बिहार की पासवान फैमली में कुर्सी की लड़ाई हो रही है. चाचा-भतीजा आमने-सामने हैं. दोनों को एक दूसरे की 'बादशाहत' पसंद नहीं आ रही है, जिसका नतीजा ये हुआ कि लोकजनशक्ति पार्टी (LJP) अब टूट चुकी है. लेकिन इस टूट के साथ सवाल ये उठ रहा है कि राम विलास पासवान की एलजेपी किसकी? असली वारिस कौन? और सबसे बड़ा सवाल क्या चिराग पासवान अपने पिता का नाम 'रौशन' कर पाएंगे? या फिर 'पारस' चमकेगा?
दरअसल, चाचा पशुपति पारस और भतीजे चिराग पासवान (Chirag Paswan) के 'पॉलिटिकल-फैमिली ड्रामा' में पहला दाव पशुपति पारस ने चला था, जब उन्होंने 5 सांसदों की एक चिट्ठी लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला को भेजी जिसमें उन्हें संसदीय दल का नेता बनाने की मांग की गई थी.
जब तक चिराग कुछ समझ पाते चाचा पशुपति पारस ने माहौल बना दिया था. हर तरफ चिराग के अकेले दिखने की कहानी शुरू हो गई. लेकिन अब चिराग लगातार अटैक कर रहे हैं. पहले चिराग पशुपति पारस से मिलने उनके घर गए, फिर चिराग ने एक पुराना लेटर शेयर किया. उन्होंने चिट्ठी शेयर करते हुए लिखा,
“पापा की बनाई इस पार्टी और अपने परिवार को साथ रखने के लिए किए मैंने प्रयास किया लेकिन असफल रहा.”
चिराग के पास पिता का नाम
पटना के रहने वाले सीनियर पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं,
“पारस के पास भले ही 5 सांसदों का साथ हो लेकिन चिराग के पास पार्टी है. राम विलास के जीवित रहते ही चिराग को अध्यक्ष बनाया गया था, चिराग खुद से किसी पद पर नहीं बैठे थे. चिराग पासवान के कार्यकर्ता से लेकर एलजेपी के वोटर में यही संदेश गया है कि चिराग के साथ गलत हो रहा है. और चिराग इस बात को समझते हैं इसलिए उन्होंने अपने पिता के जन्मदिन के मौके पर 5 जुलाई को अपने पिता की कर्मभूमि हाजीपुर से ही यात्रा शुरू कर रहे हैं.”
“चिराग का बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट कैंपेन रहा था फ्लॉप”
वहीं एलजेपी के पूर्व प्रवक्ता और बिहार इकाई के महासचिव चुके केशव सिंह पार्टी में उठे तूफान के लिए चिराग को ही दोषी मानते हैं. केशव कहते हैं,
विधानसभा चुनाव में हर पार्टी जीतने के लिए लड़ती है, हम दूसरे को हराने के लिए लड़ रहे थे. चिराग पासवान सबको साथ लेकर चलने में अक्षम रहे, पार्टी में लोकतंत्र खत्म होने की वजह से पार्टी टूट गई. पशुपति पारस पार्टी के मैनेजर की भूमिका में रहे हैं. राम विलास जी केंद्र की राजनीति और मंत्रालय देखते थे तो पारस जी पार्टी देखते थे, पारस जी जब राम विलास पासवान जी के समय में संभाल सकते थे तो अब भी संभाल सकते हैं.
जब हमने केशव सिंह से चिराग पासवान की यात्रा के असर के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव से पहले भी चिराग पासवान ने बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट कैंपेन की शुरुआत भी हाजीपुर से की थी, लेकिन वो भी फ्लॉप रहा. अब फिर से शुरू कर रहे हैं, अब देखिए क्या होता है. हालांकि केशव सिंह ने कहा कि हम लोग चिराग पासवान की मदद के लिए तैयार हैं.
