के नेता लगातार योगी मॉडल को बिहार में लागू करने की मांग कर रहे हैं. उनका दावा है कि बिहार में फिर से सर उठाते अपराध को योगी मॉडल ही काबू में कर सकता है. इस मांग ने नीतीश की एक तरह से नींद ही उड़ा दी है.
सबसे पहले इस मांग को बीजेपी के विधायक विनय बिहारी ने उठाया जो अब काफी जोर पकड़ चुका है. बिहारी कहते हैं, "बिहार में भी योगी मॉडल को लागू करना चाहिए क्योंकि यहां कानून व्यवस्था लगातार गिर रही है. अपराधी बेखौफ हो रहे हैं. ऐसे में यदि यूपी जैसा बुलडोजर मॉडल लागू कर दिया जाए तो बेहतर होगा. क्योंकि यूपी में अपराध करने के बाद अपराधियों को बख्शा नहीं जाता है."
बिहारी कहते हैं, "हम वर्तमान नीतीश मॉडल नहीं चाहते हैं, हम वो नीतीश कुमार चाहते हैं जैसा कि वह 2005 में थे. अफसोस है कि अब नीतीश में पहले वाली बात नहीं रही." दूसरे कई बीजेपी विधायक जैसे मिथिलेश कुमार और पवन जायसवाल भी लगातार नीतीश पर योगी के "बुलडोजर मॉडल" को लागू करने की मांग कर रहे हैं.
वैसे तो JDU ने प्रत्यक्ष तौर पर बीजेपी की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है लेकिन हालिया कुछ घटनाएं यह बताने को काफी हैं कि कैसे नीतीश बिहार में आहिस्ता-आहिस्ता 'योगी मॉडल' को लागू कर रहे हैं. पटना, छपरा, खगड़िया, शेखपुरा और दरभंगा में जिस तरह बुलडोजर से अवैध निर्माण और अपराधियों के ठिकानों को ध्वस्त किया गया, यह वाकई चौंकानेवाला है.
'योगी मॉडल' की शुरुआत सबसे पहले पटना से हुई जब बुलडोजर लगाकर सदाकत आश्रम के बिहार विद्यापीठ में कब्जा कर अवैध रूप से बनाई गई 15 दुकानों और 42 आवास को जमींदोज कर दिया गया. ये लोग वर्षों से वहां अवैध रूप से कब्जा जमाये हुए थे.
जिला प्रशासन का कहना है कि बिहार विद्यापीठ सदाकत आश्रम परिसर में ही भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने सेवानिवृत्ति के बाद जीवन के अंतिम पल बिताए थे. इसके बाद दूसरा निशाना पटना के ही राजीव नगर में बिहार राज्य आवास बोर्ड की करीब 27 कट्ठा जमीन को कब्जा कर बने मकानों को बनाया गया. इन सारे अवैध निर्माण को बुलडोजर लगाकर पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया.
ऐसा ही एक मंजर छपरा में देखने को मिला जब एक बालू कारोबारी और उसके भाई के हत्याकांड के आरोपियों के घर पर पुलिस ने बुलडोजर चलवा दिया. इन दोनों कांडों के अभियुक्त जितेन्द्र राय और विकास राय अभी तक फरार चल रहे हैं जिसके बाद पुलिस ने यह कदम उठाया. दरभंगा, खगड़िया और शेखपुरा जिले में में भी अवैध निर्माण पर बुलडोजर चल रहे हैं.
तो बिहार में बुलडोजर क्या बीजेपी के दबाव में चल पड़े हैं? वैसे यह पहली बार नहीं है कि नीतीश बीजेपी के दबाव में आए हैं. हाल की कई घटनाओं के बाद विपक्ष का आरोप है कि नीतीश अपना कद तेजी से खोते जा रहे हैं. जैसे-
नीतीश ने योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत की. यह पहली बार था जब नीतीश बीजेपी के किसी नेता के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने पहुंचे थे.
विपक्ष ने इसको भी मुद्दा बनाया कि नीतीश ने झुककर प्रधान मोदी को नमस्कार किया.
शुरू में कड़ाई दिखाने के बाद नीतीश ने आखिरकार बिहार विधान सभा के सभापति विजय कुमार सिन्हा से दुर्व्यवहार करने वाले पुलिस अधिकारी को हटाया.
नीतीश ने बीजेपी के दबाव में वीआईपी अध्यक्ष मुकेश साहनी को मंत्रिमंडल से हटाने के लिए राज्यपाल को अनुशंसा भेजी. शुरुआत में जदयू के ही मंत्री इसका विरोध कर रहे थे.
बिहार विधान परिषद की स्थानीय प्राधिकार कोटे की 24 सीटों के चुनाव में बीजेपी और जदयू के बीच सीटों का बराबर-बराबर बंटवारा नहीं हुआ. बीजेपी 12 तो JDU 11 सीटों पर लड़ी. (एक सीट राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी को दी गई). यह पहली बार था जब बराबर का बंटवारा नहीं हुआ. इसके पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियां 17-17 सीटों पर लड़ी थी (छह सीटें राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को दी गयी थी). 2020 के बिहार सभा चुनाव में JDU 122 तो बीजेपी 121 सीटों पर लड़ी थी. दिक्कत और बढ़ सकती है क्योंकि एक बार एमएलसी चुनाव में JDU एक बार फिर तीसरे नंबर की पार्टी बन गई.
बीजेपी से गठबंधन नहीं होने के बाद वैसे तो JDU ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा की और कुछ सीटों पर अपने उम्मीदवार भी उतारे लेकिन नीतीश वहां अपनी पार्टी कैंडिडेट के चुनाव प्रचार में नहीं गए.
राजनीतिक पंडितों का ऐसा मानना है कि 2017 में महागठबंधन से संबंध तोड़ एनडीए में अपनी वापसी के बाद नीतीश की अब वैसी धाक नहीं रही. नीतीश की बातों पर गौर फरमाने की तो बात ही छोड़ दे, बीजेपी अब उन्हें पद से बेदखल कर अपना मुख्यमंत्री बनाने के प्रयास में है. बीजेपी लगातार दबाव बना रही है कि नीतीश राज्य की राजनीति छोड़ केंद्र में शिफ्ट करें ताकि बिहार की सत्ता किसी अपने नेता को सौंपी जाए.
आखिर पिछले 17 साल से लगातार बीजेपी नीतीश को अपना समर्थन देती आ रही है और यह काम वह अनंत काल तक नहीं करना चाहती. इंतजार की भी आखिर एक सीमा होती है खासकर तब जब बीजेपी के पास नीतीश से ज्यादा सीटें हैं.
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