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BMC Election:शिंदे की 'यारी' से BJP को कितना फायदा?उद्धव की शिवसेना का गढ़ बचेगा?

पिछले 25 सालों से BMC पर बिना अपवाद शिवसेना का नियंत्रण है. बगावत से कमजोर उद्धव को मात देने का यह अच्छा अवसर?

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बागी शिवसैनिक विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) बीजेपी के इंजन पर सवार होकर महाराष्ट्र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ चुके हैं. दूसरी तरफ बीजेपी ने देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) की जगह एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद देकर एक पत्थर से कई शिकार किए हैं. एक ऐसा ही मोर्चा है- बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC Election) का चुनाव, जिसपर बीजेपी की नजर है. पिछले 25 साल से इस 'अमीर' नगर निगम पर शिवसेना का कब्जा है और अब बीजेपी एकनाथ शिंदे की मदद से इस रिकॉर्ड को तोड़ना चाहेगी.

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बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) का चुनाव इस साल के अंत तक होगा और बगावत का दंश झेल रही शिवसेना के लिए यह असली लिटमस टेस्ट साबित होगा.

सवाल है कि BMC चुनाव में शिंदे से बीजेपी कितना फायदा ले पाएगी? बीजेपी से बागियों की इस 'यारी' से क्या शिवसेना को अपनी ही जन्मस्थली के स्थानीय चुनाव में नुकसान होगा? या ठाकरे परिवार अपने गढ़ में अभी भी इतना मजबूत है कि बीजेपी के अरमानों पर पानी फेर दे?

कुछ ऐसे सवालों का जवाब खोजने से पहले शिवसेना और बीजेपी के लिए BMC चुनाव की अहमियत को समझने की कोशिश करते हैं.

मुंबई से पैदा हुई बालासाहेब की शिवसेना- 25 साल से दबदबा 

मुंबई शिवसेना की जन्मस्थली है और हर गली और वार्ड में पार्टी का नेटवर्क है. इसका सबूत है 1996 से 2017 तक हुए BMC चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन. 25 सालों से BMC पर बिना ब्रेक के शिवसेना का पूरा नियंत्रण है. इसने 1997 (103 सीटें), 2002 (97 सीटें), 2007 (84 सीटें), 2012 (75 सीटें) और फिर 2017 (84 सीटें) में लगातार BMC चुनाव जीते हैं.

2017 के चुनाव में शिवसेना ने 84 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी को 82 सीटें मिलीं. लेकिन चुनाव के बाद में MNS से छह और कुछ निर्दलीय शिवसेना में शामिल हो गए, जिसने शिवसेना की पकड़ और मजबूत कर दी.

बीजेपी शिवसेना के इस होमटर्फ पर जीत हासिल कर महाराष्ट्र के सियासत में अपने कमबैक पर मुहर लगाना चाहेगी. खास बात यह है कि बीजेपी को अगर यहां जीत मिलती है तो उद्धव के राजनीतिक रसूख को बड़ा डेंट मिलेगा. जिस तरह से बीजेपी ने एकनाथ शिंदे के साथ मिलकर उद्धव को किनारे करते हुए महाराष्ट्र की सत्ता में वापसी की है, वह BMC चुनाव में भी उन्हें मात देकर अपने लिए रास्ता साफ करना चाहेगी.

एकनाथ शिंदे से BJP को मदद मिलेगी? इस सवाल का जवाब 'असली शिवसेना कौन है?' के यक्ष प्रश्न में है 

कहा जाता है कि महाराष्ट्र की सियासत पर शिवसेना का प्रभाव बने रहे उसकी एक शर्त यह है कि अपने गढ़ मुंबई में उसकी पकड़ कमजोर न हो. हालांकि आज पार्टी के कार्यकर्ता असमंजस में हैं और यह आम लोगों की तरह वे तय नहीं कर पा रहे हैं कि असली शिवसेना कौन है- उद्धव ठाकरे जिसे अपना बता रहे हैं वो या जिसपर बागियों के नेता एकनाथ शिंदे अपना दावा कर रहे हैं.

एकनाथ शिंदे को पहले ही उद्धव ठाकरे पार्टी के नेता पद से हटा चुके हैं और 'असली शिवसेना' की यह लड़ाई का अदालत में जाना तय माना जा रहा है. इस मुद्दे पर अदालत के फैसले के बाद ही पता चलेगा कि BMC चुनाव के इस सियासी बिसात में कितने खिलाड़ी हैं और बीजेपी एकनाथ शिंदे से 'दोस्ती' का कितना फायदा उठा पाती है.

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यह सही है एकनाथ शिंदे का घरेलू मैदान ठाणे हैं और उनका मुंबई में उद्धव ठाकरे के मुकाबले प्रभाव काफी कम है. लेकिन चूंकि उद्धव ने सत्ता खो दी है, सबसे अधिक फायदे में बीजेपी होगी. शिंदे के गुट का BMC में ज्यादा असर नहीं होगा इसलिए यह स्पष्ट रूप से कमजोर उद्धव बनाम बीजेपी की लड़ाई होगी.

कई राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि शिवसेना के कई पार्षद भी विधायकों की तरह बगावत कर सकते हैं और या तो शिंदे खेमे की ओर से लड़ेंगे या कुछ बीजेपी में भी शामिल हो सकते हैं.

असली शिवसेना पर अदालत का फैसला चाहे जो हो, बीजेपी अभी के लिए एकनाथ शिंदे के साथ गठबंधन में रहना चाहेगी क्योंकि दोनों के पास महाराष्ट्र की सत्ता में बने रहने के लिए जरुरी संख्या बल है. बीजेपी BMC चुनाव भी एकनाथ शिंदे गुट के साथ मिलकर लड़ना चाहेगी.

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BMC Election: उद्धव ठाकरे के पास क्या विकल्प हैं?

BMC Election पर उद्धव ठाकरे के पास भी मौजूद विकल्प इस बात पर निर्भर करेंगे कि क्या 'असली शिवसेना' पर फैसला उनके पक्ष में जाता है या नहीं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दोनों ही स्थिति में ठाकरे BMC चुनाव के लिए एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकते हैं, जिन्होंने इस संकट के बीच भी उनका साथ नहीं छोड़ा. हालांकि इस रास्ते से उद्धव का BMC चुनाव जीतना मुश्किल हो सकता है.

उद्धव ठाकरे के पास दूसरा विकल्प है कि वह एकनाथ शिंदे के हाथों अपनी हार को स्वीकार करें और एकजुट शिवसेना के साथ बीजेपी का सामना करें. बिना बागियों के समर्थन के उद्धव ठाकरे के लिए फिर से जीवंत बीजेपी का सामना करना मुश्किल होगा.

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