मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद कांग्रेस पूरी तरह से सिमटती हुई नजर आई. इसके बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड जैसे राज्यों मे सत्ता हासिल करके लगा कि कांग्रेस की जड़ें इतनी भी कमजोर नहीं हैं. लेकिन मध्य प्रदेश में कांग्रेस के हाथों से सत्ता देखते ही देखते फिसल गई. वहीं अब राजस्थान में भी ये डर पैदा हो गया है. यहां भी सत्ता बचाने के लिए कांग्रेस हर मुमकिन कोशिश में जुटी है. ऐसा पहली बार नहीं है जब कांग्रेस ने अपने हाथ आई सत्ता गंवाई हो, पहले भी कई राज्यों में ये देखने को मिला है.
राजस्थान में संकट के बादल
सबसे पहले ताजा मामले की बात कर लेते हैं. राजस्थान में डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने अचानक बागवत कर दी और कहा कि 30 विधायक उनके पास हैं. इसके बाद सियासी ड्रामा शुरू हुआ और गहलोत ने कहा कि उनके पास 107 विधायकों का समर्थन है. वहीं पायलट को पद से हटा दिया गया. लेकिन इस बीच पायलट ने पत्ते नहीं खोले कि आखिर उनका अगला कदम क्या होने वाला है. फिलहाल सच कोई नहीं जानता. कांग्रेस सरकार पर तलवार लगातार लटक रही है.
मध्य प्रदेश में तख्तापलट
राजस्थान की तरह मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस के एक बड़े नेता ने बगावत की और इसकी कीमत कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोकर चुकानी पड़ी. यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अचानक अपना इस्तीफा दे दिया था. उनके साथ 22 समर्थक विधायक भी कांग्रेस का हाथ छोड़कर निकल पड़े. बीजेपी को बनी बनाई सरकार मिल गई और सिंधिया को पार्टी ने हंसते-हंसते गले लगाया. फ्लोर टेस्ट में कमलनाथ बहुमत साबित नहीं कर पाए और मामा शिवराज ने एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
कर्नाटक में गंवाई सरकार
मध्य प्रदेश से पहले कांग्रेस को एक झटका कर्नाटक में भी लग चुका था. जहां पर कांग्रेस ने जेडीएस के साथ मिलकर सरकार तो बनाई, लेकिन वो ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई. कर्नाटक का नाटक काफी लंबा चला. लगातार बीजेपी पर आरोप लगते रहे कि वो विधायकों को खरीदने की कोशिश कर रही है. कई बार रिजॉर्ट पॉलिटिक्स हुई. लेकिन आखिरकार कांग्रेस-जेडीएस की ये सरकार टिक नहीं पाई और बीजेपी ने राज्य में एक बार फिर कमल खिला दिया. यहां एक साथ 17 कांग्रेस और जेडीएस विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था. जिसके बाद नंबर गेम में येदियुरप्पा बाजी मार गए.
मेघालय में हाथ से फिसली सत्ता
साल 2018 में मेघालय में विधानसभा चुनाव हुए. जिसमें बीजेपी को 60 सीटों में से सिर्फ दो सीटों पर ही जीत मिली. वहीं कांग्रेस ने इस चुनाव में 21 सीटों पर कब्जा किया. इसके बावजूद कांग्रेस के हाथों से सत्ता फिसल गई. यहां कांग्रेस के बड़े नेताओं ने सरकार बनाने की काफी कोशिश की, लेकिन बीजेपी ने महज 2 सीटों के साथ अन्य दलों को अपने साथ आने को तैयार किया और राज्य में गठबंधन की सरकार बनाई. बीजेपी ने पांच दलों और एक निर्दलीय विधायक के समर्थन से सरकार बनाकर कांग्रेस के मुंह से जैसे निवाला छीन लिया हो.
गोवा में नाक के नीचे से गई सरकार, जमकर किरकिरी
अब बात करते हैं गोवा की, जहां कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी. 2017 में हुए चुनाव के दौरान कांग्रेस ने 40 सदस्यीय विधानसभा में 17 सीटों पर कब्जा किया था. जिसके बाद सरकार बनाने के लिए सिर्फ चार और विधायकों की जरूरत थी. यहां कांग्रेस आलाकमान के फैसले का इंतजार ही करती रही और उसके नाक के नीचे से बीजेपी सरकार लेकर चली गई. बीजेपी को गोवा में सिर्फ 13 सीटें मिली थीं, इसके बावजूद उसने दो क्षेत्रीय दलों से बातचीत कर डील फाइनल की और गोवा में अपनी सरकार बनाई. इसे कांग्रेस की बड़ी नाकामी मानी गई थी. जिसके बाद पार्टी की जमकर किरकिरी भी हुई थी.
मणिपुर में भी नहीं बनी बात
मणिपुर में भी कांग्रेस की कुछ यही कहानी रही. 2017 में यहां चुनाव के बाद लग रहा था कि कांग्रेस अपनी पहली सरकार बनाने जा रही है. कांग्रेस ने 60 सदस्यीय विधानसभा में सबसे ज्यादा 28 सीटें जीतीं, लेकिन क्षेत्रीय दलों को अपने साथ नहीं ला पाई. यहां भी बीजेपी की पुरानी पॉलिसी काम आई और उसने एन बिरेन सिंह को सीएम का चेहरा घोषित कर दिया. इसके बाद क्षेत्रीय दलों से समझौता हुआ और मणिपुर में बीजेपी की सरकार बनी. इस बार भी कांग्रेस सबसे ज्यादा विधायक होने के बावजूद मुंह ताकती रह गई.
अरुणाचल का उलटफेर
साल 2016 में कांग्रेस ने अरुणाचल की सरकार भी गंवाई थी. यहां कांग्रेस हर बार किंग बनकर रही थी, लेकिन वही हुआ जो हर राज्य में कांग्रेस के साथ होता आया है. यहां हुआ उलटफेर काफी दिलचस्प था. क्योंकि कांग्रेस के 43 विधायक एक साथ पार्टी छोड़कर पेमा खांडू की अगुवाई में नई पार्टी पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (PPA) में शामिल हो गए. जो पहले इसी पार्टी से कांग्रेस में आए थे. लेकिन बाद में खांडू पर आरोप लगे तो वो पीपीए छोड़कर अपने समर्थक 33 विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी ने मौका लपक लिया और तुरंत सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया.
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