"मेरे राजनीतिक जीवन का हर पल एक अग्नि परीक्षा था" 26 जुलाई 2021 को कर्नाटक (Karnataka) के मुख्यमंत्री पद से हटने से पहले आंसू भरी आंखों से बीएस येदियुरप्पा (BS Yediyurappa) ने यह बात कही थी. इसके करीब दो साल बाद, 22 फरवरी 2023 को उन्होंने कर्नाटक विधानसभा में अपना आखिरी भाषण देकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया.
अपनी "अंतिम सांस" तक बीजेपी के लिए काम करने की अपनी प्रतिबद्धता का आश्वासन देते हुए उन्होंने कहा कि अब वो चुनाव नहीं लड़ेंगे. उन्होंने मौका देने के लिए पार्टी को धन्यवाद दिया और साथ ही बीजेपी विधायकों में आगामी चुनावों का सामना करने का विश्वास जगाया.
क्या कर्नाटक की राजनीतिक में कद्दावर नेता के रूप में येदियुरप्पा की पारी समाप्त हो गई है? इस सन्यास के बाद कर्नाटक के चार बार के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा से बीजेपी क्या उम्मीद कर रही है और इसके बदले में येदियुरप्पा भगवा पार्टी से क्या चाह रहे होंगे? इसी का जवाब खोजने की कोशिश करते हैं.
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार कर्नाटक में बीजेपी के लिए येदियुरप्पा एक प्रभावशाली नेता बने रहेंगे. द क्विंट को यह जानकारी मिली है कि उन्होंने अपनी अंतिम मांगों को बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने रख दिया था.
बीजेपी से क्या चाहते हैं येदियुरप्पा?
येदियुरप्पा अभी भी एक ऐसे नेता हैं जो बीजेपी के लिए मूल्यवान हैं. मिली जानकारी के अनुसार येदियुरप्पा ने आलाकामन के सामने पार्टी में अपने परिवार के भविष्य के बारे में अपनी बात रखी है.
हालांकि बीजेपी ने येदियुरप्पा को केंद्रीय संसदीय बोर्ड में जगह दी है, लेकिन अगर कर्नाटक में बीजेपी सत्ता में लौटती है तो येदियुरप्पा इनाम मिलने की उम्मीद पाले बैठे हैं. वह चाहते हैं कि पार्टी उनके बेटे विजयेंद्र को कैबिनेट में जगह दे. बीजेपी ने 2018 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले आखिरी मिनटों में विजयेंद्र को वरुणा विधानसभा से टिकट देने से इनकार कर दिया था.
साथ ही, 2024 के लोकसभा चुनावों में, येदियुरप्पा को उम्मीद है कि पार्टी शिवमोग्गा सीट से उनके बड़े बेटे बी वाई राघवेंद्र को फिर से टिकट देगी.
इसके अलावा, वह चाहते हैं कि अगर पार्टी चुनाव जीतती है तो बीजेपी विजयेंद्र को उपमुख्यमंत्री बनाएगी. क्या उनकी इन मांगों पर पार्टी 2023 के चुनावों से पहले विचार करेगी?
येदियुरप्पा बीजेपी के लिए क्यों जरूरी हैं?
27 फरवरी को येदियुरप्पा 80 साल के हो जाएंगे. उसी दिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी येदियुरप्पा के ड्रीम प्रोजेक्ट - उनके गृह जिले शिवमोग्गा में एक हवाई अड्डे का उद्घाटन करने के लिए कर्नाटक में होंगे. क्या यह कर्नाटक बीजेपी में अब भी येदियुरप्पा के दबदबे का संकेत है?
यह स्पष्ट है कि इस साल मई में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी के प्रचार अभियान का नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह करेंगे, जो जनवरी से बारी-बारी से राज्य का दौरा कर रहे हैं.
