गुजरात में विधानसभा चुनाव का प्रचार-प्रसार जोरों पर है. पार्टियां अपने-अपने लुभावने वादों से वोटरों को लुभा रही हैं. लेकिन, हकीकत ये है कि इन लुभावने वादों के बीच जमीनी मुद्दे कहीं पीछे छूट गए हैं. दुनियाभर में आई कोविड की त्रासदी के बीच इसका असर देशभर में देखने को मिला था. इसमें यूपी, गुजरात समेत कई राज्यों में परिस्थितियां अनकंट्रोल हो गई थी. जानकारों का मानना था कि विजय रुपाणी की सीएम पद से विदाई भी कोविड कुप्रबंधन की वजह से हुई थी.
क्विंट की टीम ग्राउंड से रिपोर्ट कर रही है. उसने ये जानने की कोशिश की थी कि इस चुनाव में कोविड मुद्दा कितना प्रभावी है. जबकि, गुजरात में करीब 11,000 कोविड मौतें हुई थीं.
हालांकि, एक स्टडी के मुताबिक कोविड से मौतों की संख्या इन सरकारी आंकड़ों से कहीं ज्यादा थी. इसमें ऑक्सीजन की कमी से भी हुई थीं मौतें लेकिन चुनाव में कोविड मुद्दा नहीं है.
सूरत में जिन लोगों ने कोविड मृतकों का अंतिम संस्कार किया वो याद करते हैं वो खौफनाक दिन था. समाजसेवी अब्दुल मालाबारी और प्रीत वैद्य बताते हैं कि वो दौर बहुत ही भयावह था. तब मृतकों के परिजनों को भी पास नहीं आने दिया जाता था. ज्यादातर अंतिम संस्कार प्रशासन और समाजसेवियों ने किए.
अब्दुल मलाबारी बताते हैं कि जब पहला जनता कर्फ्यू लगा था, उस समय मैंने पहला अंतिम संस्कार मेहता साहब का किया था. एक दूसरे समाजसेवी बताते हैं कि एक समय ऐसा था जब हमने 24 घंटे के अंदर 74 डेड बॉडी लाए थे.
प्रीत वैद्य बताते हैं कि कोविड का समय बहुत ही डरावना था. हम लोग 24 घंटे काम कर रहे थे. हर दिन तकरीबन 30-40 शव आते थे. इसके बाद हम उनके धर्म के मुताबिक उसका अंतिम संस्कार करते थे.
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