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दिल्ली अध्यादेश के विरोध में AAP के साथ कांग्रेस: 4 वजह से यह फैसला खड़गे का है

Congress Oppose Delhi Ordinance: AAP के लिए बेंगलुरु में होने वाली विपक्ष की बैठक में शामिल होने का रास्ता साफ

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Congress to Oppose Delhi Ordinance: कांग्रेस पार्टी ने रविवार, 16 जुलाई को दिल्ली में केंद्र आकार को सेवाओं का नियंत्रण देने वाले नरेंद्र मोदी सरकार के अध्यादेश का स्पष्ट विरोध करने की घोषणा की. इससे अब आम आदमी पार्टी के लिए बेंगलुरु में 17 जुलाई से शुरू होने वाली विपक्ष की बैठक में शामिल होने का रास्ता साफ हो गया है. AAP ने विपक्षी एकता के किसी भी प्रयास में शामिल होने के लिए अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस के समर्थन की शर्त रख दी थी.

कांग्रेस के अध्यादेश पर समर्थन देने के बाद AAP ने ऐलान किया कि वो 17-18 जुलाई को बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक में शामिल होगी.

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दिल्ली अध्यादेश की खिलाफत की घोषणा कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल ने की, जिन्होंने कहा,

"हमारा रुख स्पष्ट है. हम संघवाद को कमजोर करने के केंद्र के हर प्रयास का विरोध करेंगे."

इसके जवाब में AAP के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने ट्वीट किया, "कांग्रेस ने दिल्ली अध्यादेश का स्पष्ट विरोध करने की घोषणा की है. यह एक पॉजिटिव डेवलपमेंट है."

कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि अध्यादेश का विरोध करने का अंतिम फैसला पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने लिया था. इसके चार पहलू हैं.

1. राजनीति से ऊपर पार्टी का सिद्धांत

खड़गे के एक करीबी सूत्र ने कहा, ''कांग्रेस अध्यक्ष ने राजनीति के बजाय सिद्धांत/ principle को चुना है.''

कांग्रेस की दिल्ली और पंजाब इकाइयां अध्यादेश पर AAP के साथ सहयोग करने के पक्ष में नहीं थीं. लेकिन खड़गे संघवाद को कांग्रेस के राष्ट्रीय अभियान में एक प्रमुख विषय के रूप में देखते हैं और इसलिए, उन्होंने इसे प्राथमिकता देने का विकल्प चुना.

यह सामान्य तौर पर खड़गे की निर्णय प्रक्रिया के अनुरूप है. सिद्धारमैया को कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में चुनते समय भी, खड़गे ने सिद्धारमैया के साथ अपने पुराने इतिहास को अलग रखा. वजह यह थी कि सिद्धारमैया सामाजिक गठबंधन के दृष्टिकोण से सबसे लोकप्रिय विकल्प और महत्वपूर्ण दोनों थे.

2. टाइमिंग महत्वपूर्ण है

पटना में हुई विपक्ष की बैठक में AAP ने इस बात पर जोर दिया था कि कांग्रेस अध्यादेश पर अपना रुख स्पष्ट करे. कांग्रेस ने उस समय मांग मानने से इनकार कर दिया था और कहा था कि यह बैठक के एजेंडे का हिस्सा नहीं था.

कांग्रेस ने इस निर्णय की घोषणा करने में अपना समय लिया, हालांकि सूत्रों का कहना है कि खड़गे ने बहुत पहले ही अपना मन बना लिया था.

माना जा रहा है कि देरी मुख्य रूप से इसलिए हुई क्योंकि कांग्रेस यह संदेश देना चाहती थी कि उसे ब्लैकमेल नहीं किया जा सकता.

फिर, यह निर्णय लेने में जल्दबाजी न करने के खड़गे के दृष्टिकोण के अनुरूप भी है. उदाहरण के लिए, पार्टी के राजस्थान संकट के संबंध में, खड़गे ने सचिन पायलट के बयानों के बावजूद कई हफ्तों तक उनसे संपर्क नहीं किया. उन्होंने इसपर बात करने के लिए अपना समय लिया.

3. अध्यादेश विरोधी लेकिन AAP समर्थक नहीं

भले ही कांग्रेस ने अध्यादेश का विरोध करने का फैसला किया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह AAP का समर्थन है.

AAP के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया था कि उन्होंने अध्यादेश पर चर्चा के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व प्रमुख राहुल गांधी से समय मांगा है. हालांकि पार्टी ने केजरीवाल को समय नहीं दिया.

जाहिर तौर पर, यह इनकार पार्टी की पंजाब और दिल्ली इकाइयों की चिंताओं को उचित सम्मान देने के लिए था.
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4. विपक्षी 'गठबंधन' के भीतर संतुलन बनाना

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि निर्णय इसपर होना ही नहीं था कि अध्यादेश का समर्थन करना है या नहीं. मुख्य रूप से निर्णय सिर्फ इसपर लेना था कि सामने आकर इसका विरोध करना है या दूरी बनाते हुए वोटिंग से अनुपस्थित रहना है.

यदि कांग्रेस अनुपस्थित रहती, तो इससे राज्यसभा में विधेयक का पारित होना तय हो जाता.

इसके परिणामस्वरूप विपक्ष के भीतर अविश्वास पैदा हो सकता था, क्योंकि पटना बैठक में भाग लेने वाले अन्य सभी दल अध्यादेश का विरोध करने के लिए सहमत हुए थे.

अब कांग्रेस ने इसके खिलाफ खुलकर सामने आकर ऐसा होने से रोक दिया है. लेकिन अपना समय लेना पार्टी का यह दिखाने का तरीका भी था कि उसे इस विपक्षी 'गठबंधन' में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

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