चिराग ने वोट शेयर बढ़ाया
वहीं दूसरी तरफ पत्रकार रवि उपाध्याय चिराग को लेकर जमीनी हालात अलग बताते हैं. रवि बिहार चुनाव के नतीजों को समझाते हुए कहते हैं कि भले ही आप विधानसभा चुनाव में एलजेपी के एक सीट जीतने को चिराग की हार मान रहे हों, लेकिन सच ये है कि चिराग ने पिता की मौत के बाद अकेले पार्टी संभाला और जो टार्गेट सेट किया वो पूरा किया. रवि कहते हैं,
“चुनाव के दौरान पिता की मौत हुई लेकिन तब भी पारस कहीं नजर नहीं आए, चिराग पासवान ने नीतीश के खिलाफ चुनाव लड़ा और कामयाब हुए, जेडीयू को बिहार की तीसरी नंबर की पार्टी बनाने में चिराग की अहम भूमिका रही. यही नहीं चिराग ने एलजेपी का वोट शेयर भी बढ़ाया ही है. एलजेपी को 5.66 प्रतिशत वोट मिले हैं. जोकि पिछले चुनाव से ज्यादा है.”
“राम विलास की विरासत चिराग आगे बढ़ाएंगे”
चिराग राम विलास पासवान की विरासत संभालने के काबिल हैं या नहीं? इस सवाल का जवाब समझने के लिए हमने हिंदी अखबार प्रभात खबर के स्टेट ब्यूरो चीफ मिथलेश से बात की. उन्होंने चिराग को लेकर बिहार के वोटर खासकर पासवान या पिछड़े समाज के मन में क्या है इसपर चर्चा की. मिशलेश कहते हैं,
“राम विलास पासवान की लिगेसी या कहें विरासत वो चिराग के साथ दिख रही है. एलजेपी का वोटर चिराग के साथ नजर आता है. पशुपति पारस के साथ जो लोग हैं वो अगले 2024 के चुनाव में किस पार्टी में होंगे या किस पार्टी से चुनाव लड़ेंगे ये कोई नहीं जानता है.”
मिथलेश कहते हैं कि राम विलास का वोट चिराग पासवान ही ट्रांसफर करा सकते हैं, क्योंकि पारस हमेशा पर्दे के पीछे रहे हैं, लोगों ने उन्हें नहीं देखा है. और न ही उनका ऐसा कोई संघर्ष है.
चिराग की वजह से 30 सीटों पर नीतीश की JDU हारी?
बता दें कि 2020 विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने नीतीश कुमार के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, जिसमें एलजेपी को सिर्फ एक सीट हासिल हुई. नाम ना छापने की शर्त पर चिराग की पार्टी के एक बड़े नेता कहते हैं कि लोग बार-बार कह रहे हैं कि चिराग हार गए, संभाल नहीं पाए, लेकिन सच भी तो जानिए. चिराग ने कहा था नीतीश को हराएंगे तो हरा दिया.
वहीं प्रभात खबर के सीनियर पत्रकार मिथलेश कहते हैं,
चिराग पासवान की वजह से विधानसभा चुनाव में जेडीयू को बहुत बड़ा नुकसान हुआ. करीब 30 सीटों पर जेडीयू के कैंडिडेट चिराग की वजह से हार गए.
एक बड़ी बात ये है कि चिराग ने हार नहीं मानी है. चाचा ने बगावत की तो बीजेपी चुपचाप रही. अब चिराग ने एक इंटरव्यू में राज खोल दिया कि विधानसभा चुनाव में उन्होंने नीतीश के खिलाफ लड़ने का फैसला बीजेपी को लूप में रखकर किया था. संदेश साफ है कि नीतीश ही नहीं, चिराग किसी के सामने हथियार नहीं डालने वाले हैं.
फिलहाल चाचा-भतीजे में जंग जारी है, लेकिन अभी ये देखना बाकी है कि 'बंगला' किसके पास रहेगा, असली एलजेपी किसके पास रहती है और क्या चिराग अपने पिता का नाम रौशन कर पाते हैं?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)