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परिसीमन क्या होता है? महिला आरक्षण के लागू होने के लिए इसकी जरूरत क्यों?| Explained

Women's Reservation Bill के पारित होने का मतलब यह नहीं है कि जल्द यह आरक्षण वास्तव में लागू भी होगा.

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नारी शक्ति वंदन अधिनियम यानी संविधान (128वां संशोधन) विधेयक, 2023 को संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा ने पारित कर दिया गया है. यह बिल लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण (Women Reservation Bill) प्रदान करता है.

लेकिन महिला आरक्षण बिल के पारित होने का मतलब यह नहीं है कि जल्द यह आरक्षण लागू भी होगा.

विधेयक का वास्तव में लागू होना कई फैक्टर्स पर निर्भर करता है

इस विधेयक का पूरी तरह से वास्तव में लागू होना कई फैक्टर्स पर निर्भर करता है. स्वयं गृह मंत्री अमित शाह ने भी लोकसभा में बोलते हुए यह स्वीकार किया कि जनगणना और परिसीमन प्रक्रिया (Delimitation) के बाद विधेयक 2029 तक ही लागू किया जाएगा.

महिला आरक्षण से संबंधित ‘संविधान (128वां संशोधन) विधेयक' के बिंदु 5 में स्पष्ट लिखा है कि इसके कानून बनने के बाद होने वाली जनगणना के आंकड़ों को पूरा करने के बाद परिसीमन होगा और परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही महिला आरक्षण बिल प्रभाव में आएगा.

साल 2021 जनगणना में होनी थी, लेकिन कोविड महामारी के कारण यह न हो पाया. अब यह कब होगी, इस पर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है. लेकिन जनगणना होने के बाद भी परिसीमन ही यह तय करने में अहम भूमिका निभाएगा कि कौन सी सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी. यह एक पेचीदा और लंबी प्रक्रिया हो सकती है.

इसी सिलसिले में आइए जानते हैं परिसीमन क्या है? महिला आरक्षण विधेयक का जमीन पर लागू होना इससे क्यों जुड़ा है?

परिसीमन क्या होता है? महिला आरक्षण के लागू होने के लिए इसकी जरूरत क्यों?| Explained

  1. 1. परिसीमन या Delimitation क्या है?

    जनसंख्या परिवर्तन का पता लगाने के अलावा परिसीमन का उद्देश्य भौगोलिक क्षेत्रों को चुनावी सीटों में निष्पक्ष रूप से बांटना भी है, ताकि किसी भी राजनीतिक पार्टी को अनुचित लाभ न हो.

    परिसीमन लेटेस्ट जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार लोकसभा और राज्य विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों को फिर से बांटने या तैयार करने का कार्य और प्रक्रिया है. चुनाव आयोग की वेबसाइट बताती है कि परिसीमन का शाब्दिक अर्थ है किसी देश या विधायी निकाय वाले प्रांत में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं तय करने का कार्य या प्रक्रिया.

    बढ़ती जनसंख्या के आधार पर वक्त-वक्त पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं दोबारा निर्धारित करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहते हैं.

    समय के साथ किसी भी क्षेत्र की जनसंख्या में बदलाव होना स्वाभाविक है. इसलिए परिसीमन के जरिए बदली हुई आबादी को समान रूप से प्रतिनिधित्व दिया जाता है. परिसीमन के तहत आबादी का सही प्रतिनिधित्व हो सके, इसलिए लोकसभा अथवा विधानसभा सीटों के क्षेत्र को दोबारा से परिभाषित या उनका पुनर्निधारण किया जाता है.

    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 81 में कहा गया है कि राज्य को आवंटित लोकसभा सीटों की संख्या राज्य की जनसंख्या के अनुपात में होगी. यह अनुपात सभी राज्यों के लिए यथासंभव समान रखने का प्रयास किया जाता है.

    राज्यों के भीतर निर्वाचन क्षेत्रों के बारे में भी यही कहा गया है.

    किसी भी महिला आरक्षण को लागू करने के लिए परिसीमन को एक पूर्व-आवश्यकता के रूप में देखा जाता है. क्योंकि मनमाने ढंग से यह तय नहीं किया जा सकता है कि कौन सी 1/3 सीटें महिला उम्मीदवारों के लिए 'आरक्षित/रिजर्व' होंगी और कौन सी नहीं. इसलिए, एक तटस्थ और स्वतंत्र निकाय यह काम करेगी, जो एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है.

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  2. 2. परिसीमन कैसे किया जाता है?

