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Eknath Shinde के वो 5 दांव, जिन्होंने उन्हें बनाया महाराष्ट्र का 'एकनाथ'

Maharashtra Politics: उद्धव ठाकरे को एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के अंदर और सीएम की कुर्सी- दोनों जगह कैसे मात दी?

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महाराष्ट्र की राजनीतिक संकट के पूरे 11 दिन लंबे एपिसोड के बाद हम इसके क्लाइमेक्स पर पहुंच चुके हैं. एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री (Maharashtra CM Eknath Shinde) बनने को तैयार हैं. बीजेपी की मदद से सरकार बनेगी. देवेंद्र फडणवीस ने पहले घोषणा की थी कि वह कोई पद नहीं लेंगे जबकि बीजेपी के बाकी लोग सरकार में मंत्री बनेंगे. हालांकि बीजेपी आलाकमान के निर्देश पर उन्होंने सरकार में शामिल होने पर हामी भर दी है.

महाराष्ट्र में 20 जून को विधान परिषद के चुनाव होते हैं और चुनाव के तुरंत बाद शिवसेना के वरिष्ठ नेता और उद्धव सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे गायब और पहुंच के बाहर हो जाते हैं.

11 दिन बाद महाराष्ट्र के सियासी मंच पर ठीक विपरीत कहानी चल रही है. उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे चुके हैं और बीजेपी की मदद से एकनाथ शिंदे की सरकार बन रही है.

इस मराठी ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ में एक्टरों की सूची बनाए तो पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे, बागी शिवसैनिक विधायकों से लेकर देवेंद्र फडणवीस जैसे नाम दिखेंगे. आपको कैसे किरदार पसंद हैं, उसके आधार पर आपके हीरो और विलेन जरूर बदल सकते हैं. लेकिन इस पूरे घटना क्रम में अगर कोई शख्स डायरेक्टर और पटकथा लेखक बनकर उभरा तो वह एकनाथ शिंदे रहे.

सवाल है कि जब सब महाराष्ट्र के इस सियासी उठापटक के पीछे किसी केंद्रीय शक्ति की भूमिका देख रहे हैं- हम एकनाथ शिंदे को ‘बिग बॉस’ क्यों कह रहे हैं? इसका जवाब एकनाथ शिंदे के वो पांच दांव हैं जिन्हें उन्होंने पिछले 11 दिनों में बड़ी सूझ-बूझ के साथ खेला है और उसे सफलता पूर्वक भुनाया है.

1. खेल को ठाकरे के प्लेग्राऊंड से दूर ले जाना

जब आप ठाकरे परिवार के खिलाफ बगावत की चाह रखते हैं तब आप बगावत के इस खेल को महाराष्ट्र में शायद ही खेलना चाहें. एकनाथ शिंदे ने ठीक यही किया और खेल को महाराष्ट्र से दूर ले गए. विधान परिषद चुनाव में संदिग्ध क्रॉस वोटिंग के बाद 21 जून को सीएम उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के सभी विधायकों की तत्काल बैठक बुलाई थी. सभी विधायकों को किसी भी कीमत पर बैठक में उपस्थित रहने को कहा गया लेकिन तबतक एकनाथ शिंदे 11 विधायकों के साथ पहुंच के बाहर हो गए थे.

फिर मीडिया में खबर आई कि एकनाथ शिंदे गुजरात के सूरत में स्थित मेरिडियन होटल में शिवसेना के बागी विधायकों ने शरण ले रखी है.

अगले ही दिन 22 जून को शिंदे 40 विधायकों के साथ असम के गुवाहाटी पहुंच गए. गुजरात की तरह असम भी एक बीजेपी शासित राज्य था और यहां शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे का कोई भी दबाव बागियों पर असर डालने वाला नहीं था. एक एक कर एकनाथ शिंदे कैंप में बागी विधायकों के साथ मंत्रियों की संख्या भी बढ़ती गयी और उधर उद्धव बिना मैच खेले ही हारते गए.

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2. एकनाथ, उद्धव के टक्कर के लीडर नहीं, फिर भी बन गए बागियों के नेता

याद रहे कि एकनाथ शिंदे कोई मास लीडर नहीं हैं. उनकी स्थिति शिवसेना में उद्धव ठाकरे के बाद नंबर 2 की उनकी रणनीतिक सूझबूझ के कारण ही है. और इस बार वो इसी के कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं.

