छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बदलने को लेकर कांग्रेस में मंथन जारी है. पिछले कई हफ्तों से सीएम भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच जारी घमासान को शांत करने की पूरी कोशिश हो रही है. इसी मामले को लेकर पार्टी आलाकमान ने दोनों सीनियर नेताओं को दिल्ली बुलाया था, जहां राहुल गांधी ने उनसे मुलाकात की. हालांकि बैठक के बाद ये कहा गया कि लीडरशिप में बदलाव को लेकर कोई चर्चा ही नहीं हुई. लेकिन कांग्रेस चाहे कुछ भी कहे, अब एक और राज्य में अंदरूनी कलह को लेकर पार्टी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
अब आपको पहले ये बताते हैं कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ में कितने मजबूती के साथ सरकार बनाकर आई है. राज्य में साल 2018 में कुल 90 विधानसभा सीटों को लेकर वोटिंग हुई थी. चुनावों के नतीजे कांग्रेस के लिए एक बड़े बूस्ट की तरह थे. क्योंकि कांग्रेस ने यहां सिर्फ बहुमत ही हासिल नहीं किया, बल्कि 90 सीटों में से कुल 68 सीटों पर जीत दर्ज की. यानी प्रचंड बहुमत के साथ कांग्रेस की छत्तीसगढ़ में वापसी हुई.
बहुमत के बावजूद किस बात पर विवाद?
अब इस बड़े बहुमत के बाद भी आखिर छत्तीसगढ़ सरकार में ये अस्थिरता क्यों बनी है? इसका सबसे बड़ा कारण राज्य के दो बड़े नेताओं के बीच हो रही टक्कर है. दरअसल बताया गया था कि चुनाव के दौरान कांग्रेस ने एक फॉर्मूला तय किया था. जिसमें सरकार बनने के बाद दो मुख्यमंत्रियों की बात हुई थी. यानी ढाई साल भूपेश बघेल और अगले ढाई साल के लिए टीएस सिंह देव को मुख्यमंत्री बनाया जाना था. इस बात का दावा सिंह देव समर्थक लगातार करते आए हैं.
अब जून 2021 में भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बने ढाई साल पूरे हो चुके हैं. जिसके बाद टीएस सिंह देव के समर्थक विधायकों और नेताओं ने हल्ला बोल दिया. पार्टी पर दबाव बनाया जा रहा है कि वो जल्द से जल्द लीडरशिप में बदलाव करे. यहां तक कि केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बनाने के लिए ये तक कहा जा रहा है कि अगर मुख्यमंत्री नहीं बदला जाता है तो टीएस सिंह समेत कई नेता पार्टी छोड़ सकते हैं.
इस मामले को लेकर दूसरा पक्ष यानी सीएम भूपेश बघेल के समर्थक विधायक इस बात से साफ इनकार करते आए हैं कि ऐसा कोई फॉर्मूला बनाया गया था. उनका कहना है कि मुख्यमंत्री बघेल के नेतृत्व में ही पांच साल तक सरकार चलनी चाहिए. अगर नेतृत्व बदला जाता है तो पार्टी के लिए ये अगले चुनाव में बड़ा नुकसान कर सकता है.
क्या बदला जा सकता है मुख्यमंत्री?
सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या छत्तीसगढ़ में उठे तूफान को शांत करने के लिए वाकई में भूपेश बघेल को हटाया जा सकता है? फिलहाल इसके आसार कम ही नजर आ रहे हैं. क्योंकि भूपेश बघेल कांग्रेस के बड़े नेता हैं और सीधे केंद्रीय नेतृत्व से जुड़े हैं. इसके अलावा राज्य में उनके खिलाफ ऐसा कोई माहौल भी नहीं बना है, जिसके चलते उन्हें कुर्सी से हटाया जाए. इसीलिए फिलहाल बघेल का पलड़ा भारी नजर आ रहा है.
लेकिन अगर बदलाव नहीं हुआ तो कांग्रेस को बड़े डैमेज के लिए भी तैयार रहना होगा. क्योंकि टीएस सिंह और उनके समर्थक विधायकों के तेवर काफी सख्त हैं. अगर पार्टी उन्हें किसी और तरह नहीं मना पाई तो जैसे राजस्थान में सचिन पायलट और गहलोत के बीच हुआ, वही सब छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिल सकता है.
कांग्रेस के लिए बदलाव क्यों खतरनाक?
कांग्रेस पार्टी चाहकर भी छत्तीसगढ़ में बदलाव नहीं कर सकती है. अगर ऐसा हुआ तो ये पार्टी के लिए एक बड़ा नुकसान होगा. पहले तो भूपेश बघेल जैसे चेहरे को कुर्सी से नीचे उतारना आसान नहीं होगा, वहीं ऐसा कर कांग्रेस अपनी पार्टी में अस्थिरता को और बढ़ावा देना नहीं चाहेगी.
क्योंकि पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों में पहले ही कांग्रेस दो धारी तलवार पर चल रही है. पंजाब में जहां फिलहाल सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर मामला शांत किया गया है, वहीं राजस्थान में पायलट को पार्टी की तरफ से किए गए वादे का इंतजार है. क्योंकि जब उन्होंने कांग्रेस से बगावत की थी तो कई शर्तों पर उनकी वापसी की गई थी.
इसीलिए कांग्रेस अब एक ऐसे राज्य में ये खतरा बिल्कुल मोल नहीं लेगी, जहां पर उसकी सबसे मजबूत सरकार है. क्योंकि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में अभी काफी ज्यादा वक्त बाकी है, ऐसे में पार्टी के सामने ये भी संकट नहीं है कि पार्टी को चुनाव में उतरना है. इसीलिए फिलहाल तो यही लग रहा है कि टीएन सिंह देव को ही समझौता करना पड़ सकता है.
अब कांग्रेस नेतृत्व से मुलाकात के बाद भले ही पार्टी नेता फिलहाल सब कुछ ठीक होने की बात कर रहे हों, लेकिन अगले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा कि दिल्ली में आखिर क्या तय हुआ है.
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