    संविधान कहता है कि हर जनगणना के बाद परिसीमन किया जाना चाहिए. संविधान का अनुच्छेद 82 ("प्रत्येक जनगणना के बाद पुनर्समायोजन") यह आदेश देता है कि लोकसभा में "प्रत्येक राज्य के लिए सीटों के आवंटन" में "पुनर्समायोजन" हो, और "प्रत्येक जनगणना के पूरा होने पर" प्रत्येक राज्य को निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाए. अनुच्छेद 170, 330, और 332 भी निर्वाचन क्षेत्र के पुन:समायोजन/पुनर्निर्धारण की समान आवश्यकता को दोहराते हैं.

    अब, परिसीमन को वास्तव में पूरा करने के लिए, संसद को एक कानून बनाना होगा जो एक परिसीमन आयोग को अपना काम शुरू करने के लिए अधिकार देगा. यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 327 द्वारा संसद को दी गई शक्तियों के अनुसार किया जाता है.

    इस तरह के कानून के पास होने के बाद एक परिसीमन आयोग की स्थापना की जाएगी, जो परिसीमन की प्रक्रिया को अंजाम देगा.

    परिसीमन आयोग का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज करते हैं और इसके सदस्यों में मुख्य चुनाव आयुक्त सहित चुनाव आयोग के कर्मचारी शामिल होंगे. परिसीमन आयोग के आदेश कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं, और इन्हें संसद या किसी अन्य निकाय द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता है.

    एक बार परिसीमन आयोग की मसौदा रिपोर्ट तैयार हो जाने के बाद, निकाय इसे भारत के राजपत्र में प्रकाशित करता है और जनता से आवश्यक फीडबैक, मांगता है. फिर फीडबैक को अंतिम रिपोर्ट में शामिल किया जाता है, और राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित होने के बाद परिवर्तन लागू हो जाते हैं.

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  3. 3. परिसीमन में देरी क्यों हो रही है? 

    अब तक पांच बार देश में परिसीमन प्रक्रिया हुई है. साल 1952, 1963 ,1973 और 2002 में परिसीमन प्रक्रिया हुई थी. 1971 की जनगणना के आधार पर 1972 में परिसीमन की प्रक्रिया को पूरा किया गया था. इसके परिसीमन के बाद लोकसभा सीटों की संख्या 489 से बढ़ाकर 543 कर दी गई थी.

    हरेक परिसीमन में जनगणना डेटा का अध्ययन शामिल है - व्यापक राज्य-वार डेटा से लेकर विस्तृत ग्राम पंचायत स्तर के डेटा तक. यह अपेक्षित रूप से एक समय लेने वाली गतिविधि है. इसमें दो साल तक का समय लग सकता है. जनगणना, जो 2021 में होने वाली थी, अब 2024 के चुनावों के बाद ही होगी.

    लेकिन पिछली राजनीतिक चिंताओं से जुड़ी एक और चेतावनी है, जो परिसीमन प्रक्रिया में और देरी कर सकती है.

    जम्मू और कश्मीर और असम में राष्ट्रीय परिसीमन से अलग परिसीमन अभ्यास किया गया है. इन दोनों जगहों पर इस प्रक्रिया को विपक्षी दलों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है.

    जम्मू और कश्मीर में, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी जैसी पार्टियों ने आरोप लगाया है कि परिसीमन आयोग "अपने जनादेश से परे" गया और "कश्मीर घाटी को और अधिक कमजोर करने" के लिए काम किया.

    असम में भी इसी प्रकार की आलोचना की गई. AIUDF ने आरोप लगाया है कि राज्य में मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या कम कर दी गई है. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण एकरूपता को ध्यान में रखे बिना, मनमाने ढंग से किया गया है.

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  4. 4. परिसीमन को लेकर राजनीतिक चिंताएं

    1976 में इंदिरा गांधी ने लोकसभा और विधानसभाओं के परिसीमन पर रोक लगा दी थी. सीटों की संख्या पर यह रोक 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा बढ़ा दी गई थी, जिसने अपने संशोधन में कहा था कि "विभिन्न राज्यों में परिवार नियोजन की प्रगति को ध्यान में रखते हुए", परिसीमन पर वर्तमान रोक को बढ़ाने का निर्णय लिया गया है. राज्य सरकार को जनसंख्या स्थिरीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाने के लिए एक प्रेरक उपाय के रूप में वर्ष 2026 तक नया परिसीमन किया जाएगा.

