झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों में से धनबाद का चुनाव (Dhanbad Lok Sabha Election 2024) इस बार कई वजहों से सुर्खियों में है. बीजेपी के गढ़ में ही पार्टी के उम्मीदवार ढुलू महतो चौतरफा घिरे हैं. यहां जातीय गोलबंदी को लेकर जारी दांव-पेंच और मजदूर यूनियनों की सक्रियता से समीकरणों का बनना-बिगड़ना जारी है.
इन सबके बीच बीजेपी के उम्मीदवार ढुलू महतो को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद उनकी ‘छवि’ को लेकर उठे सवाल, चुनावों के आखिरी वक्त तक उनका पीछा नहीं छोड़ रहे.
जाहिर तौर पर बीजेपी में अपने गढ़ बचाने की कवायद जोर पकड़ी है. प्रचार के आखिरी तक बड़े नेताओं की ताबड़तोड़ सभा, इसकी तस्दीक करती रही.
बीजेपी प्रदेश नेतृत्व द्वारा धनबाद से बीजेपी के विधायक राज सिन्हा और पांच मंडल अध्यक्षों को किए शो-कॉज ने चुनावी सियासत में अलग खदबदाहट पैदा कर दी है. इसके राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं.
शो-कॉज के जरिए पार्टी ने पूछा है कि विधायक राज सिन्हा सांगठनिक और चुनावी कार्य में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे. साथ ही पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ नकारात्मक माहौल बना रहे हैं.
दरअसल 19 मई को धनबाद में मतदाता जागरूकता अभियान को लेकर आयोजित सामाजिक प्रतिनिधियों की बैठक में राज सिन्हा भी शामिल हुए थे. इसमें उन्होंने आह्वान किया था, “मतदान जरूर करें, साथ ही बुद्धिजीवी वर्ग उम्मीदवारों के गुण-दोष और छवि को कसौटी पर जरूर कसें. कोई ऐसा निर्णय नहीं लें कि भविष्य में झेलना पड़े.”
कारण बताओ नोटिस जारी होने के बाद बीजेपी विधायक का मीडिया में बयान भी सामने आया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि पार्टी को किसी ने उनके प्रति गलत फीडबैक दिया है. वे बीजेपी उम्मीदवार ढुलू महतो के समर्थन में लगातार प्रचार कर रहे हैं और मंडल की बैठकों में भी हिस्सा लेते रहे हैं.
25 मई को वोट, ताकत झोंकी
लोकसभा चुनावों के छठे चरण में 25 मई को धनबाद में वोट है. कांग्रेस ने यहां अनुपमा सिंह को मैदान में उतारा है.
राजनीतिक परिवार से ताल्लुकात रखने वालीं अनुपमा सिंह इस चुनाव के साथ ही सार्वजनिक जीवन में शामिल हुई हैं. वे पूर्व मंत्री दिवंगत राजेंद्र सिंह की पुत्रवधू और बेरमो से कांग्रेस के वर्तमान विधायक कुमार जयमंगल की पत्नी हैं.
अनुपमा की चुनावी कमान कुमार जयमंगल ही संभाल रहे हैं. कांग्रेस के सामने 20 साल बाद इस सीट पर वापसी की चुनौती है.
कोयले की खदानों को लेकर धनबाद को भारत की कोयला राजधानी के नाम से भी जाना जाता है. इनके अलावा, कई ख्याति प्राप्त औद्योगिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य संस्थान भी यहां हैं.
कोयले की खदानें धनबाद की अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी हैं. साथ ही कोयले की खान के इर्द- गिर्द राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने की होड़ से भी यह इलाका प्रभावित रहा है.
कौन हैं ढुलू और क्यों हैं चर्चे?
बीजेपी ने धनबाद से लगातार तीन बार (2009-2024) के सांसद पीएन सिंह का टिकट काटकर इस बार ढुलू महतो को मैदान में उतारा है.
75 साल के पीएन सिंह धनबाद से तीन बार विधायक और झारखंड सरकार में मंत्री भी रहे हैं. झारखंड प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष की भी जिम्मेदारी वे संभाल चुके हैं.
सांसद पीएन सिंह की बेदाग छवि रही है. कोयलाचंल में एक कॉमनमैन के साथ उन्हें ‘भाई जी’ के नाम से भी जाना जाता है.
