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BJP में Hardik Patel:पाटीदार कौन हैं? गुजरात की राजनीति में इनका क्या प्रभाव है?

गुजरात की आबादी में हिस्सेदारी सिर्फ 12% लेकिन अबतक 5 मुख्यमंत्री Patidar समुदाय से- क्या है वोटबैंक का गणित?

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हाल ही में कांग्रेस छोड़ने वाले पाटीदार नेता हार्दिक पटेल (Hardik Patel) ने गुजरात चुनाव (Gujarat Assembly election) से ठीक पहले गुरुवार, 2 मई को BJP का दामन थाम लिया. गुजरात के गांधीनगर में स्थित बीजेपी कार्यालय में 28 वर्षीय हार्दिक पटेल का स्वागत उसी भगवे दुपट्टे और टोपी से किया गया, जिसका आजतक हार्दिक पटेल कांग्रेस नेता के रूप में वैचारिक विरोध करते रहे थे.

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सवाल है कि गुजरात चुनाव से ठीक पहले हार्दिक पटेल का स्वागत बीजेपी क्यों कर रही है, वो भी तब जब हार्दिक पटेल ने अपने आज तक के करीब तीन साल के राजनीतिक सफर को पीएम मोदी, अमित शाह सहित बीजेपी और उसके शीर्ष नेतृत्व पर निशाना साधते बिताया है?

इस सवाल का जवाब हार्दिक पटेल के सामाजिक पृष्ठभूमि में छिपा है, सीधे कहें तो उस पाटीदार समाज के वोटबैंक में जिससे हार्दिक पटेल ताल्लुक रखते हैं. अगर बीजेपी के लिए 'हार्दिक प्रेम' की वजह खोजनी हो तो गुजरात चुनाव में पाटीदार समाज के प्रभाव को समझने की जरूरत है.

इसी लिए हम जानने की कोशिश करते हैं कि पाटीदार कौन हैं? गुजरात में पाटीदार समुदाय का क्या प्रभाव है? और कौन हैं पाटीदार समाज के बड़े नेता?

पाटीदार कौन हैं?

गुजरात में पाटीदार या पटेल खुद के भगवान राम के वंशज होने का दावा करते हैं. पाटीदार समुदाय मुख्य रूप से दो उप-जातियों में बंटा हुआ है- लेउवा पटेल और कदवा पटेल. लेउवा पटेल लव और कदवा पटेल कुश के वंशज माने जाते हैं, जो भगवन राम के जुड़वां बच्चे थे.

इसके अलावा पाटीदार समुदाय में सतपंथी जैसी अन्य उपजातियां हैं, जो मुख्यतः गुजरात के कच्छ जिले में बसी हैं और पीर की पूजा करती हैं. साथ ही इसमें चौधरी पटेल हैं जो गुजरात के उत्तरी भाग में बसे हैं.
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अगर गुजरात के पूर्वी आदिवासी बेल्ट को छोड़ दें तो पाटीदार पूरे गुजरात में फैले हुए हैं, खासकर उत्तरी गुजरात और सौराष्ट्र क्षेत्र में इनकी आबादी अधिक है.

लेउवा पटेल की जनसंख्या कदवा पटेल की संख्या से थोड़ी सी अधिक है. लेउवा पटेल का प्रभुत्व सौराष्ट्र और मध्य गुजरात में अधिक है जबकि कदवा पटेल उत्तरी गुजरात में आबादी के लिहाज से मजबूत हैं.

'पाटीदार' नाम कहां से आया?

'पाटीदार' शब्द का अर्थ है "वह जो भूमि के एक पट्टा का मालिक है". मध्यकालीन भारत में, पाटीदार समुदाय के सदस्य मेहनती किसानों के रूप में जाने जाते थे, और यही कारण था कि रियासतों के शासकों ने उन्हें अपने राज्यों में भूमि के सबसे अच्छे और सबसे बड़े भूभाग का बटाईदार बना दिया.

भारत को जब आजादी मिली तो, आजाद भारत की सरकार ने बटाईदारों को भूमि-स्वामित्व का अधिकार दिया. इसी कारण से गुजरात में पाटीदार प्रमुख कृषि भूमि के बड़े हिस्से के मालिक बन गए.

पाटीदार वैसे तो परंपरागत रूप से भूमि-स्वामी समुदाय के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन कुछ पाटीदारों ने 1970 और 1980 के दशक में उद्योग जगत में कदम रखा और समय के साथ व्यापार के क्षेत्र में उन्होंने अपना दबदबा कायम किया. आगे कई पाटीदारों ने देश छोड़ दिया. पाटीदार आज अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और अफ्रीका में गुजराती प्रवासियों का एक बहुत बड़ा हिस्सा हैं.

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पाटीदार समुदाय राजनीतिक रूप से प्रभावशाली कैसे?

एक अनुमान के मुताबिक गुजरात की 6.5 करोड़ आबादी में पाटीदारों की संख्या लगभग 1.5 करोड़ है. 1931 की अंतिम दर्ज जाति जनगणना के अनुसार, पाटीदार आबादी का लगभग 11-12% है. माना जाता है कि गुजरात में पाटीदारों की तुलना में OBC कोली अधिक संख्या में हैं, लेकिन यह समुदाय कई उप-जातियों में बंटा हुआ है और राजनीतिक रूप से अपनी बड़ी आबादी का लाभ उठाने में असमर्थ रहा है.