    इसका प्रभावी रूप से मतलब यह है कि परिसीमन की कवायद 2026 के बाद तक शुरू नहीं की जा सकती है. इसके बाद भी इसे तेजी से प्रक्रिया में लाने की जरूरत है, ताकि 2029 के लोकसभा चुनावों के लिए इसे लागू किया जा सके.

    कई दक्षिण भारतीय राज्यों के नेताओं ने परिसीमन की प्रक्रिया पर आपत्ति जतायी है और इसे संभावित रूप से अनुचित बताया है.

    तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि यह अन्यायपूर्ण है कि दक्षिणी राज्य ने जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार की नीतियों का पूरी मेहनत से पालन किया है, और बदले में उन्हें निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन के दौरान दंडात्मक उपायों का सामना करना पड़ेगा.

    अधिकांश उत्तर भारतीय राज्यों की जनसंख्या दक्षिण भारतीय राज्यों की तुलना में काफी अधिक है. इस प्रकार यह डर है कि परिसीमन अभ्यास के हिस्से के रूप में दक्षिणी राज्यों की सीटें लोकसभा में कम हो सकती हैं.

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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परिसीमन या Delimitation क्या है?

जनसंख्या परिवर्तन का पता लगाने के अलावा परिसीमन का उद्देश्य भौगोलिक क्षेत्रों को चुनावी सीटों में निष्पक्ष रूप से बांटना भी है, ताकि किसी भी राजनीतिक पार्टी को अनुचित लाभ न हो.

परिसीमन लेटेस्ट जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार लोकसभा और राज्य विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों को फिर से बांटने या तैयार करने का कार्य और प्रक्रिया है. चुनाव आयोग की वेबसाइट बताती है कि परिसीमन का शाब्दिक अर्थ है किसी देश या विधायी निकाय वाले प्रांत में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं तय करने का कार्य या प्रक्रिया.

बढ़ती जनसंख्या के आधार पर वक्त-वक्त पर निर्वाचन क्षेत्र की सीमाएं दोबारा निर्धारित करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहते हैं.

समय के साथ किसी भी क्षेत्र की जनसंख्या में बदलाव होना स्वाभाविक है. इसलिए परिसीमन के जरिए बदली हुई आबादी को समान रूप से प्रतिनिधित्व दिया जाता है. परिसीमन के तहत आबादी का सही प्रतिनिधित्व हो सके, इसलिए लोकसभा अथवा विधानसभा सीटों के क्षेत्र को दोबारा से परिभाषित या उनका पुनर्निधारण किया जाता है.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 81 में कहा गया है कि राज्य को आवंटित लोकसभा सीटों की संख्या राज्य की जनसंख्या के अनुपात में होगी. यह अनुपात सभी राज्यों के लिए यथासंभव समान रखने का प्रयास किया जाता है.

राज्यों के भीतर निर्वाचन क्षेत्रों के बारे में भी यही कहा गया है.

किसी भी महिला आरक्षण को लागू करने के लिए परिसीमन को एक पूर्व-आवश्यकता के रूप में देखा जाता है. क्योंकि मनमाने ढंग से यह तय नहीं किया जा सकता है कि कौन सी 1/3 सीटें महिला उम्मीदवारों के लिए 'आरक्षित/रिजर्व' होंगी और कौन सी नहीं. इसलिए, एक तटस्थ और स्वतंत्र निकाय यह काम करेगी, जो एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है.

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परिसीमन कैसे किया जाता है?

संविधान कहता है कि हर जनगणना के बाद परिसीमन किया जाना चाहिए. संविधान का अनुच्छेद 82 ("प्रत्येक जनगणना के बाद पुनर्समायोजन") यह आदेश देता है कि लोकसभा में "प्रत्येक राज्य के लिए सीटों के आवंटन" में "पुनर्समायोजन" हो, और "प्रत्येक जनगणना के पूरा होने पर" प्रत्येक राज्य को निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाए. अनुच्छेद 170, 330, और 332 भी निर्वाचन क्षेत्र के पुन:समायोजन/पुनर्निर्धारण की समान आवश्यकता को दोहराते हैं.

अब, परिसीमन को वास्तव में पूरा करने के लिए, संसद को एक कानून बनाना होगा जो एक परिसीमन आयोग को अपना काम शुरू करने के लिए अधिकार देगा. यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 327 द्वारा संसद को दी गई शक्तियों के अनुसार किया जाता है.

