झारखंड (Jharkhand) में आदिवासियों के लिए रिजर्व सीट सिंहभूम (Singhbhum) में चुनावी परिदृश्य सिरे से बदला हुआ है और यह कई मायने में बेहद अहम भी है. 2019 में ‘मोदी लहर’ से लड़कर जीतने वाली गीता कोड़ा (Geeta Kora) कांग्रेस छोड़ कर इस बार भारतीय जनता पार्टी (BJP) की नाव पर सवार हैं. गीता कोड़ा की इस नाव को रोकने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की जोबा माझी (Joba Majhi) कड़ी चुनौती पेश कर रही हैं.
आदिवासी दिग्गजों की भी अग्नि परीक्षा
चुनावों की तारीख नजदीक आने और बनते-बिगड़ते समीकरणों के साथ ही यहां मुकाबला रोचक होता जा रहा है. वोट बैंक पर सेंध लगाने और उसे बचाने की कोशिशें जारी हैं. सिंहभूम में 13 मई को चुनाव है.
गीता कोड़ा और जोबा माझी की इस जंग में मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, मंत्री दीपक बिरुआ, पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा समेत आधे दर्जन आदिवासी दिग्गजों की भी अग्नि परीक्षा है.
गीता कोड़ा पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी हैं. 2019 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर सिंहभूम में जीत दर्ज की थी. तब गीता कोड़ा को झारखंड मुक्ति मोर्चा का समर्थन हासिल था. इस बार चुनाव से ठीक पहले गीता कोड़ा बीजेपी में शामिल हो गईं.
2019 में गीता कोड़ा की जीत इसलिए भी सुर्खियों में रही कि उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार लक्ष्मण गिलुआ को हराया था. उस वक्त लक्ष्मण गिलुआ बीजेपी के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष भी थे.
इधर इंडिया गठबंधन के समर्थन से जेएमएम ने मनोहरपुर से पांच टर्म की विधायक जोबा माझी को मैदान में उतारा है. जमीन से जुड़ी और साधारण परिवार से आने वालीं जोबा माझी का भी राजनीतिक कद बड़ा है. हेमंत सोरेन की सरकार में मंत्री थीं. संयुक्त बिहार में भी मंत्री रही हैं.
जोबा माझी मनोहरपुर के पूर्व विधायक और कोल्हान क्षेत्र में आदिवासी हितों को लेकर तथा जंगल आंदोलन की अगुवाई करने वाले देवेंद्र माझी की पत्नी हैं. देवेंद्र माझी की हत्या के बाद जोबा माझी ने 1995 में राजनीतिक जीवन में प्रवेश किया था.
सिंहभूम के चुनावी सफर में पहला मौका है, जब आदिवासी महिला चेहरा आमने-सामने हैं.
आमने- सामने की लड़ाई के मद्देनजर झारखंड प्रदेश बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं का सिंहभूम में दौरा, बैठक, सभा का सिलसिला तेज हुआ है. इस बीच तीन मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चाईबासा में रैली है. इस रैली पर सबकी निगाहें टिकी हैं.
जबकि 23 अप्रैल को जोबी माझी के नामांकन के बाद से मंत्री दीपक बिरूआ समेत जेएमएम के सभी विधायकों ने मोर्चा संभाल रखा है.
क्या है सिंहभूम का ताना-बाना
सिंहभूम संसदीय सीट में छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें चाईबासा, मनोहरपुर, जगन्नाथपुर, चक्रधरपुर, मझगांव और सरायकेला शामिल हैं. इन छह में से पांच पर जेएमएम और एक सीट जगन्नाथपुर पर कांग्रेस का कब्जा है.
सिंहभूम में हो समुदाय की आबादी ज्यादा है और गीता कोड़ा इसी समुदाय से आती हैं. जबकि जोबा माझी संथाली हैं. लिहाजा इस समीकरण को साधने के लिए दोनों तरफ से तरकश के सभी तीर खाली किए जा रहे हैं.
झारखंड के मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन सरायकेला से विधायक हैं. कोल्हान की राजनीति में उन्हें ‘टाइगर’ के नाम से भी जाना जाता रहा है. चंपाई सोरेन की सरकार में मंत्री दीपक बिरूआ चाईबासा से विधायक हैं.
दीपक बिरूआ समेत मझगांव से विधायक निरल पूर्ति और चक्रधरपुर से सुखराम उरांव की गिनती भी जेएमएम के कद्दावर आदिवासी नेताओं में होती रही है. ये सभी नेता जोबा माझी के लिए चुनावी मोर्चा संभाल रहे हैं.