ढुलू महतो बाघमारा विधानसभा क्षेत्र से तीन टर्म के विधायक हैं. वैसे धनबाद जिले का हिस्सा बाघमारा विधानसभा क्षेत्र गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में शामिल है.
उन्हें बीजेपी का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद राजनीतिक हलके में कई किस्म की चर्चा के बीच नया मोड़ तब आया था, जब 28 मार्च को बीजेपी के एक समर्थक और धनबाद जिला मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष कृष्णा अग्रवाल ने झारखंड प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को एक पत्र लिखकर अनुरोध किया कि ढुल्लू महतो को उम्मीदवार बनाये जाने के मामले में पार्टी पुनर्विचार करे.
अग्रवाल ने ढुल्लू महतो के खिलाफ 49 आपराधिक मुकदमे और कई मामलों में सजा की चर्चा करते हुए पत्र में यह भी कहा था, ‘’माफिया के खिलाफ बोलने का दावा करने वाले विधायक खुद माफिया का एक संस्करण बन गए हैं.’’
जब सरयू राय ने मोर्चा खोला
इसके बाद जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय विधायक सरयू राय ने इसी मामले में ढुल्लू महतो और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोलकर धनबाद की राजनीतिक तपिश को बढ़ा दिया.
उस दौर में ये अटकलें भी तेज थी कि सरयू राय धनबाद से चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन वे मैदान में नहीं उतरे.
हालांकि, पिछले दो महीने से सरयू राय लगातार धनबाद आते- जाते रहे हैं. अलग- अलग सामाजिक संगठनों, प्रबुद्ध वर्ग और यूनियन के प्रतिनिधियों के साथ उनकी मुलाकातें भी सुर्खियों में रही हैं.
ढुलू महतो पर दर्ज केस का पिटारा खोल कर बैठे सरयू राय प्रेस कांफ्रेस में और अपने ऑफिशियल सोशल हैंडल पर बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ कथित तौर पर आतंक के आरोपों को लगातार उछालते रहे हैं.
धनबाद से बीजेपी विधायक राज सिन्हा को पार्टी द्वारा कारण बताओ नोटिस दिए जाने पर भी सरयू राय ने कड़ी टिप्पणी कर बीजेपी पर सवाल खड़े किए हैं. लिहाजा, सरयू राय भी राजनीतिक दृष्टिकोण से धनबाद में एक कोण बने हुए हैं.
सुधारों के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने ढुल्लू महतो द्वारा लोकसभा चुनावों में नामाकंन के समय दी गई जानकारी के आधार पर विश्लेषनात्मक रिपोर्ट में बताया है कि उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की अलग-अलग धाराओं में 20 मामलें अदालतों में लंबित हैं.
इनमें कई मामलों में संगीन धाराएं लगी हुई हैं. जबकि धनबाद की दो अलग-अलग अदालतों ने दो अलग-अलग मामलों में एक- एक साल की सजा सुनाई है.
हालांकि ढुल्लू महतो और पार्टी के कई नेता इन आरोपों को खारिज करते रहे हैं.
उनका कहना है कि ढुल्लू महतो अपने क्षेत्र के लोगों के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ते हैं, तो राजनीतिक विरोधियों को यह अच्छा नहीं लगता है.
इन आरोपों की वजहों से चुनाव प्रचार के दौरान कई मौके पर ढुलू महतो की तल्ख टिप्पणियां भी सामने आती रही हैं.
इन टिप्पणियों के चलते सांसद पीएन सिंह और विधायक राज सिन्हा समेत बीजेपी के कोर कैडर असहज और आहत भी महसूस करते रहे हैं.
धनबाद में बीजेपी का बेस और समीकरण
धनबाद लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा सीट हैं. इनमें पांच पर बीजेपी का कब्जा और एक सीट- झरिया में कांग्रेस का कब्जा है.
वोटरों के लिहाज से यह झारखंड में सबसे बड़ी सीट है. यहां 22 लाख 40, 276 वोटर है. इस सीट पर उम्मीदवारों की किस्मत तय करने के लिए शहरी के साथ ग्रामीण इलाके के वोटरों की भी भूमिका अहम रही है. इसके अलावा कोयला मजदूरों का समर्थन और यूनियनों की सक्रियता भी मायने रखती है.