इस तरह के कानून के पास होने के बाद एक परिसीमन आयोग की स्थापना की जाएगी, जो परिसीमन की प्रक्रिया को अंजाम देगा.

परिसीमन आयोग का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज करते हैं और इसके सदस्यों में मुख्य चुनाव आयुक्त सहित चुनाव आयोग के कर्मचारी शामिल होंगे. परिसीमन आयोग के आदेश कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं, और इन्हें संसद या किसी अन्य निकाय द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता है.

एक बार परिसीमन आयोग की मसौदा रिपोर्ट तैयार हो जाने के बाद, निकाय इसे भारत के राजपत्र में प्रकाशित करता है और जनता से आवश्यक फीडबैक, मांगता है. फिर फीडबैक को अंतिम रिपोर्ट में शामिल किया जाता है, और राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित होने के बाद परिवर्तन लागू हो जाते हैं.

परिसीमन में देरी क्यों हो रही है? 

अब तक पांच बार देश में परिसीमन प्रक्रिया हुई है. साल 1952, 1963 ,1973 और 2002 में परिसीमन प्रक्रिया हुई थी. 1971 की जनगणना के आधार पर 1972 में परिसीमन की प्रक्रिया को पूरा किया गया था. इसके परिसीमन के बाद लोकसभा सीटों की संख्या 489 से बढ़ाकर 543 कर दी गई थी.

हरेक परिसीमन में जनगणना डेटा का अध्ययन शामिल है - व्यापक राज्य-वार डेटा से लेकर विस्तृत ग्राम पंचायत स्तर के डेटा तक. यह अपेक्षित रूप से एक समय लेने वाली गतिविधि है. इसमें दो साल तक का समय लग सकता है. जनगणना, जो 2021 में होने वाली थी, अब 2024 के चुनावों के बाद ही होगी.

लेकिन पिछली राजनीतिक चिंताओं से जुड़ी एक और चेतावनी है, जो परिसीमन प्रक्रिया में और देरी कर सकती है.

जम्मू और कश्मीर और असम में राष्ट्रीय परिसीमन से अलग परिसीमन अभ्यास किया गया है. इन दोनों जगहों पर इस प्रक्रिया को विपक्षी दलों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है.

जम्मू और कश्मीर में, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी जैसी पार्टियों ने आरोप लगाया है कि परिसीमन आयोग "अपने जनादेश से परे" गया और "कश्मीर घाटी को और अधिक कमजोर करने" के लिए काम किया.

असम में भी इसी प्रकार की आलोचना की गई. AIUDF ने आरोप लगाया है कि राज्य में मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या कम कर दी गई है. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण एकरूपता को ध्यान में रखे बिना, मनमाने ढंग से किया गया है.

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परिसीमन को लेकर राजनीतिक चिंताएं

1976 में इंदिरा गांधी ने लोकसभा और विधानसभाओं के परिसीमन पर रोक लगा दी थी. सीटों की संख्या पर यह रोक 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा बढ़ा दी गई थी, जिसने अपने संशोधन में कहा था कि "विभिन्न राज्यों में परिवार नियोजन की प्रगति को ध्यान में रखते हुए", परिसीमन पर वर्तमान रोक को बढ़ाने का निर्णय लिया गया है. राज्य सरकार को जनसंख्या स्थिरीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाने के लिए एक प्रेरक उपाय के रूप में वर्ष 2026 तक नया परिसीमन किया जाएगा.

इसका प्रभावी रूप से मतलब यह है कि परिसीमन की कवायद 2026 के बाद तक शुरू नहीं की जा सकती है. इसके बाद भी इसे तेजी से प्रक्रिया में लाने की जरूरत है, ताकि 2029 के लोकसभा चुनावों के लिए इसे लागू किया जा सके.

कई दक्षिण भारतीय राज्यों के नेताओं ने परिसीमन की प्रक्रिया पर आपत्ति जतायी है और इसे संभावित रूप से अनुचित बताया है.

तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि यह अन्यायपूर्ण है कि दक्षिणी राज्य ने जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार की नीतियों का पूरी मेहनत से पालन किया है, और बदले में उन्हें निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन के दौरान दंडात्मक उपायों का सामना करना पड़ेगा.

अधिकांश उत्तर भारतीय राज्यों की जनसंख्या दक्षिण भारतीय राज्यों की तुलना में काफी अधिक है. इस प्रकार यह डर है कि परिसीमन अभ्यास के हिस्से के रूप में दक्षिणी राज्यों की सीटें लोकसभा में कम हो सकती हैं.

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