6 राज्यों की 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के नतीजे आ चुके हैं. बीजेपी ने बिहार में गोपालगंज (Gopalganj), यूपी के गोला गोकर्णनाथ (Gola Gokarnath), हरियाणा के आदमपुर (Adampur) और ओडिशा के धामनगर (Dhamnagar) से जीत हासिल की. महाराष्ट्र से उद्धव गुट की शिवसेना (Shiv Sena) और तेलंगाना (Telangana) से टीआरएस उम्मीदवार की जीत हुई. वहीं बिहार की मोकामा सीट (Mokama) से आरजेडी ने जीत दर्ज की. लेकिन 7 सीटों पर हुआ उपचुनाव क्या संदेश देता है? बिहार में बीजेपी से टूट के बाद नीतीश तेजस्वी की जोड़ी, महाराष्ट्र में उद्धव गुट और हरियाणा में भजनलाल का परिवार क्या कमाल कर पाया?
मोकामा में 'अनंत फैक्टर' हावी-आरजेडी की जीत हुई
सबसे पहले बिहार की बात करते हैं. मोकामा सीट आरजेडी विधायक अनंत कुमार सिंह को अयोग्य ठहराए जाने के बाद खाली हुई थी. इस सीट को बाहुबलि अनंत सिंह का इलाका माना जाता है. नतीजों में भी इसका रिफ्लेक्शन दिखा. बीजेपी ने लल्लन सिंह की पत्नी सोनम देवी को मैदान में उतारा था. दूसरी तरफ आरजेडी ने अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी के जरिए जीत हासिल कर ली.
गोपालगंज में ओवैसी ने बिगाड़ा नीतीश-तेजस्वी का खेल?
गोपालगंज सीट पर सबसे ज्यादा मुसलमान वोट हैं, मगर यहां MY समीकरण पर दांव लगाने वाली आरजेडी हार गई. ओवैसी के उम्मीदवार अब्दुल सलाम और लालू प्रसाद के साले साधु यादव की पत्नी इंदिरा यादव को मिले वोटों पर नजर डालें तो कहेंगे कि गोपालगंज की सीट पर आरजेडी को बीजेपी ने नहीं, ओवैसी और साधु यादव की पत्नी ने हराया है.
यहां पहले नंबर पर बीजेपी, दूसरे नंबर पर आरजेडी और तीसरे नंबर पर ओवैसी की पार्टी रही. आरजेडी को करीब 1800 वोटों से हार का सामना करना पड़ा, वहीं ओवैसी की पार्टी को करीब 12 हजार और साधु यादव की पत्नी को करीब 9 हजार वोट मिले.
अखिलेश उपचुनावों से दूर, पिछले चुनावों से नहीं ली सीख
यूपी की गोला गोकर्णनाथ सीट की बात करें तो यहां बीजेपी उम्मीदवार अमन गिरी ने एसपी उम्मीदवार विनय तिवारी को हरा दिया. हालांकि ये नतीजा चौंकाने वाला नहीं है. 2012 के बाद से 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ही जीतती रही है, लेकिन हैरान करने वाला ये है कि आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव हारने के बाद भी एसपी ने कोई सीख नहीं ली.
अखिलेश यादव पहले की तरह से उपचुनाव से दूर ही खड़े नजर आए. कोई बड़ा चेहरा प्रचार में नहीं दिखा. वहीं बीजेपी ने बड़े चेहरों की लाइन लगा दी. सीएम योगी सहित कई मंत्री गोला पहुंचे. प्रचार किया. नतीजा रहा कि सीट फिर से बीजेपी के कब्जे में आ गई.
अंधेरी ईस्ट में 7 उम्मीदवार, लेकिन दूसरे नंबर पर NOTA
अब चलते हैं महाराष्ट्र. यहां अंधेरी ईस्ट में उद्धव गुट की ऋतुजा लटके को भारी बहुमत मिला. इसकी वजह थी कि बीजेपी ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा. जीत के साथ ही एक चौंकाने वाला फैक्ट भी सामने आया. अंधेरी ईस्ट में कुल 7 उम्मीदवार थे, लेकिन दूसरे नंबर पर कोई उम्मीदवार नहीं नोटा था.
