उदयपुर (Udaipur) में कांग्रेस चिंतन शिविर (Congress Chintan Shivir) खत्म हो गया. कश्मीर (Kashmir) से कन्याकुमारी तक की पदयात्रा और एक परिवार-एक टिकट जैसे बड़े फैसले (Congress Big Decisions) इस चिंतन शिविर में किए गए लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इस बहुचर्चित शिवर के बाद पार्टी अपनी समस्याओं को लेकर कुछ आगे बढ़ी है या वहीं खड़ी है जहां थी?
शिविर के बड़े फैसले (Congress Chintan Shivir)
पार्टी में अब एक परिवार-एक पद-एक टिकट फॉर्मूला चलेगा. (परिवार में दूसरे को तभी टिकट मिलेगा जब वो पांच साल पार्टी के लिए काम कर चुका होगा)
पांच साल से ज्यादा एक व्यक्ति एक पद पर नहीं रहेगा
संगठन में हर लेवल पर पचास फीसदी सीटें पचास से कम उम्र के लोगों के लिए रिजर्व रहेंगी
पार्टी कांग्रेस में सुधारों के लिए एक टास्क फोर्स बनाएगी
CWC के कुछ सदस्यों को लेकर पार्टी एक सलाहकार समिति बनाएगी जो चुनौतियों को लेकर सलाह देगी
पार्टी में तीन नए विभाग बनेंगे-चुनाव प्रबंधन, ट्रेनिंग और जनता से फीडबैक
पार्टी अक्टूबर में कन्याकुमारी से कश्मीर तक पदयात्रा करेगी
चिंतन शिविर (Chintan Shivir) में कही गई बातों का मतलब
अगर किसी को इस चिंतन शिविर से कुछ फौरी बड़े बदलावों की उम्मीद थी तो वो निराश हो सकता है. हालांकि निश्चित तौर पर शिविर में कुछ बड़े फैसले किए गए हैं, जिसका आगे असर हो सकता है.
संगठन में 50% सीटें 'जवानों' के लिए बुक करना पार्टी में युवा ऊर्जा फूंक सकता है.
पार्टी पर परिवारवाद का आरोप बीजेपी लगाती आई है, शायद पार्टी ने एक परिवार-एक पद-एक टिकट का फैसला कर उसका जवाब देने की कोशिश की है.
टास्क फोर्स से लेकर सलाहकार समिति में कौन नेताओं को लिया जाता है वो काफी हद तक साफ करेगा कि G23 के 'बागियों' की कितनी सुनी गई. इनमें सदस्यों का चयन और उनकी सलाह पर पार्टी कितना अमल करती है, इसपर निर्भर करेगा कि पार्टी में संगठनात्मक बदलाव की मांग को कितना सुना गया.
बीजेपी और आरएसएस की ''बांटो नीति'' के जवाब में कांग्रेस ''भारत जोड़ो अभियान'' चलाएगी.
बड़े जमाने से पार्टी ने कोई राष्ट्रव्यापी आंदोलन नहीं किया, आंदोलन न सही पदयात्रा इस लिहाज से जनता से जुड़ने का मौका हो सकता है.
राहुल (Rahul Gandhi) का सवाल वहीं
आखिर में नेतृत्व परिवर्तन (गांधी परिवार से नेतृत्व लेना पढ़ें) की मांग मानी जाएगी, इसकी न तो किसी को उम्मीद थी और ऐसा हुआ भी नहीं. असल में शिविर में कई नेताओं ने फिर से मांग उठाई कि राहुल गांधी को अध्यक्ष पद संभालना चाहिए. लेकिन फिलहाल बात वहीं अटकी है, राहुल मानेंगे तो ना?
राहुल भले ही फ्रंट फुट पर बैटिंग नहीं कर रहे हों लेकिन जिस तरह से युवाशक्ति को तवज्जो दी गई है और जिस तरह से एक परिवार-एक पद-एक टिकट का फार्मूला लागू किया गया है, उससे तो यही लगता है कि बल्ला राहुल का ही चला है.
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