छत्तीसगढ़ के नया रायपुर में कांग्रेस का 85 वां महाधिवेशन (Congress 85th Plenary Session) खत्म हो गया. इस अधिवेशन में कई बड़े निर्णय लिए गए हैं. 9 राज्यों में विधानसभा और लोकसभा चुनाव से पहले ये कांग्रेस की सबसे बड़ी बैठक मानी जा रही थी. देश भर से लगभग 15000 से ज्यादा कांग्रेसी पदाधिकारी यहां पहुंचे थे. अधिवेशन में शराब पर लगी पाबंदी हटने से लेकर पार्टी की उच्चतम कमिटी में महिलाओं युवाओं दलितों पिछड़ों और आदिवासियों की भागीदारी बढ़ाने तक क्या-क्या फैसले लिए गए और इसके क्या मायने हैं? यहां समझने की कोशिश करते हैं.
सबसे पहले आपको बताते हैं इस अधिवेशन के 5 बड़े फैसले
कांग्रेस कार्यसमिति (CWC), जो सबसे अहम कमेटी होती है उसके चुनाव नहीं हुए, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को सदस्य चुनने का अधिकार दिया गया है.
इसी CWC में अब 50 परसेंट सीटें युवाओं महिलाओं दलितों आदिवासियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए रिजर्व रहेंगी.
तीसरा बड़ा फैसला कांग्रेस के संगठन को और व्यवस्थित करने का लिया गया है, जिसमें अब मंडल और जिला स्तर पर बनी बहुत सारी कमेटियों की जगह 4 कमेटियों का गठन होगा.
कांग्रेस ने 2025 से सब कुछ डिजिटल पर शिफ्ट करने की बात कही है. इसमें मेंबरशिप से लेकर पार्टी की सारी गतिविधियां शामिल होंगी. इसके अलावा मेंबरशिप फॉर्म में ट्रांसजेंडर का कॉलम बढ़ाया गया है और माता और पत्नी के नाम भी जोड़ा जाएगा.
इसके साथ ही एआईसीसी मेंबर्स की संख्या भी बढ़ाई जाने की बात की है.
पार्टी पर समावेशी नीति का प्रभाव
लगभग हर निर्णय में कांग्रेस पार्टी ने इस बार युवाओं की भागीदारी बढ़ाने और हर जातिवर्ग को साथ लेकर चलने के प्रयासों पर बल दिया है. कांग्रेस की CWC में पार्टी के युवा नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश है, महिलाओं और बाकी समाज के वर्गों को भी साधने की कोशिश की जा रही है.
गांधी मुक्त पार्टी होने के नैरेटिव को सेट करने की कोशिश
इसके अलावा पार्टी ने गांधी मुक्त पार्टी होने के नैरेटिव को सेट करने की कोशिश की है. दरअसल, अधिवेशन की शुरुआत में जहां पर स्टीयरिंग कमेटी ने निर्णय लिया की वर्किंग कमेटी के लिए चुनाव नहीं होंगे बल्कि पार्टी प्रेसिडेंट खड़गे मनोनीत करेंगे, उस बैठक से गांधी परिवार का नदारद रहना पार्टी की छवि को स्वतंत्र बनाने की ओर एक कदम बढ़ता हुआ जान पड़ता है.
सोनिया गांधी के फैसले हो या फिर राहुल गांधी के बयान. पिछले कुछ महीनों में गांधी परिवार ने पुरजोर तरीके से यह संदेश देने की कोशिश की कि कांग्रेस पर गांधी परिवार का प्रभाव नहीं है. पार्टी के बड़े फैसले गांधी परिवार इफेक्ट से फ्री होकर किए जाते हैं.
हिंदी भाषी क्षेत्रों में मध्य भारत में कांग्रेस का फोकस
कांग्रेस ने अपना अधिवेशन छत्तीसगढ़ में आयोजित कराकर मध्य भारत के अपने वोटर को और भी ज्यादा मजबूत करने की कोशिश की है. हिंदी बेल्ट में मध्य भारत में कांग्रेस का बड़ा वोटर है. इसके अलावा छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश और राजस्थान में इसी वर्ष अंत में चुनाव होने हैं ऐसे में महाधिवेशन के जरिए यहां के कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कवायद दिखी.
पिछले चुनावों के रिकॉर्ड देखें तो हिंदी क्षेत्रों में राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ ही ऐसी जगहें हैं जहां कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी है. इस सूची में हरियाणा को भी जोड़ सकते हैं.
इसके अलावा भी कांग्रेस के इस अधिवेशन में कई निर्णय लिए गए हैं फिर चाहे वो जम्मू कश्मीर को दोबारा राज्य बनाने की बात हो या फिर इंडिया चाइना रिश्तों की बात. हालांकि 2023 विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों की रणनीति बनाने के दावों के बीच कांग्रेस द्वारा उठाए गए कदम कितने सफल रहेंगे ये तो वक्त ही बताएगा.
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