मार्क्सवादी चिंतक और मजदूर आंदोलन के बड़े नेता कॉमरेड एके राय के नाम भी इस सीट से तीन बार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड रहा है.
हालांकि, 90 के दशक से लाल झंडे का उभार इस इलाके में कमजोर पड़ता गया.
1991 में रीता वर्मा की जीत के साथ धनबाद में बीजेपी की एंट्री हुई थी. इसके बाद रीता वर्मा 1996, 1998, 1999 में भी चुनाव जीतीं.
2004 में कांग्रेस ने चंद्रशेखर दूबे ने बीजेपी का विजय रथ रोका, लेकिन 2009 से फिर पीएन सिंह ने लगातार तीन बार जीत दर्ज की. इन कारणों से धनबाद को बीजेपी का गढ़ भी माना जाता है.
कांग्रेस भी समीकरणों को साध रही
इस बार कोयला मजदूरों का समर्थन हासिल करने के लिए भी बीजेपी और कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ रही. कांग्रेस उम्मीदवार अनुपमा सिंह के पति कुमार जयमंगल खुद इंटक से जुटे हैं.
इधर, झरिया से बीजेपी के पूर्व विधायक संजीव सिंह के भाई और जनता मजदूर यूनियन के महामंत्री सिद्धार्थ गौतम के कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में मैदान संभाल रहे हैं. इससे अनुपमा सिंह को बल मिलता दिख रहा है.
कांग्रेस उम्मीदवार और पार्टी के रणनीतिकारों की नजर ढुलू महतो की उम्मीदवारी से नाराज नेताओं और वोटरों को साधने पर है.
हवाओं का रुख भांपते हुए अनुपमा सिंह प्रबुद्ध वर्ग तक पहुंचने की कोशिशें करती रही हैं.
कांग्रेस इन कोशिशों में भी जुटी है कि उसके वोट बैंक में सवर्णों और व्यवसायियों का फैक्टर भी जुड़ जाए तो उसकी चुनावी नैया पार लग जाएगी.
इस बार व्यवसायियों का एक बड़ा वर्ग और संगठनों की भी चुनाव के समीकरणों पर बारीक नजर है.
जातीय गोलबंदी की बहती हवाएं
इनके अलावा, जातीय गोलबंदी के लिए चुनावी बिसात पर तेजी से गोटियां बिछाई जा रही हैं. जातीय समीकरणों के लिहाज से इस सीट पर ओबीसी, सवर्ण, मुस्लिम और अनुसूचित जाति का प्रभाव रहा है. ढुलू वैश्य समुदाय से जबकि अनुपमा सिंह राजपूत समुदाय से आती हैं.
पीएन सिंह का टिकट कटने के बाद शुरुआती दौर में एक बड़े वर्ग में नाराजगी और समीकरणों को बीजेपी तेजी से पहचानने और अपने पक्ष में करने में जुट गई थी, लेकिन चुनाव का वक्त नजदीक आने के साथ तफरका फिर से सतह पर आया है.
बीजेपी और कांग्रेस के इस जोर-आजमाइश में पर्दे के पीछे से जारी दांव-पेंच किसी का खेल बनाने और किसी का खेल बिगाड़ने में बेहद अहम हो गया है.
राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी हथियार के तौर पर इस्तेमाल की जाती है और जिसकी धार ज्यादा होती है, इसका इस्तेमाल पहले होता है. धनबाद के संग्राम में इस हथियार का इस्तेमाल दोनों तरफ होता दिख रहा है.
ऐसे में अपनों और विरोधियों से चौतरफा घिरे ढुल्लू महतो अपना दमखम तो लगा ही रहे हैं, पार्टी के वोट बैंक और सबसे बड़े ब्रांड मोदी से भी उनकी बड़ी आस है. बीजेपी ने ग्रामीण इलाकों पर भी जोर लगा रखा है.
इधर, अनुपमा सिंह ने एक सुलझी नेता के तौर पर लोगों के बीच पेश करते हुए शहर से लेकर गांव तक पहुंचने की कोशिशें की हैं.
बड़े नेताओं का दौरा
21 और 22 मई को धनबाद संसदीय क्षेत्र के अलग- अलग जगहों में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिश्वा सरमा, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चुनावी सभा ने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को लामबंद करने की कोशिशें की है.
इससे पहले भी बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने प्रचार किया है. प्रदेश के अन्य कई बड़े नेताओं ने भी धनबाद में जोर लगाया है.