12 हजार से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया. शायद इसके पीछे एक वजह ये रही हो कि बीजेपी या शिंदे गुट का वह वोटर जो ऋतुजा लटके को वोट नहीं करना चाह रहा था उसने नोटा का विकल्प चुना.
आदमपुर में भजनलाल परिवार का जलवा कायम
अब हरियाणा की भी बात कर लेते हैं. यहां की आदमपुर विधानसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार भव्य बिश्नोई की जीत हुई, जिसके साथ ही हरियाणा विधानसभा में भजनलाल की तीसरी पीढ़ी ने दस्तक दी है. दरअसल, आदमपुर भजनलाल परिवार का गढ़ रहा है. इसलिए ये जीत बीजेपी से ज्यादा भजनलाल परिवार की मानी जा रही है. ऐसा इसलिए भी कह सकते हैं क्योंकि पहले भी कांग्रेस के टिकट पर कुलदीप विश्नोई इस सीट से विधायक थे, लेकिन वो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. अब उनके बेटे भव्य ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा.
हां, ये जरूर हुआ कि इस जीत के साथ ही मनोहर लाल खट्टर का उपचुनावों में हार का सिलसिला टूटा है क्योंकि इससे पहले उन्हें बरोदा और ऐलनाबाद विधानसभा उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा था.
मुनूगोड़े में कांग्रेस के हाथ से गई गई सीट
तेलंगाना की मुनूगोड़े सीट पर 47 उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन टीआरएस की कुसुकुंतला प्रभाकर रेड्डी की जीत हुई. दूसरे नंबर पर बीजेपी के राजगोपाल रेड्डी रहे. पहले ये सीट कांग्रेस के पास थी, लेकिन अगस्त महीने में कांग्रेस विधायक कोमातीरेड्डी राज गोपाल रेड्डी ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. जिसकी वजह से इस सीट पर उपचुनाव कराना पड़ा.
ओडिशा की धामनगर सीट बीजेपी विधायक बिश्नू सेठी की मौत के बाद खाली हुई थी. उपचुनाव हुए और बीजेपी ने सेठी के बेटे सूर्यवंशी सूरज को मैदान में उतारा और जीत हासिल की. ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी ने अंबति दास को टिकट दिया था, लेकिन उन्हें करीब 9 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा.
बीजेपी को बढ़त, कांग्रेस 2 से शून्य पर पहुंची
कुल मिलाकर देखें तो उपचुनाव से पहले 7 में से 3 पर बीजेपी, 2 पर कांग्रेस और एक-एक सीट पर आरजेडी और उद्धव ठाकरे गुट की पार्टी का कब्जा था. नतीजों के बाद स्थिति लगभग पहले जैसी है. हरियाणा के आदमपुर सीट पर कांग्रेस का कब्जा था, लेकिन अब वह बीजेपी के खाते में चली गई. वहीं तेलंगाना की मुनूगोड़े सीट पर भी कांग्रेस का कब्जा था, लेकिन अब वहां टीआरएस ने जीत दर्ज की. यानी उपचुनाव का हासिल ये रहा कि बीजेपी 3 से 4, कांग्रेस 2 से शून्य, टीआरएस शून्य से 1 पर आ गईं. आरजेडी और शिवसेना अपनी-अपनी सीट बचाने में सफल रहे.
घाटा कांग्रेस को हुआ. वहीं बिहार में नीतीश और तेजस्वी के साथ आने के बाद भी उपचुनाव में बहुत असर नहीं दिखा. हां 2020 के मुकाबले उनके वोट जरूर बढ़े हैं, लेकिन आरजेडी बिहार की गोपालगंज सीट नहीं जीत सकी. क्योंकि शायद ओवैसी फैक्टर फिर से हावी हुआ. महाराष्ट्र में उद्धव के लिए कोई बड़ी जीत नहीं मानी जा सकती है, क्योंकि बाकी पार्टियों ने शिवसेना उम्मीदवार को वॉकओवर दे दिया था. हरियाणा में पार्टी से बड़ा भजनलाल परिवार साबित होता दिखा. जिस पार्टी में गए वहीं से जीत हासिल की.
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