इसके उलट पाटीदारों में समुदाय और राजनीतिक प्रभुत्व, दोनों की भावना प्रबल रही है. पाटीदारों की दो प्रमुख उप-जातियों- कदवा और लेउवा के रीति-रिवाज अलग-अलग हैं, लेकिन इस तथ्य के बावजूद उन्होंने दो दशकों से अधिक समय तक एक ही राजनीतिक समूह के रूप में एक पाले में ही वोट डाला है.

पाटीदार समुदाय 80 के दशक तक कांग्रेस का वोटबैंक था. लेकिन 1980 के दशक में जब कांग्रेस ने क्षत्रिय-हरिजन-आदिवासी-मुस्लिम (खाम) वोटबैंक को साधने की कोशिश की तो इसकी प्रतिक्रिया के रूप में पाटीदार समुदाय बीजेपी के पीछे एक साथ आया.

स्वर्गीय केशुभाई पटेल ने पाटीदारों को लामबंद किया और इसने अन्य उच्च जातियों के साथ मिलकर मार्च 1995 में पहली बार गुजरात में बीजेपी को सत्ता में लाने में बड़ी भूमिका निभाई.

बीजेपी तब से लगभग बराबर गुजरात में शासन में हैं. सिर्फ राष्ट्रपति शासन की एक छोटी अवधि को और डेढ़ साल (1996-98) के अंतराल को छोड़कर, जब शंकरसिंह वाघेला की राष्ट्रीय जनता पार्टी सत्ता में थी.

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कौन हैं पाटीदार समाज के बड़े नेता?

लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल भी पाटीदार समाज से आते हैं, हालांकि उनका कद किसी एक समुदाय से परे जाकर राष्ट्रीय नेता का है. सरदार जी का जन्म लेउवा पाटीदार जाति के एक आत्मनिर्भर जमींदार परिवार में हुआ था. उन्हें भारत जैसे विशाल देश के एकीकरण का श्रेय जाता है. उन्होंने 1947 से 1950 तक भारत के पहले उप प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया.

1973 में कांग्रेस नेता चिमनभाई पटेल (बाद में जनता दल के नेता) गुजरात में मुख्यमंत्री बनने वाले पहले पाटीदार नेता बने. इसके बाद 1975 में कांग्रेस (O) और जनता मोर्चा के गठबंधन के नेता के रूप में बाबूभाई जशभाई पटेल पाटीदार समुदाय से दूसरे मुख्यमंत्री बने. 1977 में आपातकाल हटने के बाद बाबूभाई पटेल फिर से गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे, हालांकि इस बार सरकार जनता पार्टी की थी.

1990 में चिमनभाई पटेल ने फिर वापसी की और वे जनता दल-कांग्रेस गठबंधन के नेता के रूप में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. 1995 में बीजेपी नेता केशुभाई मुख्यमंत्री पद पर पहुंचने वाले तीसरे पाटीदार नेता बने.

1998 के चुनाव में केशुभाई ने बीजेपी को फिर से जीत दिलाई और दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन 2001 में कच्छ भूकंप के बाद बीजेपी ने उन्हें हटाकर नरेंद्र मोदी को नया मुख्यमंत्री बना दिया.

2014 में मोदी के प्रधान मंत्री चुने जाने के बाद उनकी लंबे समय से सहयोगी आनंदीबेन को सीएम बनाया गया था. आनंदीबेन पटेल एक लेउवा पटेल हैं जिनकी शादी एक कदवा पटेल परिवार में हुई है. हालांकि पाटीदार आरक्षण आंदोलन के कारण दो साल बाद उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा.

विजय रुपानी के इस्तीफे के बाद भूपेंद्रभाई पटेल ने 13 सितंबर, 2021 को गुजरात के 17वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.

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पाटीदार आरक्षण आंदोलन और हार्दिक पटेल का उदय

2015 के मध्य में तब 23 वर्षीय कदवा नेता हार्दिक पटेल ने एक आंदोलन शुरू किया, जिसमें पाटीदारों को ओबीसी के रूप में मान्यता देने की मांग की गई थी. हार्दिक पटेल का कहना था कि समुदाय के अधिकांश लोग कम होती भूमि के कारण गरीब थे, और उन्हें सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में कोटा की आवश्यकता थी. हार्दिक पटेल ने इसके लिए पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (PAAS) की स्थापना की थी.

आगे हार्दिक पटेल ने 2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का समर्थन किया, और 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी में शामिल हो गए. दंगों के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण उनके लिए संसदीय चुनाव लड़ना संभव नहीं था.

2019 आम चुनाव में बीजेपी ने 26 संसदीय सीटों में से 26 पर ही जीत दर्ज की थी. जुलाई 2020 में पटेल गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति हुए और कांग्रेस सितंबर में सभी आठ उपचुनाव विधानसभा सीटों को बीजेपी से हार गई. ऐसे में हार्दिक पटेल के राजनीतिक अपील पर सवाल उठने लगा था. कांग्रेस की एक के बाद एक राज्यों में बुरी हार के बाद आज हार्दिक पटेल ने बीजेपी का दामन थाम लिया है.

हार्दिक पटेल पटेल ने पिछले हफ्ते गुजरात चुनाव के एकतरफा होने की भविष्यवाणी की थी और कहा था कि बीजेपी जीतकर लगातार सातवें कार्यकाल के लिए सत्ता बरकरार रखेगी.

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