चंपाई सोरेन और दीपक बिरूआ के लिए यह चुनाव इसलिए भी प्रतिष्ठा का सवाल बना है क्योंकि दल के प्रमुख शिबू सोरेन अब स्वाथ्य और उम्र के कारणों से चुनावी सभा, रैलियां नहीं करते और सबसे बड़े खेवनहार हेमंत सोरेन जेल में हैं.
33 साल पहले 1991 में जेएमएम ने सिंहभूम की सीट पर जीत दर्ज की थी. इस लिहाज से भी जेएमएम के सामने कोड़ा दंपति के राजनीतिक वर्चस्व को रोकने की चुनौती है.
इधर मधु कोड़ा और पूरी बीजेपी गीता कोड़ा की जीत सुनिश्चित करने में कोई कसर खाली जाने नहीं देना चाहती.
बदली परिस्थितियों में मधु कोड़ा और गीता कोड़ा को बीजेपी के सबसे बड़े ब्रांड और चेहरा नरेंद्र मोदी का भरोसा है, तो जोबा माझी को जेएमएम के वजूद, कैडरों की गोलबंदी और आदिवासी क्षत्रपों की ताकत का.
जेएमएम के नेता यह भी दावे करते रहे हैं कि 2019 में गीता कोड़ा की जीत सुनिश्चित करने में भी जेएमएम के विधायकों और कैडर का जोर था.
किन सवालों पर है जोर
बीजेपी में शामिल होने के बाद से गीता कोड़ा कांग्रेस और जेएमएम पर हमलावर हैं. चुनाव प्रचार में गीता कोड़ा और बीजेपी के नेता यह बताते रहे हैं कि आदिवासियों का भला बीजेपी और नरेंद्र मोदी की सरकार ही कर सकती है. राज्य में सत्तारूढ़ जेएमएम-कांग्रेस की सरकार पर भी बीजेपी निशाना साधती रही है.
लोकसभा चुनावों को लेकर बीजेपी ने जो संकल्प पत्र जारी किया है उसमें यह शामिल किया गया है कि बिरसा मुंडा की 150वीं जन्म जयंती को वर्ष 2025 में ‘जनजातीय गौरव वर्ष’ के रूप में मनाया जाएगा. बीजेपी के नेता इस संकल्प को भी प्रचारित-प्रसारित करने में जुटे हैं.
जबकि जेएमएम का जोर इन बातों पर है कि बीजेपी और केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार ने कभी आदिवासियों का भला नहीं किया है. हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को जेएमएम बीजेपी की राजनीतिक साजिश बता रहा है.
जेएमएम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चाईबासा में प्रस्तावित रैली को लेकर आदिवासी सवालों और मुद्दों, खासकर जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग से एक कॉलम निर्धारित करने के लिए सरना कोड की पुरानी मांग को सामने कर दिया है.
उधर हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के खिलाफ जेएमएम के कैडर और आदिवासियों की गोलबंदी के चुनाव में असर से इनकार भी नहीं किया जा सकता. दरअसल आदिवासियों का एक तबका हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को बीजेपी की चाल समझता रहा है.
इस बीच झारखंड मुक्ति मोर्चा ने मधु कोड़ा पर घपले-घोटाले के मामलों को उछाल दिया है.
जोबा माझी के नामांकन के बाद चाईबासा स्थित खूंटकट्टी मैदान में जेएमएम की चुनावी सभा में चंपाई सोरेन सरकार के मंत्री दीपक बिरूआ ने घपले-घोटाले से घिरे मधु कोड़ा के मामलों को उछालकर कोड़ा दंपति और बीजेपी, दोनों को निशाने पर लेने की कोशिशें कीं.
इस सभा में दीपक बिरूआ ने कहा था, ‘’गीता कोड़ा बीजेपी में इसलिए शामिल हुईं हैं कि बीजीपी की वाशिंग मशीन में धुलकर उनके पति मधु कोड़ा साफ हो जाएं.”
जेएमएम की इस रैली में मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन, जेएमएम के विधायक निरल पूर्ति, सुखराम उरांव समेत कई नेता भी मौजूद थे.