एकनाथ जब महाराष्ट्र से निकले थे तब उनके साथ लगभग एक दर्जन बागी शिवसैनिक विधायक थे लेकिन जब वो उद्धव ठाकरे को मात देकर असम छोड़ रहे थे तब उनके साथ उद्धव सरकार के ही 9 मंत्री जुड़ चुके थे.

3. बाल ठाकरे और शिवसेना ब्रांड को नहीं छोड़ना

एकनाथ शिंदे की इस पूरी बगावत की एक खास बात रही कि उनकी यह बगावत शिवसेना या बालासाहेब ठाकरे की राजनीतिक विचारधारा के खिलाफ नहीं थी. उन्होंने इस बगावती एपिसोड में शुरू से अंत तक यह स्टैंड बरकरार रखा कि खुद उद्धव ठाकरे कथित रूप से बाला साहेब के विचारधारा के विपरीत जा रहे हैं और इसलिए उनकी बगावत सिर्फ उद्धव ठाकरे से है.

21 जून को जब बागी विधायकों के साथ एकनाथ सूरत में थे तब उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी चुप्पी तोड़ी और कहा कि वह सत्ता के लिए शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की शिक्षाओं को कभी धोखा नहीं देंगे. उन्होंने हिंदुत्व के मुद्दे को ही अपने विद्रोह के पीछे का एक फैक्टर बताया.

दरअसल बाला साहेब या उनके नेतृत्व में तैयार शिवसेना का हिंदुत्व ब्रांड के सामने एकनाथ अपना ब्रांड इतनी जल्दी या शायद कभी तैयार नहीं कर सकते थे. ऐसे में उनकी बगावत ठाकरे परिवार से शिवसेना का कंट्रोल अपने हाथ में लेने की रही, नया राजनीतिक मोर्चा खोलने की नहीं.

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4. प्रत्यक्ष रूप से सत्ता का लोभ नहीं दिखाया

भले ही एकनाथ उद्धव ठाकरे को किनारे करके मुख्यमंत्री पद तक पहुंच चुके हैं लेकिन उन्होंने पिछले 11 दिनों में यह कभी नहीं दिखाया कि वो सत्ता के लिए यह सब कर रहे हैं. उन्होंने बार बार उद्धव पर बाला साहेब के विचारधारा को छोड़ने का आरोप लगाया.

एकनाथ को सत्ता का लोभ नहीं दिखाने का एक फायदा यह मिला कि उन्हें इस दौरान उद्धव और शिवसेना के कट्टर कार्यकर्ताओं का भी उतना विरोध नहीं देखना पड़ा, जिसकी उम्मीद शायद खुद उद्धव ठाकरे ने रखी होगी.

खास बात है कि एकनाथ शिंदे लगातार कह रहे थे कि उद्धव ठाकरे बीजेपी के साथ वापस सरकार बनाये और उद्धव ठाकरे ने इस शर्त को स्वीकार करने के लिए हामी भी भर थी. बावजूद इसके एकनाथ महाराष्ट्र तभी लौटे जब उद्धव इस्तीफे के लिए मजबूर हो गए थे.

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5. एकनाथ शिंदे ने जल्दबाजी नहीं की

सभी राजनीतिक एक्सपर्ट बिना शक देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने की भविष्यवाणी कर रहे थे. वहीं दूसरी तरफ एकनाथ शिंदे बिना कोई जल्दबाजी दिखाए मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए.

महाराष्ट्र छोड़ने के कुछ ही दिन बाद उद्धव ठाकरे को पता चल गए था उनके पास अब फ्लोर पर बहुमत साबित करने के लिए जरूरी संख्या बल नहीं रह गया है. एकनाथ शिंदे भी जानते थे कि ⅔ से अधिक शिवसैनिक विधायकों के साथ वो दल-बदल कानून के डर के बिना बीजेपी में शामिल हो सकते थे.

लेकिन एकनाथ शिंदे और बीजेपी को भी शायद शिवसेना ब्रांड की कीमत पता थी. अगर एकनाथ शिंदे जल्दबाजी दिखाकर बीजेपी में शामिल हो जाते तब सत्ता से बेदखल ही सही,उद्धव ठाकरे के हाथ में कमजोर शिवसेना की बागडोर होती. लेकिन आज जब एकनाथ शिंदे बिना बीजेपी में शामिल हुए सरकार बना रहे हैं तब उनका दावा पूरे शिवसेना पर कंट्रोल का है.

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