उधर कांग्रेस उम्मीदवार अनुपमा सिंह के समर्थन में मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, जेएमएम की स्टार प्रचारक कल्पना सोरेन समेत कांग्रेस के कई नेताओं ने चुनावी रैलियां की हैं.
माना जा रहा है कि धनबाद ने चुनावों में ऐसा टसल पहले कभी नहीं देखा है.
इस टसल में प्रचार युद्ध, खेमाबंदी, भितरघात के तीर के साथ खामोशी भी है. यही खामोशी रणनीतिकारों को परेशान कर रही है.
लोहनगरी जमशेदपुर में भी सीधी लड़ाई
उधर, झारखंड की एक और महत्वपूर्ण सीट पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर) में भी 25 मई को वोट है. बीजेपी और राज्य में सत्तारूढ़ जेएमएम दोनों के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बना है.
2014 और 2019 के चुनाव में बीजेपी से जीत दर्ज करने वाले विद्युतवरण महतो फिर मैदान में हैं.
इनका मुकाबला जेएमएम के समीर मोहंती से है. समीर मोहंती बहरागोड़ा से जेएमएम के विधायक हैं. बहरागोड़ा सीट जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है. समीर इसका लाभ उठाने की कोशिशों में जुटे हैं.
2019 के चुनाव में विद्युतवरण महतो ने जेएमएम के चंपई सोरेन को 3 लाख 2090 वोटों के अंतर से हराया था.
लेकिन इस बार चुनावी तस्वीर बदली हुई है. दरअसल जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्रों में चार पर जेएमएम, एक पर कांग्रेस का कब्जा है. जबकि जमशेदपुर पूर्वी की सीट निर्दलीय विधायक सरयू राय के पास है.
जेएमएम उम्मीदवार को भरोसा है कि पांच विधानसभा क्षेत्रों में सत्तारूढ़ दलों का कब्जा होने का लाभ उन्हें मिल सकता है. जेएमएम उम्मीदवार के साथ दल के सभी विधायकों ने पूरी ताकत झोंक दी है. चंपाई सोरेन भी समीकरणों के तार जोड़ने में जुटे हैं.
जमशेदपुर में शहरी वोटरों का प्रभाव भी अहम माना जाता है. यहां बीजेपी का वोट बैंक भी है. इसके अलावा बीजेपी उम्मीदवार को पार्टी के सबसे बड़े ब्रांड नरेंद्र मोदी का भरोसा है. पिछले चुनावों में बीजेपी ने जमशेदपुर पूर्वी और पश्चिमी सीट ( शहरी इलाके) से बड़ी बढ़त हासिल की थी.
हाल ही में नरेंद्र मोदी ने घाटशिला में चुनावी रैली की है. इधर चंपाई सोरेन और कल्पना सोरेन ने जेएमएम उम्मीदवार के समर्थन में चुनावी मोर्चा संभाला है.
21 मई को जमशेदपुर में जेएमएम की चुनावी रैली में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल और आप नेता संजय सिंह भी शामिल हुए थे.
अरविंद केजरीवाल ने इस सभा में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को लेकर आदिवासी जज्बातों को उभारने की कोशिश की.
इधर, कल्पना सोरेन की लगातार चुनावी सभा ने जेएमएम कैडर और समर्थकों को लामबंद होने का मौका दे दिया है.
धनबाद की तरह जमशेदपुर में भी बीजेपी के अंदरखाने सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. हाल ही में पूर्व विधायक और बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता कुणाल षाड़ंगी ने अपने पद से इस्तीफा देते हुए आरोप लगाया है कि संगठन में उनकी अनदेखी की जाती रही है और चुनाव से जुड़े किसी भी कार्यक्रम की जानकारी नहीं दी जाती. बीजेपी के कोर कैडर में भी फुसफुसाहट में ये बातें सामने आती रही हैं. बीजेपी उम्मीदवार परिस्थितियों को संभालने में जुटे हैं.
जमशेदपुर संसदीय सीट में आदिवासी, कुर्मी, मुस्लिम, अनुसूचित जाति और सवर्ण वोटों का समीकरण अहम माना जाता है. इसके अलावा उडिया और बांग्ला भाषी भी एक फैक्टर हैं. बीजेपी और जेएमएम दोनों इन वोट समीकरणों को साधने में जुटे हैं.
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