माना जा रहा है कि मधु कोड़ा पर लगे घपले-घोटाले के गंभीर आरोपों को उछाल कर जेएमएम एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिशों में जुटा है. पहला- बीजेपी द्वारा चुनाव प्रचार में जेएमएम और सरकार पर लगाये जा रहे भ्रष्टाचार के आरोपों का जवाब. दूसरा आदिवासियों के बीच यह भावना भरना कि घपले-घोटाले का सामना कर रहे मधु कोड़ा को आगे की मुश्किलों से बचाने के लिए गीता कोड़ा ने बीजेपी का दामन थामा है.
आगे देखा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चाईबासा में होने वाली रैली में मधु कोड़ा मंच साझा करते हैं या नहीं.
क्यों है बीजेपी-जेएमएम की सीधी नजर
2019 के संसदीय चुनाव में सिंहभूम सीट पर हुई हार बीजेपी को उसी समय से खटकती रही है. दरअसल लोकसभा चुनाव के कुछ महीने बाद हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में कोल्हान की सभी 14 सीटों में से 13 पर जेएमएम और कांग्रेस के कब्जे ने बीजेपी को हिला कर रख दिया था. साथ ही बीजेपी का खराब प्रदर्शन सत्ता से बेदखल होने का सबब भी बना.
बीजेपी को पता है कि झारखंड में सत्ता तक पहुंचने के लिए कोल्हान का रास्ता महत्वपूर्ण है. अब मधु कोड़ा और गीता कोड़ा के साथ होने से बीजेपी की उम्मीदें जगी है कि उसे कोल्हान में एक आदिवासी चेहरा मिल गया है.
इससे पहले 2009 में सिंहभूम संसदीय सीट पर मधु कोड़ा ने निर्दलीय चुनाव जीता था. जबकि 2000 में जगन्नाथपुर विधानसभा सीट से पहली दफा बीजेपी के टिकट पर जीत हासिल की थी. 2005 में बीजेपी से टिकट नहीं मिलने पर वे निर्दलीय लड़े और जीते.
जगन्नाथपुर विधानसभा क्षेत्र से गीता कोड़ा ने दो बार जीत हासिल की है. जाहिर तौर पर ढाई दशक से सिंहभूम की राजनीति में कोड़ा दंपति की पैठ रही है.
उधर जेएमएम के मंत्री, विधायक भी संसदीय चुनाव की इस गंभीरता को भांपते हुए इन कोशिशों में जुटे हैं कि कोल्हान में जेएमएम की मजबूत दीवार पर बीजेपी सेंध नहीं लगा सके.
इस बार सिंहभूम संसदीय चुनाव को लेकर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का प्रभाव और रणनीतिक कौशल भी परखा जाना है.
दरअसल बाबूलाल मरांडी चुनावी बिसात बिछाने और सांगठनिक लामबंदी के लिए लगातार सिंहभूम में बैठकें करते रहे हैं. पिछले साल छह जनवरी को गृह मंत्री अमित शाह ने चाईबासा में बीजेपी की विजय संकल्प रैली की थी. इसके बाद से ही प्रदेश बीजेपी अपना टास्क पूरा करने में लगी है.
मधु कोड़ा और करप्शन
पंद्रह सालों से मधु कोड़ा मनी लॉन्ड्रिंग, आय से अधिक संपत्ति और अन्य घोटाले से जुड़े केस- मुकदमों में सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग की कार्रवाई का सामना करते रहे हैं.
मधु कोड़ा कोयला घोटाले में सजायाफ्ता भी हैं. साल 2017 में दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट स्थित सीबीआइ की विशेष अदालत ने यह सजा सुनाई थी. उनपर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. हालांकि दिल्ली हाइकोर्ट ने कोड़ा की सजा और जुर्माने पर स्टे लगा रखा है.
साल 2017 में ही चुनाव आयोग ने अपने एक फैसले में उन्हें चुनाव लड़ने के लिए तीन साल तक अयोग्य करार दिया था. उन पर चुनाव प्रचार का हिसाब सही तरीके से नहीं देने का आरोप था.
30 नवंबर 2009 को मधु कोड़ा को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किए जाने के बाद उनका राजनीतिक जीवन अर्श से फर्श पर जा गिरा.
इससे पहले 19 सिंतबर 2006 में एक निर्दलीय विधायक रहते हुए जेएमएम, कांग्रेस, RJD के सहयोग से मधु कोड़ा ने सत्ता की बागडोर संभाली थी. इस तरह सीएम बनने के कारण उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है.
इन तमाम उतार- चढ़ाव के बाद भी सिंहभूम की राजनीति में मधु कोड़ा एक धुरी बने हुए हैं और अपनी पत्नी के लिए चुनावी खेवनहार भी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)