हालांकि अमित शाह ने पहले कहा था कि चुनाव कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, लेकिन पार्टी को लगता है कि उनका येदियुरप्पा की तरह पूरे कर्नाटक कनेक्शन नहीं है.
इसके अलावा, बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को पता है कि बोम्मई सरकार सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है और अधिकांश सीटों पर बीजेपी, कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होगा.
ऐसे में बीजेपी के लिए पारंपरिक वोट बैंक पर निर्भरता सबसे अहम होगी. 2008 के बाद से, जब बीजेपी ने ऑपरेशन लोटस (अन्य दलों के विधायकों को दलबदल कर अपने में मिलाया) के माध्यम से अपनी संख्या बढ़ाकर राज्य में पहली बार स्वतंत्र रूप से सरकार बनाई, तो पार्टी का सबसे बड़ा वोट बैंक लिंगायत समुदाय बना, जो कुल आबादी का 17 प्रतिशत है.
यह समुदाय 224 निर्वाचन क्षेत्रों में से कम से कम 100 में उम्मीदवारों की जीत में निर्णायक भूमिका निभाता है. उनका प्रभाव उत्तर कर्नाटक में महत्वपूर्ण है.
बीजेपी से उसका सबसे बड़ा वोट बैंक- लिंगायत समुदाय कटा?
येदियुरप्पा वह व्यक्ति थे जिन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े के बाद लिंगायत को राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाया. 1983 में, जब हेगड़े ने राज्य में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई तो येदियुरप्पा और उनके 18 विधायकों ने जनता पार्टी को समर्थन दिया. 2000 में, जनता पार्टी के विभाजन के बाद, येदियुरप्पा लिंगायतों के लिए एक महत्वपूर्ण नेता बनकर उभरे, जिनका झुकाव बीजेपी की ओर था. 2018 में बीजेपी ने जिन 104 सीटों पर जीत हासिल की थी, उनमें से 81 उत्तरी कर्नाटक से थीं.
इसलिए, येदियुरप्पा को दरकिनार करने से बीजेपी को सीटें गंवानी पड़ सकती है, जैसा कि पार्टी ने 2013 के विधानसभा चुनावों में देखा था. 2012 में, येदियुरप्पा ने बीजेपी छोड़कर 'कर्नाटक जनता पक्ष' नाम की पार्टी बनाई थी. हालांकि इस पार्टी ने केवल छह सीटें जीतीं, लेकिन इसने बीजेपी को भारी नुकसान पहुंचाया. बीजेपी को 2008 में जहां 110 सीटें मिली थीं वहीं 2013 में वह सिर्फ 40 सीटें जीत सकी.
आगामी चुनावों में, बीजेपी सभी लिंगायतों के समर्थन का दावा नहीं कर सकती है. इसका कारण यह है कि, पंचमसाली लिंगायत, जो इस समुदाय का एक बड़ा हिस्सा हैं, बोम्मई सरकार का विरोध कर रहे हैं. बोम्मई सरकार ने उन्हें पिछड़ा वर्ग सूची के भीतर 2ए श्रेणी का आरक्षण प्रदान नहीं किया है.
इसके अलावा, कांग्रेस, जिसने तीन दशक पहले लिंगायत समर्थन छोड़ दिया था, अब इस समुदाय को वापस जीतने के प्रयास कर रही है.
हालांकि, बीजेपी में एक वर्ग ऐसा भी है जो सोचता है कि पार्टी अब येदियुरप्पा से आगे निकल गई है.
पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा, "बीजेपी का मानना है कि सभी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन कोई भी नेता ऐसा नहीं है जिसके बिना पार्टी न चल सके". पदाधिकारी के अनुसार पार्टी में भले ही येदियुरप्पा के कद के लिंगायत नेता न हों, लेकिन ऐसे नेता हैं जो इस समुदाय के वोट प्राप्त कर सकते हैं. चाहे वे अपने निर्वाचन क्षेत्रों या जिलों तक ही सीमित क्यों न हों.
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